झारखंड-छत्तीसगढ़-उत्तरांचल की तुलनाहेडलाइनआर्थिक विकास तेज लेकिन बढ़ रही गरीबों की संख्यासबहेडप्रति व्यक्ति आय में झारखंड से आगे छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड विनय तिवारी, नयी दिल्लीवर्ष 2000 में झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड का गठन नये राज्य के तौर पर किया गया. अगर हम इन नये राज्यों की तुलना पुराने राज्यों से करें तो पायेंगे कि औद्योगिक वृद्धि दर के मामले में नये राज्यों का रिकार्ड बेहतर रहा है, लेकिन ये राज्य कृषि विकास और सामाजिक विकास के मामले में पिछड़ गये. अगर इन तीनों राज्यों की तुलना एक-दूसरे से करें तो दूसरी तसवीर उभरती है. किसी भी राज्य के विकास में राजनीतिक स्थिरता काफी मायने रखती है. गठन के बाद छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में मजबूत और स्थिर सरकारों का गठन हुआ, लेकिन झारखंड में लगभग 14 साल तक राजनीतिक अस्थिरता रही. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला. इसका नतीजा भी दिख रहा है. हाल में विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक निवेश के लिए झारखंड भारत का तीसरा सबसे पसंदीदा राज्य बना, जबकि छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर और उत्तराखंड इस मामले में काफी पीछे है. किसी राज्य की आर्थिक संपन्नता का एक पैमाना प्रति व्यक्ति आय भी होती है. इस पैमाने पर झारखंड और छत्तीसगढ़ से आगे उत्तराखंड है. उत्तराखंड में वर्ष 2013-14 में प्रति व्यक्ति आय 103716 रुपये थी, जबकि झारखंड में 46131 रुपये और छत्तीसगढ़ में 58547 रुपये थी. यानी प्रति व्यक्ति आय के मामले में झारखंड इन राज्यों से पीछे है. मानव सूचकांक के पैमाने पर अगर तीनों राज्यों का आकलन करें तो झारखंड की स्थिति बेहतर दिखती है. झारखंड में मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख पर 219, छत्तीसगढ़ में 230 और उत्तराखंड में 292 है. लेकिन साक्षरता दर के मामले में झारखंड इन राज्यों से पीछे है. 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक साक्षरता दर 67.6 फीसदी थी, जिसमें पुरुष साक्षरता दर 78.5 फीसदी और महिला साक्षरता दर 56.2 फीसदी थी, वहीं छत्तीसगढ़ में यह आंकड़ा 71 फीसदी है, जबकि पुरुष साक्षरता दर 81.5 फीसदी और महिला साक्षरता दर 60.6 फीसदी थी. उत्तराखंड की बात करें तो वहां साक्षरता दर 79.6 फीसदी, जबकि पुरुष साक्षरता दर 88.3 फीसदी और महिला साक्षरता दर 70.7 फीसदी थी. आर्थिक विकास के पैमाने पर भी इन राज्यों का आंकलन करना जरूरी है. केंद्रीय सांख्यिकी एवं योजना मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014-15 में झारखंड की विकास दर 8.53 फीसदी, छत्तीसगढ़ की 5.86 फीसदी और उत्तराखंड की 9.34 फीसदी है. यानि सबसे तेज गति से आर्थिक विकास करने वाला राज्य उत्तराखंड है. सामाजिक स्थितियां भी राज्य के समग्र विकास की तसवीर को पेश करती है. उत्तराखंड के मुकाबले झारखंड और छत्तीसगढ़ प्राकृतिक संसाधनों के मामले में संपन्न हैं. लेकिन अगर गरीबी के पैमाने पर इन राज्यों का आंकलन करें तो हालात अलग दिखते हैं. एनएसएसओ के आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में 2004-05 में बेहद गरीबों की संख्या 24.2 फीसदी थी, जो 2011-12 में बढ़कर 33.7 फीसदी हो गयी. झारखंड में बेहद गरीबों की संख्या 2004-05 में 15.4 फीसदी थी, जो 2011-12 में बढ़कर 21.4 फीसदी हो गयी, जबकि उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में 