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जपला सीमेंट फैक्ट्री का अस्तित्व समाप्ति के कगार पर

हुसैनाबाद : 28 मई 1992 से देश व विदेशों में ख्याति प्राप्त पलामू प्रमंडल का एक मात्र जपला सीमेंट फैक्ट्री प्रबंधक व सरकार की लापरवाही के कारण फैक्ट्री का अस्तित्व अब समाप्ति की ओर है. 26 वर्षों तक बंद पड़ी जपला सीमेंट फैक्ट्री को खुलवाने के नाम पर कई राजनीतिक दलों के लोगों ने मजदूरों […]

हुसैनाबाद : 28 मई 1992 से देश व विदेशों में ख्याति प्राप्त पलामू प्रमंडल का एक मात्र जपला सीमेंट फैक्ट्री प्रबंधक व सरकार की लापरवाही के कारण फैक्ट्री का अस्तित्व अब समाप्ति की ओर है. 26 वर्षों तक बंद पड़ी जपला सीमेंट फैक्ट्री को खुलवाने के नाम पर कई राजनीतिक दलों के लोगों ने मजदूरों को केवल ठगने का काम किया. चुनाव आते ही यह मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए खास हो जाता था, जिससे मजदूरों में यह उम्मीद जाग जाती थी कि फैक्ट्री का कायाकल्प होगा. फिर से सुनहरे दिन लौटेंगे, लेकिन फैक्ट्री खुलने नहीं, बल्कि पटना उच्च न्यायालय द्वारा इस फैक्ट्री की नीलामी की खबर सुन कर मजदूरों में मायूसी छायी हुई है.

