सौ साल पहले छोटानागपुर में आदिवासियों की बहुत दयनीय स्थिति थी़ सुदूर गांवों में गरीबी, अशिक्षा, बीमारी व अंधविश्वास से आदिवासी ग्रसित थे. उन तक सरकारी तंत्र नहीं पहुंचती थी़ जहां सरकार नहीं पहुंची, वहां ईसाई मिशनरी जाकर शिक्षा, स्वास्थ्य व सामाजिक चेतना लाकर लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने का काम किया है.
कुछ जमीनदारों व दबंगों की अब नहीं चलने लगी. चूंकि आदिवासी अब मूक गाय नहीं रह गये हैं, अब वे बोलने लगे हैं. शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने लगे हैं. इससे दबंगों को तकलीफ होने लगी़ आदिवासी आवाज को दबाने का षड्यंत्र खोजा जाने लगा़ अनुच्छेद 28 में कुछ शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता है़ इसी संवैधानिक प्रावधान के तहत ईसाई भी अपने धर्म को मानते है़ं, आचरण करते हैं और प्रचार करते हैं. वे कोई असंवैधानिक कार्य नहीं कर रहे है़ं.
अगर सरकार को लगता है कि असंवैधानिक कार्य हो रहा है, तो पहले से इसके लिए कानून है़ सरकार इन कानूनों का प्रयोग क्यों नहीं करती है़ दरअसल सरकार के पास जबरन या प्रलोभन धर्मांतरण का सबूत नहीं है़ भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष और स्वतंत्र देश में जबरन या प्रलोभन से धर्मांतरण कितना संभव है. ईसाइयों पर आरोप लगता है कि वे भोले-भाले लोगों को जबरन धर्मांतरण कराते है़ं हमारी जानकारी में अब तक एक भी सबूत नहीं है़.