धनबाद. पुराना बाजार काली मंदिर का इतिहास 246 साल पुराना है. सन 1771 में मंदिर की आधारशिला रखी गयी थी. मंदिर के पुजारी नीलकंठ भट्टाचार्य ने बताया कि उनके परदादा शशिभूषण भट्टाचार्य को मां काली ने स्वप्न देकर कहा था कि मैं पुराना बाजार में जिस स्थान पर निवास कर रही हूं वहां मंदिर बनाओ. मेरे परदादा के पिता दुर्गाचरण भट्टाचार्य काशीपुर पुरूलिया के राजा के कुल पुरोहित थे. मेरे परदादा ने अपने पिता से काली मां के स्वप्न की बात बतायी. फिर वे लोग यहां आ गये. उस समय पुराना बाजार जंगल था.
जिस जगह मंदिर बनना था, वहां पीपल का पेड़ था. मेरे परदादा और उनके पिता ने बिचाली और बांस के सहारे मां का मंदिर बनाया. मंदिर के पहले वहां मां की पूजन सामग्री, बरतन पड़े हुए थे. मंदिर बनने के बाद सब गायब हो गए. वर्तमान में मां की प्रतिमा के नीचे पत्थर की मूर्ति आज भी है. इस मंदिर की इतनी मान्यता है कि जो भक्त मां के रूप को नैनों में बसा कर उनका ध्यान कर जो भी मांगते हैं पूर्ण होती है.
पहले था श्मशान घाट : यह इलाका पहले श्मशान घाट था. कोई इधर आना पसंद नही करता था. मां का मंदिर बनने के बाद आवागमन प्रारंभ हुआ. दुकानदार दुकान खोलने से पहले मां के चरणों का फूल आशीर्वाद के रूप में लेकर जाते हैं.
मंदिर में नही है दानपेटी : मंदिर के पुरोहित बताते हैं मंदिर में कोई दान पेटी नहीं है. बहुत से भक्त विदेश में रहते हैं. पूजा के समय वे लोग मंदिर के नाम संकल्प भेजते हैं. मंदिर का सारा काम मां हाथों-हाथ उठाती हैं. यहां बलि की प्रथा है. काली पूजा और ज्येष्ठ अष्टमी और नवमी को भक्तों की भीड़ मंदिर में जुटती है. फिलहाल सत्यवान भट्टाचार्य, उनके पुत्र विजय भट्टाचार्य, विजय के पुत्र अशोक भट्टाचार्य पूजा कराते हैं.
मंदिर में प्रवेश है वर्जित
मंदिर में भक्तों का प्रवेश वर्जित है. केवल पुजारी ही मंदिर में प्रवेश करते हैं. मां का दर्शन बाहर से ही करना होता है. अगर किसी भक्त की यह अभिलाषा होती है कि मंदिर में अंदर जाकर मां का दर्शन करें तो उसके लिए मंगलवार और शनिवार के दिन पास के शिव मंदिर में अहले सुबह आकर स्नान करना होता है और उसी भीगे कपड़े में मां के मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति मिलती है.