डीवीसी के बकाया के लिए हम कैसे हुए गुनहगार?. सरकारी स्तर का मामला, भुगत रहे धनबादवासी
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बिल देकर भी हमारे हिस्से में अंधेरा
डीवीसी के बकाया के लिए हम कैसे हुए गुनहगार?. सरकारी स्तर का मामला, भुगत रहे धनबादवासी धनबाद में बिजली संकट गहरा गया है. बरसात के इस मौसम में, जब ऐसे ही बादलों के कारण रोशनी कम होती है और गरमी पसीना छुड़ा रही होती है, बिजली रानी नखरे दिखा रही है. लोगों का सवाल है […]
धनबाद में बिजली संकट गहरा गया है. बरसात के इस मौसम में, जब ऐसे ही बादलों के कारण रोशनी कम होती है और गरमी पसीना छुड़ा रही होती है, बिजली रानी नखरे दिखा रही है. लोगों का सवाल है कि बिजली बिल नियमित देने के बाद यह हाल क्यों?
धनबाद : बिजली संकट से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है. डीवीसी सुबह में दो घंटे और शाम को ढाई घंटे शेडिंग कर रहा है. जबकि ऊर्जा निगम कभी भी बिजली गुल कर देता है. कभी थंडरिंग के नाम पर, कभी विभिन्न प्रकार की गड़बड़ियों के नाम पर. हालत यह है कि बिजली की कमी से इंवर्टर भी जवाब दे देता है.
अलबत्ता उन गिने चुने नेता-अफसर और संपन्न लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, जो जेनरेटर का उपयोग करते हैं. चुनाव लड़ने के दौरान निर्बाध बिजली का वादा करने वाले हमारे जनप्रतिनिधि लाचार नजर आ रहे हैं. वे पूछने पर बयान भर दे देते हैं. विपक्ष भी सरकार की आलोचना से ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं है. जनता रोना-धोना करती है. इसका किसी पर असर नहीं होता. यह हालत तब है जब अच्छे दिन का सपना दिखाने वाली पार्टी भाजपा का केंद्र और राज्य दोनों जगह सरकार है. सरकार अपने स्तर पर इस मसले को चुटकी बजा कर हल कर सकती है.
डीवीसी का 800 करोड़ रुपये का बकाया : डीवीसी का कहना है कि उसका झारखंड ऊर्जा निगम पर 800 करोड़ रुपये बकाया है. ऐसे में वह कोल कंपनियों को बकाया का भुगतान नहीं कर पा रहा है. कोल कंपनियां भुगतान का दबाव बनाती है. वह ऊर्जा निगम पर बनाता है.
ऊर्जा निगम पर करार तोड़ने का आरोप : पिछली सरकार के दौरान बकाया वसूली को लेकर डीवीसी ने तीन से चार घंटे तक शेडिंग शुरू की थी. रघुवर दास की सरकार बनने के बाद जनवरी, 2015 में डीवीसी और ऊर्जा निगम में करार हुआ कि पिछला बकाया भले ज्यों का त्यों रहे लेकिन करेंट माह का भुगतान ऊर्जा निगम नियमित रूप से करेगा. इसके बाद से डीवीसी ने शेडिंग करनी बंद कर दी. लेकिन ऊर्जा निगम डीवीसी का बकाया रखने लगा और वह रकम बढ़ कर अब 800 करोड़ हो गयी है. डीवीसी प्रति माह 220 करोड़ रुपये की बिजली देती है जबकि उसे ऊर्जा निगम से सिर्फ 170 से 180 करोड़ रुपये मिलता है.
धनबाद एरिया बोर्ड देती है हर महीने 36 करोड़ : जनता का कहना है कि वह तो समय पर बिजली बिल देती है. आज-कल हालत यह है कि एक हजार बिल बाकी रहने पर भी ऊर्जा निगम लाइन काट देने की धमकी देता है. फिर वह संकट क्यों झेले? डीवीसी कमांड एरिया में छह जिले आते हैं इसमें अकेले धनबाद एरिया बोर्ड से 36 करोड़ रुपये की वसूली होती है. इसमें धनबाद से 25 करोड़ और चास से 11 करोड़ रुपये. हालांकि डीवीसी से जितनी बिजली ली जाती है, उस अनुरूप वसूली नहीं होती. इसका करण लाइन लॉस और ग्रामीण क्षेत्रों को सरकार की ओर से दी जा रही रियायत है. लोगों का कहना है कि इसमें जनता का क्या दोष? ग्रामीण क्षेत्रों को रियायत की भरपाई तो सरकार को करनी चाहिए.
ऊर्जा विभाग के सीएमडी कल आयेंगे : ऊर्जा विभाग के नये अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक आरके श्रीवास्तव 11 जुलाई को धनबाद आ रहे हैं. श्री श्रीवास्तव डीवीसी कमांड एरिया से जुड़े सभी छहों क्षेत्रों के जीएम व अन्य पदाधिकारियों के साथ बैठक कर स्थिति की समीक्षा करेंगे.
बिजली संकट से जनता कर रही है त्राहि-त्राहि सुबह दो घंटे व शाम ढाई घंटे डीवीसी कर रहा है लोड शेडिंग
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