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हाथ नहीं तो क्या, पैरों में है जादू

जमशेदपुर: मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है ओड़िशा के एक छोटे से गांव के रहनेवाले गोविंदो मुर्मू का हौसला भी कुछ ऐसा ही है. पांच साल की उम्र में अपना दायां हाथ गंवा चुके गोविंदो ने फुटबॉल को अपना जीवन […]

जमशेदपुर: मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है ओड़िशा के एक छोटे से गांव के रहनेवाले गोविंदो मुर्मू का हौसला भी कुछ ऐसा ही है. पांच साल की उम्र में अपना दायां हाथ गंवा चुके गोविंदो ने फुटबॉल को अपना जीवन बना लिया है. टाटा स्टील की ओर से आर्मरी ग्राउंड में आयोजित अंडर-10 फुटबॉल प्रतियोगिता में उसे बेस्ट प्लेयर चुना गया. डिफेंडर होने के बावजूद उसने प्रतियोगिता के तीन मैचों में छह गोल दागे.
गोविंदो के हौसले के आगे ये आंकड़े बेमानी हैं. यह उसका जज्बा ही है कि सामान्य बच्चों के बीच में खेलते हुए भी वह बेहद सहज होता है. उसकी नजर गेंद पर होती है, अपने कट चुके हाथ पर नहीं. यह उसका आत्मविश्वास ही होता है, जो डिफेंडर के पोजिशन पर खेलते हुए भी विरोधी टीम के खिलाड़ियों के बीच से गेंद छीनते हुए उसे सामने के गोल पोस्ट तक पहुंचा देता है. वह अपना संतुलन कभी नहीं खोता. ना मानसिक, ना शारीिरक.
ओड़िशा के क्योंझर जिला स्थित बामनीपाल के रसोल गांव के प्राइमरी स्कूल में छठी का छात्र है. वह फिलहाल नौ साल का है. गोविंदो के पिता जगन्नाथ मुर्मू किसान हैं. उन्हें इस बात का हमेशा अफसोस रहता है, कि गोविंदो का एक हाथ खेत में काम करने के दौरान हादसे का शिकार हो गया. दरअसल, वर्ष 2012 में गोविंदो अपने पिता के साथ खेत में काम करने गया हुआ था. बारिश का मौसम था, फसल की सिंचाई हो रही थी. खेत में हाईटेंशन का बिजली तार गिरा हुआ था, जिसे गोविंदो ने छू दिया. इसके बाद उसका दाहीना हाथ पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया. स्थानीय डॉक्टरों ने गोविंदो को कटक रेफर किया जहां दायां हाथ काटना पड़ा. उस वक्त गोविंदो केवल छह साल का था. गोविंदो के चार भाई और तीन बहनें हैं. गोविंदो पांच साल की उम्र से ही फुटबॉल का दीवाना था. लेकिन इस हादसे ने तो जैसे सबकुछ खत्म कर दिया हो. उसके पिता हताश हो चुके थे. पर गोविंदो नहीं टूटा. पहली बार जब टाटा स्टील द्वारा स्थापित बामनीपाल फीडर सेंटर में उसने ट्रॉयल दिया तो वहां चयनकर्ताओं व कोचों ने उसे रिजेक्ट कर दिया. पर उसका हौसला पहाड़ सा था.

गोविंदों ने निरंतर अभ्यास जारी रखा. बामनीपाल फीडर सेंटर के कोच ने गोविंदो की फुटबॉल के प्रति रुचि देखकर पहले उसे तीन महीने की विशेष ट्रेनिंग दी. इसके बाद जब वह सामान्य तौर पर खेलने लगा. फिर उसे बामनीपाल की टीम में शामिल कर लिया गया. 2014 से वह कोच मानस टुड्डू की देख-रेख निरंतर ट्रेनिंग ले रहा है. गोविंदो अपनी टीम के सबसे ताकतवर डिफेंडर हैं और जब मौका मिलता है गोल भी दाग आते हैं. गोविंदो का हौसला देखे टीएसआरडीएस उसे पूरा सहयोग कर रहा है.

मैं बस फुटबॉल खेलना चाहता हूं : गोविंदो
पहले एक हाथ नहीं होने से थोड़ा असहज महसूज करता था, लेकिन अब मेरे लिए यह एक सामान्य बात है. मुझे खेलने में मजा आता है और मैं भविष्य में एक अच्छा खिलाड़ी बनना चाहता हूं.
गोविंदो मुर्मू, डिफेंडर, बामनीपाल टीम

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