मालूम हो कि जपला सीमेंट फैक्ट्री की स्थापना 1917 में अंग्रेज के शासन काल में हुआ था. जो पलामू जिला के सोन नदी के किनारे 120 एकड़ में अवस्थित है. वहीं सोन नदी के दूसरे छोर बौलिया जिला रोहतास बिहार में इस फैक्ट्री का अपना कैपटिव माइंस है.जो 11 सौ एकड़ तक फैला है. माइंस से फैक्ट्री का लाईन स्टोर के लिए कंपनी ने प्रारंभिक काल से ही रोपवे बनाया था. इसके अलावा इस फैक्ट्री का अपना 12.5 मेगा वाट का पावर हाउस ,चार किलन ,वर्क सौप ,लेबोट्री के अलावा बाहर सीमेंट भेजने के लिए फैक्ट्री तक रेलवे लाईन बिछायी गयी
थी. इस फैक्ट्री ने अपना पहला उत्पादन 16 मार्च 1921 में किया. इसकी पहचान बाजारों में सोन भेली पोर्ट-लैंड सीमेंट जपला के नाम से हुई. शुरू से ही यह फैक्ट्री कभी भी घाटे में नहीं रही. इस फैक्ट्री का वार्षिक उत्पादन क्षमता 250,000 टन था. 1951 से 1983 तक इस फैक्ट्री में 91.63 प्रतिशत लाभ कमाया.1953 में जपला सीमेंट फैक्ट्री गुणवता के मामले में विश्व में प्रथम स्थान प्राप्त कर भारत को सम्मान दिलाने का गौरव प्राप्त हुआ था.1954 के बाद यह फैक्ट्री कई उद्योगपति द्वारा संचालित हुआ. जिसमें डालमिया ग्रुप ,आनंदी लाल पोदार ग्रुप ,एपी जैन के नाम शामिल है. 23 फरवरी 1984 को सिन्हा ग्रुप के हाथों में यह फैक्ट्री चला गया.
84 के बाद से ही इस फैक्ट्री में कार्यरत पांच हजार मजदूर व फैक्ट्री पर ग्रहण लगना शुरू हो गया.सिन्हा ग्रुप के हाथ आते ही इसका वार्षिक उत्पादन कम होने लगा. प्रबंधक ने एक साजिश के तहत बैंक व सरकारी वित्तीय सहायता लेने के लिए 1985 में ताला बंदी कर दिया. कंपनी के निर्देशक एसपी सिन्हा ने वाइफर दिल्ली के माध्यम से फैक्ट्री के पुर्नवास योजना के लिए 25 करोड 44 लाख रुपये की मांग की. बीआइएफआर ने इस योजना को स्वीकार कर 14 अक्तूबर 1989 को विभिन्न बैंकों से 22 करोड़ 24 लाख की राशि पुर्नवास योजना नाम पर दिलायी गयी.
वित्तीय सहायता लेने के बाद जनवरी 1991 से मई 1992 तक 17 महीना फैक्ट्री चलाकर बिहार सरकार द्वारा ढाई करोड़ नहीं देने का बहाना बनाकर पुन: 29 मई 1992 को बंद कर दिया. जिसके चलते पांच हजार कार्यरत मजदूर व उनके आश्रित परिवार बेकार हो गये. कई मजदूरों की मौत हो गयी.वह उनके आश्रित इस आस में बैठे थे कि कभी ना कभी फैक्ट्री का कायाकल्प होगा. वर्तमान प्रबंधक के पास मजदूरों का वेतन भविष्य निधि आदि लगभग 25 करोड़ बकाया है. नीलामी प्रक्रिया होने के बाद भी मजदूरों का बकाया पैसा पटना उच्च न्यायालय द्वारा लोगों को मिल पायेगा या नहीं . यह एक सोचनीय विषय है.
सीएम से लेकर पीएम तक के वादे बेकार
जपला सीमेंट फैक्ट्री खुलवाने को लेकर पीएम से लेकर सीएम व कई राजनीतिक दल के लोगों द्वारा दिया गया आश्वासन बेकार रहा. 2014 लोक सभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने डालटनगंज चियाकी हवाई अड्डा परिसर में चुनावी सभा में यह वादा किया था कि केंद्र में हमारी सरकार बनती है, तो पहली प्राथमिकता जपला सीमेंट फैक्ट्री खुलवाने की रहेगी.वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित साह ने लोक सभा चुनाव के दौरान हुसैनाबाद में चुनावी सभा में इस फैक्ट्री को खुलवाने की बात कही थी.जबकि झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री रघुवर दास हरिहरगंज में आयोजित सामूहिक शादी कार्यक्रम में जपला सीमेंट फैक्ट्री शीघ्र खुलवाने की बात कही थी.
वर्तमान सांसाद बीडी राम ने भी इस फैक्ट्री को लेकर सांसद भवन में आवाज उठायी थी.और उन्होंने आश्वस्त किया था की फैक्ट्री खुलने जा रही है. वहीं स्थानीय विधायक कुश्वाहा शिवपूजन मेहता ने यहां तक कह डाला की अगर जपला सीमेंट नही खुला तो मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा.
प्रबंधक व सरकार जिम्मेवार : पूर्व विधायक
पूर्व विधायक संजय कुमार सिंह यादव ने कहा कि आज जो फैक्ट्री नीलाम हो रही है, उसका सबसे बड़ा जिम्मेवार फैक्ट्री का प्रबंधक व रघुवर सरकार है. इस सरकार को गरीब व मजदूरों की फिक्र नहीं है, लेकिन मजदूरों को गुमराह करने के लिए झूठा आश्वासन दिया जाता था. उन्होंने कहा कि मेरे विधायकी काल में मैंने मजदूरों को कभी भी जपला सीमेंट फैक्ट्री के नाम पर झूठा आश्वासन नहीं दिया. मुझे शुरू से ही इस प्रबंधक पर भरोसा नहीं था. सुनने के बाद अफसोस हो रहा है कि यह जपला सीमेंट फैक्ट्री का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा.जपला की पहचान जपला सीमेंट फैक्ट्री से थी .

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