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आदिम जनजाति बिजली, पानी-सड़क से आज भी वंचित

पटमदा. आजादी के 65 वर्षों बाद भी पटमदा का एक गांव ऐसा है जहां रहनेवालों को जीवन की मूलभूत सुविधाओं से अब तक वंचित रखा गया है. यहां न अब तक बिजली पहुंची है, न पीने के पानी की कोई सुविधा और न ही सड़क है. पटमदा प्रखंड से मात्र आठ किलोमीटर दूर गोबरघुसी पंचायत […]

पटमदा. आजादी के 65 वर्षों बाद भी पटमदा का एक गांव ऐसा है जहां रहनेवालों को जीवन की मूलभूत सुविधाओं से अब तक वंचित रखा गया है. यहां न अब तक बिजली पहुंची है, न पीने के पानी की कोई सुविधा और न ही सड़क है. पटमदा प्रखंड से मात्र आठ किलोमीटर दूर गोबरघुसी पंचायत के लड़ाइडुंगरी में आदिम जनजातियों का सबर टोला हैं. चारों अौर जंगल व पहाड़ से घिरे लड़ाइडुंगरी गांव में 60 सबर परिवार रहते हैं.

इस गांव के सुरेश सबर, दुर्योधन सबर, उपेंद्र सबर, खगेन सबर, लालटू सबर, सुभाष सबर आदि बताते हैं कि उसके गांव से दो किलोमीटर दूर गोबरघुसी में बिजली है, पर उनके गांव में आज तक बिजली नहीं दी गयी. बिजली के लिए कई बार संबंधित विभाग से गांव वाले आवेदन के साथ गुहार भी लगायी, पर उनपर कोई असर नहीं हुआ. पानी की सुविधा के लिए गांव में टीएसआरडीएस द्वारा एक सोलर बोरिंग की व्यवस्था की गयी थी, जो पिछले एक साल से खराब है. सोलर पैलेट शायद काम भी करता हो, लेकिन मोटर खराब होने के कारण दोनों बेकार पड़ा हुआ है. जिसके कारण बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक कुआं व खाल का पानी पीने को विवश हैं. गोबरघुसी दुर्गा मंदिर से कुमारडंुगरी होते लड़ाइडुंगरी तक बनने वाली सड़क का निर्माण कार्य पिछले एक वर्ष से बंद पड़ा है. उन्होंने बताया कि उनके परिवारों को सरकार द्वारा आज तक बिरसा आवास की सुविधा उपलब्ध नहीं करायी गयी है. जिसके कारण ये लोग जर्जर मिट्टी के घरों में रहने को विवश हैं. सबर परिवारों का रोजगार का एक मात्र साधन जंगल है. ये लोग जंगल से सूखी लकड़ी, फल व फूल को बाजारों में बेच कर अपनी जीविका चलाते हैं. गांव में आंगनबाड़ी केंद्र में सुविधाओं का बेहद अभाव है. गांव के ज्यादातर बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. कड़ाके की ठंड में भी ये खुले बदन घूमने को मजबूर हैं.

शिकायत के बाद भी नहीं होता समाधान : मुखिया सह प्रमुख खगेंद्र नाथ सिंह ने बताया कि मूलभूत समस्याअों के संबंध में संबंधित अधिकारियों से शिकायत किये जाने के बाद भी समाधान नहीं हो पाता है. गांव में बिजली सुविधा मुहैया कराये जाने के लिए विद्युत विभाग को कई बार लिखित शिकायत की गयी है. आदिम जनजातियों को बिरसा आवास की मांग की गयी है. सड़क निर्माण को लेकर कई बार बैठक की गयी, पर समाधान नहीं हुआ.

आस पास आदिम जनजातियों के कई गांव हैं सरकारी सुविधाअों से वंचित : प्रदीप

पूर्व जिला परिषद सदस्य प्रदीप बेसरा ने बताया कि सिर्फ लड़ाइडुंगरी गांव ही नहीं बल्कि काशीडीह, कुआरमा, कमारडुंगरी, जेरका आदि सबर टोला भी बुनियादी सुविधाअों से वंचित हैं. बिजली के अभाव में आज भी डिबरी की जिंदगी जीने को मजबूर है, स्वच्छ पेयजल के अभाव में खाल का पानी पीने की बाध्यता है. भोजन के अभाव में भूख लगने पर आज भी सांप, मेढ़क, चूहा व जंगली पशु-पक्षी खाने को मजबूर हैं.

आखिर कब पूरा होगा सड़क निर्माण का कार्य : नी लरतन. पूर्व मुखिया निलरतन पाल ने बताया कि आखिर कब पूरा हो पायेगा लड़ाइडुंगरी सबर टोला तक बनने वाली सड़क निर्माण का कार्य. गांव में सड़क निर्माण के नाम पर बड़ी-बड़ी गिट्टी बिछा कर आखिर कहां गायब हो गये ठेकेदार. गिट्टी के कारण सड़क पर मोटरसाइकिल, साइकिल व पैदल चलना भी लोगों को मुश्किल हो रहा है. हम लोगों की सुनने वाला कोई नहीं है.

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