पर्यटन निगम ने लीज धारकों को अनुचित लाभ पहुंचायापीएजी की रिपोर्ट में हुआ खुलासाशकील अख्तररांची : झारखंड राज्य पर्यटन विकास निगम(जेटीडीसी) ने लीज धारकों को अनुचित आर्थिक लाभ पहुंचाया. प्रधान महालेकाखार(पीएजी) ने सरकार को भेजी गयी अपनी जांच रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है. निगम टूरिस्ट कांप्लेक्स, होटल आदि चलाने के लिए लीज पर देता है़ लीज के एकरारनामे की शर्तों के उल्लंघन करने पर लीज धारक के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है. निगम की ओर से परिसंपत्तियों का निरीक्षण भी नहीं किया जाता. रिपोर्ट में कहा गया है कि निगम ने दो होटल, चार टूरिस्ट कांप्लेक्स, दो टूरिस्ट कॉटेज और एक रोप वे लीज पर दिया है. एकरारनामे के अनुसार लीज धारकों को हर साल का किराया अग्रिम जमा करना था. ऐसा नहीं करने पर दो प्रतिशत की दर से ब्याज लेने, निर्धारित समय सीमा से पहले एकरारनामे से हटने पर छह माह का अग्रिम नोटिस और किराया देने और हर साल किराये में 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने की शर्त थी. हालांकि निगम ने इन शर्तों के उल्लंघन करनेवालों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की़ इससे निगम को आर्थिक नुकसान हुआ.वैभव होटल को अनुचित लाभ पहुंचायानिगम ने सितंबर 2010 में बरही स्थित ‘शीतल विहार टूरिस्ट कांप्लेक्स’ वैभव होटल प्राइवेट लिमिटेड को 1.37 लाख रुपये सालाना किराये पर दिया. इसे अक्तूबर से शुरू करना था, लेकिन इसने जनवरी 2011 में एकरारनामा हुआ. लीज की अवधि सात साल के लिए थी और हर साल 10 प्रतिशत के हिसाब से किराया बढ़ाया जाना था. उसने समय पर किराया नहीं दिया. मई 2014 में छह के बदले दो माह का अग्रिम किराया देकर जिम्मेवारी छोड़ दी. उसने सर्विस टैकेस सहित उपकरणों के नुकसान मद का 80 हजार रुपये निगम को नहीं दिया. निगम ने हजारीबाग स्थित ‘अरन्य विहार टूरिस्ट कंप्लेक्स’ भी इसी कंपनी को दिया था. उसे अक्तूबर 2010 को अपने कब्जे में लेने का निर्देश दिया था. कंपनी ने एक साल के लिए बतौर अग्रिम 5.51 लाख रुपये कंपनी को दिया. हालांकि मार्च 2011 में एकरारनामा किया. कंपनी ने 2011-15 के बीच किराया समय पर नहीं दिया. इससे निगम को 11.23 लाख रुपये का नुकसान हुआ. किराया एक लाख से घटा कर 10 हजार कियानिगम ने देवघर स्थित ‘रिखिया टूरिस्ट कांप्लेक्स’ शिवानंद आश्रम ट्रस्ट को जून 2004 में 1.31 लाख रुपये सालाना किराये पर दिया. विभाग के हस्तक्षेप के बाद किराया एक लाख रुपये कर दिया गया और एकरारनामे की अवधि 10 साल तय की गयी. 2014 में ट्रस्ट के एक आवेदन पर किराया एक लाख से घटा कर सिर्फ 10 हजार रुपये कर दिया गया और लीज का नवीकरण वर्ष 2024 तक कर दिया गया. किराया घटाने की वजह से सितंबर 2015 तक निगम को 4.98 लाख रुपये का नुकसान हुआ है. जेटीडीसी बोर्ड भी इस मामले में खामोश है. दस्तावेज में किराया घटाने के औचित्य का उल्लेख नहीं है. निगम ने नवंबर 2010 में‘मेसर्स सिल्वर स्पून’ को इटखोरी स्थित टूरिस्ट कांप्लेक्स 3.26 लाख रुपये सालाना किराये पर दिया. पांच साल की लीज अवधि में सालाना 10 प्रतिशत की दर से किराया बढ़ाने का प्रावधान था. सिल्वर स्पून ने अक्तूबर 2014 में लीज सरेंडर करनेे की इच्छा जतायी. लीज की शर्तों के अनुसार लीज रेंट,सर्विस टैक्स और दंड आदि के रूप में लीज धारक द्वारा निगम को 5.81 लाख रुपये देना था. पर निगम को सिर्फ 2.99 लाख रुपये ही भुगतान किया गया. इस तरह निगम ने लीज धारक को 2.82 लाख रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाया. लीज नवीकरण के बिना तीन साल चला टूरिस्ट कांप्लेक्सअगस्त 2005 में ‘जी टेक्स टूर एंड ट्रेवेल’ को घाटशिला स्थित टूरिस्ट कांप्लेक्स 2.51 लाख रुपये वार्षिक किराये पर तीन साल के लिए दिया गया. अगस्त 2008 मेें अगले दो साल के लिए लीज का नवीकरण किया गया. अगस्त 2010 में लीज की अवधि समाप्त होने के बाद निगम ने ना तो इसका नवीकरण किया ना ही कांप्लेक्स को अपने कब्जे में लिया. कंपनी ने 2013 में ‘जी टेक्स ’ को अगले आदेश तक इसे चलाते रहने का आदेश दिया. निगम ने नवंबर 2013 में किराया आदि मद में 7.90 लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया. ट्रेवेल कंपनी ने सिर्फ 6.13 लाख रुपये जमा किया. निगम ने मार्च 2014 में इसे अपने कब्जे में ले लिया.
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पर्यटन निगम ने लीज धारकों को अनुचित लाभ पहुंचाया
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