लोहरदगा : विधिक जागरूकता शिविर का आयोजन शीला अग्रवाल सरस्वती विद्या मंदिर के प्रांगण में किया गया. इस मौके पर रंजीत कुमार अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सह प्राधिकार के सचिव ने महिलाओं एवं बच्चों को समाज में किस प्रकार से देखभाल एवं सुरक्षा प्रदान करनी है कि जानकारी दी.
उन्होंने कहा कि किशोर न्याय बालकों का अधिनियम 2000 के विषय में जानकारी दी. बताया कि जब कोई किशोर कोई अपराध करता है तो उसे विधि के विरोध में किशोर कहा जाता है. ऐसे बच्चे के विचारण हेतु विशेष प्रावधान बनाये गये हैं.
इसके अंतर्गत बाल आरोपी पर सामान्य प्रक्रिया के अधीन कार्यवाही नहीं की जा सकती है. कुछ अपवादित दशाओं को छोड़ कर बाल आरोपी को जमानत पर तुरंत रिहा करना होगा. उसके लिए सुरक्षित गृह या सुधार गृह की व्यवस्था की गयी है. उन्हें जेल या पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता.
बाल आरोपी पर लगे आरोप की जांच शुरू होने के चार माह के अंदर पूरी हो जानी चाहिए. बाल अपराधी को जेल की सजा नहीं हो सकती. उसे सुधारने या पुनर्वास करने के अलग–अलग आदेश हो सकते हैं.
बाल आरोपी का विचारण किशोर न्याय मंडल द्वारा किया जाता है. इस कानून का द्वितीय भाग जरूरतमंद बच्चों की सुरक्षा एवं संरक्षण से संबंधित है. इसके अंतर्गत वे बच्चे आते हैं, जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया है. जिन्हें सरकार से संरक्षण एवं सुरक्षा बेहद जरूरी है. ऐसे बच्चे जो परित्यक्त, अनाथ, अपंग आदि हैं, उनके लिए हर जिले में बाल कल्याण समिति की स्थापना की गयी है. जो उसकी देखभाल, सुरक्षा, विकास, उपचार, शिक्षा व पुनर्वास के मामलों पर काम करेगी. उनके मूलभूत जरूरतों को पूरा करने की व्यवस्था करेगी.
उन्होंने कहा कि बच्चों के विरूद्ध अपराध करने पर बहुत से कानूनों में कठोर सजा का प्रावधान है. जिसमें बच्चे को किसी भी हिरासत, संरक्षण या देखरेख में बच्चे के साथ डराना धमकाना या मारपीट करने पर इस किशोर न्याय अधिनियम के तहत छह माह तक की कैद हो सकती है.
बच्चों को भीख मंगाने के काम में लगाने पर इस अधिनियम के तहत 3 साल तक का कैद और जुर्माना हो सकता है. भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत बच्चे का अपहरण करने पर 7 साल तक कैद और जुर्माना हो सकता है. बच्चे के भीख मांगने के लिए अपहरण करने पर 10 साल तक की कैद या उम्र कैद हो सकता है. रंजीत कुमार ने बच्चों के लिए बने अन्य कानूनों जैसे बाल विवाह अधिनियम, बाल श्रम प्रतिषेध अधिनियम 1986, फैक्टरी एक्ट 1948 पर प्रकाश डाला.
उन्होंने बताया कि किसी भी बच्चे को खतरनाक उद्योग में काम पर नहीं लगाया जा सकता है. साथ ही विशेष रूप से बच्चों के लिए नये कानून शिक्षा का अधिकार कानून के बारे में बताया. इस संबंध में यह कहा गया कि 14 साल तक के बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है. इस आधार पर भारत का हर बच्च शिक्षा प्राप्त करेगा.
अधिवक्ता तौसिफ मेराज ने कहा कि बच्चों के हित में किस प्रकार से समाज के हर व्यक्ति को कार्य करना चाहिए. उन्होंने कानून द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के विषय में जानकारी दी. मौके पर विद्यालय के प्रधानाध्यापक विमलेश कुमार एवं अन्य शिक्षकगण व छात्र–छात्राएं मौजूद थे.