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सैनिक स्कूल, तिलैया के पूर्ववर्ती छात्र जयप्रकाश ने फतह की माउंट एवरेस्ट

कोडरमा : सैनिक स्कूल तिलैया के पूर्ववर्ती छात्र और वर्तमान में सेना में बतौर लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर तैनात जयप्रकाश कुमार ने विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर लिया है. फुसरो (बोकारो) के रहने वाले जयप्रकाश ने 16 मई की सुबह 8:30 बजे 8848 मीटर ऊंचे एवरेस्ट के शिखर पर […]

कोडरमा : सैनिक स्कूल तिलैया के पूर्ववर्ती छात्र और वर्तमान में सेना में बतौर लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर तैनात जयप्रकाश कुमार ने विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर लिया है. फुसरो (बोकारो) के रहने वाले जयप्रकाश ने 16 मई की सुबह 8:30 बजे 8848 मीटर ऊंचे एवरेस्ट के शिखर पर पांव रखा. उनकी इस उपलब्धि पर सैनिक स्कूल तिलैया में हर्ष का माहौल है. जयप्रकाश ने अगस्त 2017 में माउंट एवरेस्ट विजय की तैयारी शुरू कर दी थी. एनएसजी ने बतौर टीम लीडर जयप्रकाश को चुना और विशेष ट्रेनिंग दी.

केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा ने 29 मार्च 2019 को जयप्रकाश के नेतृत्व में 16 सदस्यीय टीम को माउंट एवरेस्ट के लिए रवाना किया. इसके बाद सभी काठमांडू पहुंचे और यहां तीन दिन रुकने के बाद ट्रेकिंग शुरू की. टीम पांच मई को लुकला पहुंची. जयप्रकाश ने पहले कैंप वन, टू होते हुए 7200 मीटर ऊंचे कैंप थ्री पर पहुंचे.
यहां से 7925 मीटर पर स्थित कैंप-4 पर पहुंचे. कैंप-4 से 15 मई की रात 8:30 बजे एवरेस्ट के लिए निकले और 12 घंटे के बाद 16 मई की सुबह 8:30 बजे 8848 मीटर ऊंचे जगह पर पहुंच तिरंगा फहराया.
बर्फबारी और बर्फीले तूफान में भी आगे बढ़ते रहे
प्रभात खबर से बातचीत में लेफ्टिनेंट कर्नल जयप्रकाश ने बताया कि उन्हें शुरू से ही माउंटेनिंग का शौक रहा है. सैनिक स्कूल तिलैया में 1991-98 तक पढ़े जयप्रकाश वर्तमान में मनेसर, गुडगांव में कार्यरत हैं. इनका परिवार फुसरो में ही रहता है. पिता दयानंद प्रसाद व्यवसायी हैं, जबकि मां रामकली देवी गृहिणी हैं. जयप्रकाश ने स्कूलिंग के बाद 2004 में आर्मी ज्वाइन की.
देहरादून में ट्रेनिंग पूरी कर 2005 में कमिशंड हुए. अगस्त 2017 में एनएसजी ने उन्हें बतौर टीम लीडर माउंट एवरेस्ट अभियान के लिए चुना. ट्रेनिंग पूरी कर 16 सदस्यीय टीम में से 12 लोगों ने चढ़ाई शुरू की. उनका आठ सदस्यों का ग्रुप था, जिसमें से एक बीच में से वापस आ गया. अंत में सात सदस्य शिखर पर पहुंचे. जयप्रकाश ने बताया कि चार अन्य सदस्य बुधवार की सुबह ही शिखर पर पहुंचे हैं.
कहा कि स्कूल का झंडा दो सालों से उनका साथी बना हुआ है और उन रास्तों की भी यात्रा की जो बेहद मुश्किल थे. खराब मौसम में भी ये मेरे साथ रहा. स्कूल का झंडा बर्फबारी और बर्फीले तूफान में साथी और रक्षक बना रहा और फिर इसने विश्व की सबसे ऊंची चोटी को भी जीत लिया.

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