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टाटा स्टील व सरकार के बीच फंसे दुकानदार
जमशेदपुर : शहर के सभी दस बाजारों की स्थिति दिनोंदिन बदतर होती जा रही है. बाजार का मालिक कौन है, अब तक यह तय नहीं हो पाया है. टाटा स्टील अपना बाजार ऑफिस संचालित कर रही है तो टाटा स्टील को सैरात की जमीन का नवीकरण तक नहीं हो पाया है. यही नहीं, राज्य सरकार […]
जमशेदपुर : शहर के सभी दस बाजारों की स्थिति दिनोंदिन बदतर होती जा रही है. बाजार का मालिक कौन है, अब तक यह तय नहीं हो पाया है. टाटा स्टील अपना बाजार ऑफिस संचालित कर रही है तो टाटा स्टील को सैरात की जमीन का नवीकरण तक नहीं हो पाया है. यही नहीं, राज्य सरकार का कहना है कि सैरात (बाजार) की जमीन उन लोगों के अधीन है.
टाटा स्टील व जुस्को से लेनी होती है इजाजत. दुकानदारों को किसी भी काम के लिए टाटा स्टील या जुस्को से इजाजत लेनी पड़ती है. नगर निकायों का भी हस्तक्षेप हो जाता है.
टैक्स की दोहरी वसूली. टैक्स की वसूली में भी दोहरा तरीका अपनाया जाता है. ट्रेड टैक्स जेएनएसी वसूलती है. इनकम टैक्स, वैट तो अलग से है. वहीं टाटा स्टील को भी मंथली रेंट व डेली टोल दुकानदारों को देना पड़ता है. टाटा स्टील द्वारा आवंटियों से 2015 में 27. 63 लाख रुपये राजस्व की वसूली की गयी थी. आवंटियों से वसूल किये जाने वाले राजस्व दर निर्धारण में राज्य सरकार/ जिला प्रशासन की वर्तमान में कोई भूमिका नहीं है.
1984 में अंतिम बार टाटा स्टील के साथ की गयी थी बंदोबस्ती
दस सैरात टाटा स्टील के नियंत्रणधीन था. जमींदारी उन्मूलन के पश्चात 1 अगस्त 1984 को बिहार सरकार एवं टाटा स्टील लि. के बीच लीज समझौते के आधार पर सैरात की बंदोबस्ती टाटा स्टील के साथ की गयी थी. 1984 के पश्चात प्रत्येक तीन वर्ष में फिक्स्ड जमा को पुनरीक्षित करते हुए राज्य सरकार के निर्देशानुसार टाटा स्टील के साथ नियमित बंदोबस्ती की जाती रही है. 20 अगस्त 2005 को झारखंड सरकार एवं टाटा स्टील के बीच हुए लीज समझौते में सैरात की बंदोबस्ती किये जाने का कोई उल्लेख नहीं है. झारखंड सरकार द्वारा भी टाटा स्टील के साथ समय-समय पर पुनरीक्षित फिक्स्ड जमा पर सैरात की बंदोबस्ती की गयी है. टाटा स्टील के साथ की जा रही सैरात की बंदोबस्ती हेतु फिक्स्ड जमा का निर्धारण मात्र एक बार 1984 में किया गया अौर उसके बाद समय-समय पर फिक्स्ड जमा की निर्धारित वार्षिक वृद्धि होती रही. कभी खुली नीलामी के आधार पर जमा का निर्धारण नहीं किया गया.
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