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टॉप पर बीजेपी, गर्त में कैडर

धनबाद: कोयलांचल में भाजपा के लिए स्वर्णिम काल चल रहा है. शहर से ले कर गांव तक भगवा परचम लहरा रहा है. लेकिन पार्टी को टॉप पर पहुंचाने वालों के दिन नहीं बदल रहे हैं. अच्छे दिन की आस में कार्यकर्ताओं का धैर्य अब जवाब दे रहा है. धनबाद में भाजपा के लिए इससे अच्छी […]

धनबाद: कोयलांचल में भाजपा के लिए स्वर्णिम काल चल रहा है. शहर से ले कर गांव तक भगवा परचम लहरा रहा है. लेकिन पार्टी को टॉप पर पहुंचाने वालों के दिन नहीं बदल रहे हैं. अच्छे दिन की आस में कार्यकर्ताओं का धैर्य अब जवाब दे रहा है. धनबाद में भाजपा के लिए इससे अच्छी स्थिति शायद ही आये. धनबाद एवं गिरिडीह संसदीय सीट, जिसका दो विधानसभा क्षेत्र धनबाद जिले में पड़ता है, पर भाजपा का कब्जा है.

साथ ही जिले के धनबाद, झरिया, बाघमारा, सिंदरी विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है. टुंडी में सहयोगी दल आजसू का कब्जा है. धनबाद के मेयर भी भाजपाई हैं. संयोग से धनबाद जिला परिषद की अध्यक्ष भी भाजपा में शामिल हो चुकी हैं. इस तरह देखा जाये तो लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर भाजपाइयों का कब्जा है. धनबाद के सांसद पीएन सिंह तो पूरे पूर्वी क्षेत्र में रिकॉर्ड मतों से जीतने वाले भाजपाई हैं. धनबाद के विधायक राज सिन्हा के पक्ष में भी पड़े मत पूरे राज्य में रिकॉर्ड हैं. इसके बावजूद भाजपा कार्यकर्ता मान-सम्मान के लिए सड़क पर उतर चुके हैं. इसके पीछे कुछ राजनीतिक कारण हैं तो कुछ मजबूरियां भी.

प्रदेश की राजनीतिक गुटबाजी का असर : धनबाद में भाजपा के एक गुट द्वारा लगातार पुलिस प्रशासन के खिलाफ चलाये जा रहे मुहिम को प्रदेश की राजनीति से जोड़ कर देखा जा रहा है. धनबाद में संगठन के अंदर पूर्व मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा समर्थक खेमा फिलहाल भारी है. सांसद पीएन सिंह, धनबाद के विधायक राज सिन्हा पूरी तरह से मुंडा खेमा में हैं. झरिया विधायक संजीव सिंह, जो पूर्व सीएम के खासमखास माने जाते थे, बदली हुई परिस्थिति में सीएम रघुवर दास के करीबी हो गये हैं. जबकि बाघमारा के विधायक ढुलू महतो, मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल सीएम खेमा के खास माने जाते हैं. सिंदरी के विधायक फूलचंद मंडल दोनों तरफ रहते हैं. पार्टी की अंदरूनी राजनीति में मुख्यमंत्री खेमा की ओर से मोरचा लेने के लिए कोई नेता खुल कर सामने नहीं आ रहे. सूत्रों की मानें तो प्रशासनिक महकमा के खिलाफ मोरचाबंदी के बहाने रघुवर सरकार के खिलाफ ही विष वमन हो रहा है.
कैडर रो रहे उपेक्षा का रोना : केंद्र एवं राज्य में सत्ता मिलने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि अब उन लोगों की चलेगी. ठेका-पट्टा से ले कर थानों में उनकी सुनी जायेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. उलटे थानों में पैरवी करने जाने वाले भाजपाइयों से पैसे वसूले जा रहे हैं. सात माह से अधिक बीत गये. अब तक विधायक फंड तक रिलीज नहीं हुआ. व्यवस्था से खिन्न कार्यकर्ता कहते हैं कि चुनाव के समय पार्टी कार्यकर्ता को रीढ़ बताया जाता था. सत्ता मिलते ही नेताओं की नजर में यही कार्यकर्ता चिरकुट बन गये. ऐसे में कैसे कार्यकर्ता अगली बार भाजपा के लिए काम करेंगे.

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