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एक चापानल के भरोसे 300 आबादी

उदासीनता . महेशपुर के विभिन्न गांवों में जल संकट गहराया महेशपुर में इन दिनों पानी का संकट गहरा गया है. क्षेत्र के ऐसे कई गांव हैं जहां पानी की घोर समस्या है. वहीं कई चानल खराब पड़े हुये हैं. हालात यह है कि एक चापानल पर 300 की आबादी निर्भर है. महेशपुर : सरकार एक […]

उदासीनता . महेशपुर के विभिन्न गांवों में जल संकट गहराया

महेशपुर में इन दिनों पानी का संकट गहरा गया है. क्षेत्र के ऐसे कई गांव हैं जहां पानी की घोर समस्या है. वहीं कई चानल खराब पड़े हुये हैं. हालात यह है कि एक चापानल पर 300 की आबादी निर्भर है.
महेशपुर : सरकार एक तरफ डिजीटल इंडिया का सपना लोगों को दिखा रही है वहीं दूसरी ओर आज भी ऐसे कई गांव हैं जहां बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं है. सबसे अहम बुनियादी जरूरत-पीने के पानी के लिए लोगों को मशक्कत करना पड़ रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की समस्या, गरमी के मौसम में सुरसा की भांति मुंह बाये खड़ी हो जाती है. महेशपुर प्रखंड मुख्यालय से महज करीब तीन किलोमीटर दूर सीमपुर गांव के लगभग 40 घरों में निवास कर रही 300 से अधिक की आबादी, आजादी के 70 साल बाद भी एकमात्र चापानल पर पीने के पानी के लिए आश्रित हैं. गांव में लगा दूसरा सरकारी चापानल खराब पड़ा है.
रविवार अहले सुबह चापानल के समीप अपने-अपने घरों से बरतन लेकर जमा महिलाएं लीखा भूईंमाली, कीपा भूईंमाली, सरस्वती भूईंमाली, पिंकी भूईंमाली, मौसमी भूईंमाली, दुर्गा भूईंमाली, संजू भूईंमाली, लक्खी कर्मकार, शयामली कर्मकार, पुतुल कर्मकार, सुखी कर्मकार, सुहागी कर्मकार, झूमा भूईंमाली, रूपभान भूईंमाली, रिया भूईंमाली, रूबी भूईंमाली, अर्चना भूईंमाली, सोनाली भूईंमाली, मानु भूईंमाली, लतिका मंडल, दया भूईंमाली, चित्रा मंडल, माधुरी सरकार, चमेली भूईंमाली, सुष्मिता सरकार, मनिका दास आदि महिलाओं ने बताया कि इस एकमात्र चापानल से भी काफी देर चलाने के बाद कम मात्रा में पानी निकलता है. चापानल के पास पानी लेने के लिए एकत्रित महिलाओं ने सीमपुर गांव में एक डीप बोरिंग का होना जरूरी बताया है. बताते चलें कि बांसलोई नदी के किनारे बसे गांव के लोग, पानी की मार झेलने को विवश हैं. बात सुनने में अटपटी सी जरूरत लगती है, पर है सच. इन गांव के लोग बरसात में बांसलोई नदी में जलस्तर बढ़ने से गांव में घुसने वाले पानी की मार झेलते हैं और गरमी के मौसम में पेयजल संकट के कारण पीने के पानी की मार झेलते हैं. बरसात के मौसम में होने वाले जल के संचयन हेतु डोभा और तालाब तो बनाये जा रहे हैं. वह भी बरसात के मौसम आने के पहले, ताकि बरसात के पानी का संचय किया जा सके. तो फिर गरमी के मौसम के आने के पहले संबंधित विभाग द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में आम जनता को पेयजल समस्या का सामना न करना पड़े, इसके लिए पूर्व से ही मुकम्मल व्यवस्था क्यों नहीं कर ली जाती है, यह आम लोगों की समझ से परे है.
लोगों को दी गयी कानून की जानकारी

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