जमशेदपुर : 1935 में झाेपड़ा मस्जिद के नाम से तामिर की गयी शास्त्रीनगर की मस्जिद का लुक बदल चुका है. इसका नया नाम मस्जिद ए फारुखी हाे गया है. मुख्य मार्ग पर बनी फारुखी मस्जिद दिखने में भले ही छोटी है, लेकिन आर्किटेक्ट ने इसे इतना बेहतर डिजाइन किया है कि उससे नमाजियाें काे तनिक भी परेशानी नहीं होती है.
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झाेपड़ा मस्जिद का बदला लुक, अब हुई मस्जिद ए फारुखी
जमशेदपुर : 1935 में झाेपड़ा मस्जिद के नाम से तामिर की गयी शास्त्रीनगर की मस्जिद का लुक बदल चुका है. इसका नया नाम मस्जिद ए फारुखी हाे गया है. मुख्य मार्ग पर बनी फारुखी मस्जिद दिखने में भले ही छोटी है, लेकिन आर्किटेक्ट ने इसे इतना बेहतर डिजाइन किया है कि उससे नमाजियाें काे तनिक […]
मस्जिद में एक साथ दो हजार से अधिक नमाजी सजदा करते हैं. वर्तमान में दो मंजिला यह मस्जिद पूरी तरह से एसी है. इसमें जुस्काे की बिजली है, बावजूद इसके 20 केवी का डीजी सेट लगाया गया है. कमेटी के अध्यक्ष हाफिज असरार अहमद, उपाध्यक्ष शमशेर खान, सचिव मोहम्मद सलाउद्दीन व कोषाध्यक्ष अनवर
हुसैन हैं.
हाफिज असरार अहमद ने बताया कि 70 साल पुरानी मस्जिद को नया लुक देने में हर किसी का सहयोग मिला है. मस्जिद के सामने के हिस्से को बेहतर डिजाइन किया गया है. मस्जिद परिसर में मकतब भी चलता है, जहां बच्चों को दीनी और दुनियावी शिक्षा प्रदान की जाती है.
…अलयौमा अकमलतो लकुम दीनकुम
अल्लाह तआला ने कुरआन ए मजीद में आखिरी आयत अलयौमा अकमलतो लकुम दीनकुम व अतममतो अलैकुम निअमती व रजीतो लकुमुल इस्लाम दीनन नाजिल फरमा कर दीन ए इस्लाम को मुकम्मल फरमाया. जब अल्लाह के पैगंबर मोहम्मद सअ. इस दुनिया से चले गये, तो उस समय इस्लाम पूरे अरब में फैल चुका था. इस उम्मत में पहला फितना जकात देने से इनकार करने वालों का था. इसे दबाने के लिए हजरत अबूबकर सिद्दिक रजि. ने उससे जंग की और उस फितने को मिटा दिया. यह देख कर हजरत उमर फारूक रजि. ने संदेह व्यक्त किया कि कहीं दूसरा फितना उठकर कुरआन को नुकसान न पहुंचा दे.
उस समय के बड़े-बड़े सहाबा ए कराम को उन्होंने एकत्र किया और आपस में विचार-विमर्श कर कुरआन ए पाक को क्रमवार करने में लग गये. मदीना के चारों ओर ऐलान किया गया कि जिसके पास कुरआन का जितना हिस्सा महफूज हो, वह लाकर दे दे. उसी शख्स का कुरआन का हिस्सा कुबूल किया जाता था, जिसका किसी दूसरे के हिस्से से मेल खाता था.
हाफिज असरार अहमद
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