लोहरदगा : जिले में घोर पेयजल संकट उत्पन्न हो गया है. पानी के लिए हर तबके के लोग परेशान हैं. कोयल एवं शंख नदी के पूरी तरह सूख जाने के बाद शहरी जलापूर्ति योजना लगभग ठप हो चुकी है.
शहर के कुछ इलाकों में टैंकर से पानी की आपूर्ति की जा रही है जो कि सबके लिए सुलभ नहीं है. जल संकट ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है. शहरी क्षेत्र के लोग तो पानी की तलाश में अहले सुबह ही घर से निकल जाते हैं. जहां पानी उपलब्ध है, वहां भी वहां पानी लेनेवालों की लंबी कतार लगी है. कुआं, तालाब पूरी तरह सूख चुके हैं. चापाकलों का हाल भी बेहाल है. खराब पड़े चापाकल की मरम्मत धरातल के बजाय कागजों में ज्यादा हो रहा है. लोगों की परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है. इस समस्या के निदान को लेकर न तो जनप्रतिनिधियों के पास समय है और न ही सरकारी अधिकारी ही धरातल पर इसका कोई निदान कर रहे हैं. जनता में इस व्यवस्था को लेकर जबरदस्त आक्रोश व्याप्त है.
शहर में तो पानी के लिए हाहाकार मचा है, ग्रामीण इलाकों की स्थिति भी बेहतर नहीं है. गांवों में तो स्थिति और भी खराब है. कुंओं ने जवाब दे रखा है और चापाकल भी पानी के बजाय धुआं देने लगा है. इंसान के साथ साथ जानवर भी परेशान हैं.
प्रखंडों में कुछ वर्षो पूर्व पानी के टैंकर खरीदे गये थे लेकिन वे टैंकर भी कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं. यदि प्रखंड प्रशासन प्रभावित इलाकों में टैंकर से पानी की आपूर्ति कराता तो लोगों को थोड़ी राहत होती लेकिन प्रखंड स्तरीय अधिकारी भी जनता की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहे हैं.
दाह संस्कार के लिए भी पानी बाहर से लाना पड़ रहा है : जिले में जल संकट की भयावह स्थिति हो गयी है. कोयल नदी के सूख जाने के बाद लोगों को दाह संस्कार के लिए भी बाहर से पानी लेकर जाना पड़ रहा है. नदी में एक बूंद भी पानी नहीं है. और यदि किसी का निधन हो रहा है तो लकड़ी एवं अन्य सामग्रियों के साथ पानी की भी व्यवस्था उन्हें करनी पड़ रही है जो कि काफी मुश्किल भरा काम है. नदी में सिर्फ बालू ही बालू नजर आ रहा है. वहां हाथ पैर धोने के लिए भी पानी नहीं है.
चुनावी मुद्दा उठता है, लेकिन निदान नहीं हुआ : लोहरदगा जिला की स्थापना 17 मई 1983 को हुई थी.
उस वक्त से लेकर आज तक इस जिले में पेयजल संकट का कोई स्थायी निदान नहीं किया गया. लगभग हर चुनाव में पानी की समस्या एक चुनावी मुद्दे के रूप में उठता रहा है. चुनाव में नेता इस समस्या के स्थायी निदान का आश्वासन देते हैं लेकिन चुनाव बीतने के बाद जनता की फिक्र उन्हें नहीं होती है. यदि जनता की फिक्र होती तो पानी जैसी बुनियादी समस्या का निदान अब तक हो चुका होता.