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इंजीनियरिंग कर तैयार कर रहे इंजीनियर

धनबाद: बच्चों के बीच रहना अच्छा लगता है. पढ़ाई के दौरान भी कई बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करता था. कई बच्चे आज देश के अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं. कुछ तो आइएसएम में पढ़ रहे हैं, जहां से मैंने पढ़ाई की थी. मेरे शिक्षक के सामने मेरे पढ़ाये हुए बच्चे आदर से […]

धनबाद: बच्चों के बीच रहना अच्छा लगता है. पढ़ाई के दौरान भी कई बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करता था. कई बच्चे आज देश के अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं. कुछ तो आइएसएम में पढ़ रहे हैं, जहां से मैंने पढ़ाई की थी. मेरे शिक्षक के सामने मेरे पढ़ाये हुए बच्चे आदर से प्रणाम करते हैं तो मुङो बहुत अच्छा लगता है.

मुङो लगता है कि समाज को यदि कुछ देना है तो सिर्फ शिक्षा दी जा सकती है. जिससे एक नये समाज का निर्माण किया जा सकता है. बाकी रुपया-पैसा तो लोग लगन व किस्मत से कमा लेते है. आदमी को वही काम करना चाहिए जिसमें उसे खुशी मिले. दूसरे को देख कर अपने जीवन को नहीं बदलना चाहिए. मैं नौकरी नहीं करके भी आज अच्छा कमा रहा हूं और किस्मत ने साथ दिया तो देश के कई शहरों में मेरा इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए इंस्टीट्यूट होगा.

बच्चों ने किया इंस्टीट्यूट के लिए प्रेरित
प्रेमानंद बताते है कि 2010 में आइएसएम से माइनिंग की पढ़ाई पूरी की. पढ़ते समय ही जिंदल स्टील पावर कंपनी में कैंपस हो गया था. प्रतिवर्ष सात लाख रुपये से ज्यादा का पैकेज था. लेकिन मैंने नौकरी में जाना अच्छा नहीं समझा, पढ़ाई के दौरान ही कुछ बच्चों को इंजीनियरिंग की तैयारी भी करवाता था. बच्चे सफल हो गये थे. उन बच्चों ने ही मुङो इंस्टीट्यूट खोलने की सलाह दी और मैनें पढ़ाई पूरा करते ही, नौकरी न कर सरायढेला में इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए इंस्टीट्यूट खोल दिया. वहीं से इसे बढ़ाकर अब दो स्थानों पर चला रहे है.
घर वालों ने किया था विरोध
प्रेमानंद ने बताया कि उसके पिता किसान हैं. बुंदेलखंड में ही स्कूली शिक्षा व इंटर की पढ़ाई हुई. इसके बाद वह इंजीनियरिंग की तैयारी करने लगे और आइएसएम धनबाद में माइनिंग इंजीनियरिंग में एडमिशन करवा लिया. 2010 में माइनिंग की डिग्री मिल गयी, जिंदल पावर में नौकरी तय हो गयी, घर के सारे लोग खुश थे. लेकिन मैं नौकरी नहीं करना चाहता था. पिता को नौकरी न कर गेट की तैयारी की बात कह धनबाद में ही रूक गया. पिता ने कहा कि जल्द नौकरी कर लो. मैं गेट में पूरे देश में आठवें स्थान पर आया. एमटेक की पढ़ाई के लिए किसी अच्छे कॉलेज में जा सकता था, लेकिन एमटेक की पढ़ाई नहीं की. पिता को इंस्टीट्यूट खोलने की बात बतायी. लेकिन घर वाले तैयार नहीं हुए. पूरे घर के लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया. लेकिन बाद में सब मान गये और मुङो मेरी मरजी पर छोड़ दिया.
दोस्तों ने की मदद
इंस्टीट्यूट खोलने की तैयारी हो चुकी थी. लेकिन रुपये का इंतजाम नहीं था. घर वालों से भी रुपया नहीं मांगा था. इसके बाद साथ में पढ़ने वाले दोस्तों से मदद मांगी. किसी ने पांच हजार तो किसी ने 20 हजार रुपये दिये. दो कमरे में इंस्टीट्यूट की स्थापना की. आज यह शहर के अच्छे इंस्टीट्यूट में एक है. मैं जल्द अपने शहर उत्तर प्रदेश बुंदेलखंड के छात्रों के लिए भी इंस्टीट्यूट खोलने जा रहा हूं.

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