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1903 में हुई थी शहर में दुर्गा पूजा की शुरुआत

धनबाद. दुर्गा पूजा मनाने की परंपरा काफी पुरानी है. शहरी क्षेत्र में संभवत: 1903 से सार्वजनिक पूजा शुरू हुई. दरअसल धनबाद शहर बसना ही तब शुरू हुआ जब 1890 के दशक में झरिया में कोयला खानों का पता चला. यानी शहर के बसते ही पूजा शुरू हुई. शहर का सबसे पुराना इलाका पुराना बाजार क्षेत्र […]

धनबाद. दुर्गा पूजा मनाने की परंपरा काफी पुरानी है. शहरी क्षेत्र में संभवत: 1903 से सार्वजनिक पूजा शुरू हुई. दरअसल धनबाद शहर बसना ही तब शुरू हुआ जब 1890 के दशक में झरिया में कोयला खानों का पता चला. यानी शहर के बसते ही पूजा शुरू हुई. शहर का सबसे पुराना इलाका पुराना बाजार क्षेत्र है. स्वाभाविक रूप से 1903 में इसी क्षेत्र से पूजा की शुरुआत हुई. लेकिन इसके पहले से ही ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षों से पूजा होती आ रही है.
अस्तिना निलोय राय ने की थी पूजा की शुरुआत
स्वर्गीय अस्तिना निलोय राय के परपोते दुर्गापदो राय बताते हैं कि उनके परदादा ने 1903 में टेंपल रोड पुराना बाजार दुर्गास्थान से पूजा की शुरुआत की थी. स्व. राय रेलवे में स्टेशन मास्टर थे. बंगाली समुदाय में वैसे भी दुर्गापूजा सबसे बड़ा त्योहार होता है. कोयलांचलवासी को पूजा करने के लिए बाहर नही जाना पड़े, मां का आशीर्वाद भक्तों को मिले इस उद्देश्य से पूजा की शुरुआत हुई. इस साल यहां पूजा का 112 वां साल है. नौ सालों तक दुर्गास्थान में पूजा हुई. फिर बलि प्रथा को लेकर मारवाड़ी समुदाय के साथ मतभेद हो गया. उसके बाद श्री राय के घर में पूजा होने लगी. घर में पूजा का यह सौवां साल है.

चार पुश्तों से दुर्गापूजा घर में किया जा रहा है. अस्तिना निलोय राय के बाद उनके बेटे ननि रंजन राय, उनके बाद उनके बेटे निखिल रंजन राय अब इनके बेटे दुर्गापदो राय पूजा करते हैं. पूजा में कहीं से चंदा नही लिया जाता पूरा परिवार मिलकर पारंपरिक तरीके से पूजा करता है. बलियापुर के अभिलाष मिस्त्री ने मां की पहली मूर्ति बनायी थी. अभी उनका बेटा गोविंदा मूर्ति बना रहा है. एक महीनें में मूर्ति तैयार होती है. दशमी के दिन मूर्ति विसर्जित कर दी जाती है. साल में एक बार पूरा परिवार पूजा में एकत्रित होता है. आज भी उसी आस्था और परंपरा से मां का आह्वान किया जाता है. पुराना बाजार रत्नेश्वर मंदिर से जो रास्ता मनइटांड़ की तरफ जाता है, उसी रास्ते के किनारे एक घर में वर्षों से पूजा होती है.

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