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500 वर्ष पुराना है मलूटी के काली पूजा का इतिहास

शिकारीपाड़ा : ऐतिहासिक पर्यटन स्थल मलूटी में 500 वर्षों से काली पूजा का आयोजन किया जा रहा है. कहा जाता है कि राजा बाज बसंत ने 1520 ई में मलूटी को अपना आश्रय स्थल बनाया था और इसके लिए यहां जंगलों को साफ कर यहां एक गांव बसाया. उसी समय राजा ने अपने गुरु के […]

शिकारीपाड़ा : ऐतिहासिक पर्यटन स्थल मलूटी में 500 वर्षों से काली पूजा का आयोजन किया जा रहा है. कहा जाता है कि राजा बाज बसंत ने 1520 ई में मलूटी को अपना आश्रय स्थल बनाया था और इसके लिए यहां जंगलों को साफ कर यहां एक गांव बसाया. उसी समय राजा ने अपने गुरु के आदेश पर काली पूजा की शुरुआत की थी.
राजा के वंशज सुदीन राय, निलोत्पल राय, श्यामल राय आदि के अनुसार बंगला पंचाग के मुताबिक कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष, चतुदर्शी व अमावस्या को मां काली की पूजा-अर्चना की जाती है. पहले स्थानीय व अन्य जगहों के कलाकारों द्वारा बांग्ला जात्रा का भी मंचन किया जाता था, लेकिन अब उसकी जगह मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. वर्तमान समय में यहां आठ जगहों पर काली की प्रतिमा स्थापित कर देवी की पूजा-अर्चना की जाती है.
बजार काली, धुलार काली, बांदार काली, श्मशान काली, वामदेवपुर काली, राजारवाडीर काली, छाया तरफ काली व हैबर काली के नाम से प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है. काली पूजा के आयोजक सुदीन राय, कुशल राय, आलोय राय, तपन राय, बबलू मुखर्जी आदि के अनुसार यहां सात स्थानों में बलि प्रथा से पूजा की जाती है. मलूटी गांव में इस अवसर पर विदेशों व देश के विभिन्न जगहों से लोग पहुंचते हैं.

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