2004-05 में बेहद गरीब 9.6 फीसदी थी जो 2011-12 में बढ़कर 14.7 फीसदी हो गयी. वहीं अगर शहरी क्षेत्रों में गरीबी की बात करें तो छत्तीसगढ़ में 2004-05 में यह संख्या 19.8 फीसदी से बढ़कर 2011-12 में 34 फीसदी हो गयी. झारखंड में शहरी गरीबों की संख्या 2004-05 में 14.2 फीसदी से बढ़कर 2011-12 में 18.1 फीसदी हो गयी. वहीं उत्तराखंड में शहरी गरीबों की संख्या 2004-05 में 17.3 फीसदी से बढ़कर 2011-12 में 23.8 फीसदी हो गयी. यानि की इस दौरान इन तीनों राज्यों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या में इजाफा हुआ है. गरीब उन्हें माना जाता है जो ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिमाह 600 रुपये और शहरी क्षेत्र में 850 रुपये से कम खर्च करते हैं. सामाजिक योजनाओं के बावजूद गरीबों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है. ————–विशेषज्ञ की रायगवर्नेंस में सुधार से होगा झारखंड का भलाकन्हैया सिंह, अर्थशास्त्री विकास के लिए 15 साल का समय कम नहीं होता है. झारखंड और छत्तीसगढ़ के उलट उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति अलग है. उत्तराखंड पहाड़ी क्षेत्र है और यहां खनिज संपदा नहीं है. इसके बावजूद उत्तराखंड ने सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में अच्छी तरक्की की है. झारखंड और छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन इन राज्यों में नक्सलवाद की समस्या काफी गंभीर है. झारखंड की तुलना में छत्तीसगढ़ ने औद्योगिक विकास के क्षेत्र में अच्छा काम किया है. छत्तीसगढ़ बिजली उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर है और वहां निजी क्षेत्र ने भी बड़े पैमाने पर निवेश किया है. लेकिन झारखंड में पिछले 15 वर्षों में निवेश के कई प्रस्ताव आये, लेकिन योजनाएं जमीन पर नहीं उतर पायी. राजनीतिक अस्थिरता भी विकास में एक बड़ा बाधक बनी. झारखंड में गवर्नेंस भी एक बड़ी समस्या रही है, जबकि उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में गवर्नेंस का स्तर बेहतर रहा है. पिछले 15 सालों में झारखंड में कोई नया उद्योग नहीं लग पाया. अगर वहां की सरकार बिजली के क्षेत्र में भी बेहतर तरीके से काम करे तो राज्य को आय का एक बड़ा साधन मिल सकता है. झारखंड में कोयले की कमी नहीं है. अगर सरकार सही नीति बनाकर इसपर अमल करे तो झारखंड दूसरे राज्यों को बिजली बेचकर भी काफी पैसा कमा सकता है. एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि बिना आर्थिक विकास के सामाजिक विकास के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है. झारखंड में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या रही है. भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ आम लोगों को सही तरीके से नहीं मिल पाया है. नक्सलवाद की समस्या का समाधान भी विकास से ही संभव है. युवाओं को रोजगार के साधन मुहैया कराने के अलावा सामाजिक स्तर पर लोगों के जीवन में बदलाव लाकर मुख्यधारा से जोड़ने की जिम्मेवारी सरकार की है. झारखंड की सरकारें इस मोरचे पर विफल रही है. उम्मीद है कि नयी सरकार राज्य के समग्र विकास के लिए नीतियां बनायेगी. लेकिन सिर्फ नीतियां बनने से हालात नहीं बदलेंगे, बल्कि इसका सही तरीके से क्रियान्वयन बेहद जरूरी है.
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झारखंड-छत्तीसगढ़-उत्तरांचल की तुलना
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