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हवन के साथ भागवत कथा का समापन

मिहिजाम : नगर के छाताडंगाल में आयोजित सात दिवसीय भागवत कथा का समापन रविवार को हवन एवं पूर्णाहूति के साथ हो गया. भागवत कथा के अंतिम दिन भी श्रद्धालुओं की अत्यधिक कार्यक्रम स्थल पर देखी गई. समापन के मौके पर अयोध्या से पधारे महाराज तुलसीराम शास्त्री ने श्रीकृष्ण के पट रानियों के विवाह और राजा […]

मिहिजाम : नगर के छाताडंगाल में आयोजित सात दिवसीय भागवत कथा का समापन रविवार को हवन एवं पूर्णाहूति के साथ हो गया. भागवत कथा के अंतिम दिन भी श्रद्धालुओं की अत्यधिक कार्यक्रम स्थल पर देखी गई. समापन के मौके पर अयोध्या से पधारे महाराज तुलसीराम शास्त्री ने श्रीकृष्ण के पट रानियों के विवाह और राजा परीक्षित के मोक्ष का प्रसंग भक्तजनों को विस्तार से बताया. वहीं सोमवार को कथा स्थल शिवमंदिर के प्रांगण में पूर्णाहूति एवं भंडारा का आयोजन किया गया था.

पूर्णाहूति में मुख्य यजमान लखन रजक सहित दर्जनों श्रद्धालुओं ने हवन कार्यक्रम में भाग लिया. इसके बाद भंडारा के रूप में श्रद्धालुओं के बीच खिचड़ी का वितरण किया गया. इसके पूर्व भागवत कथा के अंतिम प्रसंग सुनाते हुए महाराज तुलसीराम शास्त्री ने कहा कि परब्रह्म की संपूर्ण कलाओं के साथ अवतरित हुए भगवान श्रीकृष्ण की 16 हजार 100 पट रानियां थी. जहां एक ओर महाभारत में सभी रानियों और पट रानियों से विवाह की कथा दी गई है. वहीं शास्त्राकार इन कथाओं में छिपे गूढ़ रहस्य को बताते हैं कि कृष्ण का अर्थ है. अंधकार में विलीन होने वाले संपूर्ण को अपने में समा लेना. इसी भांति राधा शब्द भी धारा का उल्टा है. जहां धारा किसी स्रोत से बाहर आती है वहीं राधा का अर्थ है वापिस अपने स्रोत में समा जाना. यही कारण है कि बिना विवाह के भी राधाकृष्ण युगल को हिन्दू धर्मों में शिवपार्वती जैसी भावना के साथ देखा जाता है.

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