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मौसम के मारे व्रती लगा रहे हैं एक ही रट

‘…सूरु ज होईं ना सहाय!’वरीय संवाददाता, जमशेदपुर सबकी निगाहें ‘सूरु ज देव’, और ‘छठि मइया’ पर टिकी हैं, ‘बरत (व्रत) ठीक-ठाक पार लगाईं हे छठि माई.’ हर व्रती की जुबान पर एक ही गीत के बोल बार-बार आ रहे हैं, ‘सूरु ज होईं ना सहाय’, ‘छठि माई होईं ना सहाय.’ छठ व्रतियों की सांसें रु […]

‘…सूरु ज होईं ना सहाय!’वरीय संवाददाता, जमशेदपुर सबकी निगाहें ‘सूरु ज देव’, और ‘छठि मइया’ पर टिकी हैं, ‘बरत (व्रत) ठीक-ठाक पार लगाईं हे छठि माई.’ हर व्रती की जुबान पर एक ही गीत के बोल बार-बार आ रहे हैं, ‘सूरु ज होईं ना सहाय’, ‘छठि माई होईं ना सहाय.’ छठ व्रतियों की सांसें रु की हुई हैं, ‘क्या होगा, कैसे होगा? प्रसाद के लिए ठेकुआ बनाने का गेहूं तो धुलाया-सूखा नहीं, पता नहीं, अर्घ देने घाट जाना भी संभव होगा कि नहीं इस बार.’ लोक आस्था के महापर्व छठ के मात्र दो दिन रह गये हैं, लेकिन मौसम की बेरु खी के कारण छठ व्रती भारी कठिनाई में हैं. छठ के प्रसाद के लिए गेहूं नहीं धोया जा सका, क्योंकि धोने पर धूप नहीं निकलने की स्थिति में उसे इतने कम समय में सुखाना संभव नहीं होगा. व्रती इसके लिए पंडित-पुरोहितों के बताये वैकिल्पक उपाय अपनाने को मजबूर हुए हैं, किन्तु चिंता अब भी बनी हुई है. मौसम साफ नहीं हुआ तो ‘सूरुज देव’को अर्घ देने घाट पर कैसे जायेंगे. और हताश व्रती बस ‘छठि मइया’ और ‘सूरु ज देव’ से ही गुहार लगा रहे हैं, ‘…सूरु ज होईं ना सहाय!’,’छठि मइया होईं ना सहाय!’ लेकिन सूर्य देव व्रतियों की प्रार्थना सुन कर भी द्रवित होते नहीं दिख रहे, उनके बादलों की ओट से बाहर आने, धूप निकलने के कोई लक्षण नहीं दिख रहे.

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