जगत के पाप पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं भगवान चित्रगुप्त चित्रगुप्त पूजा पर विशेष- पूजा 13 को – शंभूनाथ सहायस्वर्ग लोक में संपूर्ण जगत के प्राणियों के जन्म मृत्यु एवं कर्मचक्र का लेखा जोखा रखने का जब सवाल खड़ा हुआ तब ब्रह्मा जी ने धर्मराज को यह भार सौंपना चाहा. धर्मराज जी ने ब्रह्मा से कहा कि यह संसार बड़ा जटिल है. मैं अकेले इस महत्वपूर्ण कार्य को कर पाने में असमर्थ पा रहा हूं, इसलिए सहायता करने करें. फलस्वरूप धर्मराज के कथन को सुन ब्रह्मा ने स्वयं कुछ करने का फैसला लिया. पश्चात ब्रह्मा ने उन्हें वहां से विदा कर स्वयं ग्यारह हजार वर्षों तक समाधि लगायी. जब ब्रह्मा ने अपना नेत्र खोला तो उनके सम्मुख सांवले वर्ण के कमल के समान नयन,हाथ में शंख, लेखनी दवात लिए एक देव पुरूष खड़े थे. भगवान ब्रह्मा ने उनसे पूछा आप कौन हैं तो देवपुरूष ने कहा आपने जो इच्छा लेकर तप किया है, मैं आपके ही काया से उत्पन्न आपका इच्छापुत्र हूं. मेरे लिए क्या आज्ञा है व मेरा नाम क्या होगा. ब्रह्मा ने इस कथन को सुन कहा, तुम मेरी काया में गुप्त रूप से उपस्थित थे, इसलिए तुम कायस्थ कहलाओगे. इतना ही नहीं मेरे मन और वाणी में तुम्हार स्वरूप स्थित था, इसलिए तुम्हार नाम चित्रगुप्त होगा. जहां तक कार्यकलाप की बात है,तुम लोक जगत के निवासियों की धर्म अधर्म का विचार करो तथा उन्हें स्वर्ग या नरक में जाने का आदेश दोगे. साथ ही ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम धर्म अधर्म जानने वाले होवोगे, काल की गति भी जानने वाले होंगे. तुम्हारी जो संतान होगी वह कायस्थ के नाम से ज्ञात होगी. इस प्रकार चित्रगुप्त ने पृथ्वी पर आकर अवंतिकापुरी में तपस्या की तथा शक्ति प्राप्त कर अमर हुए व प्राणियों के कर्माकर्म का हिसाब किताब रखने लगे.कालांतर में भगवान चित्रगुप्त ने दो शादियां की तथा उनके बारह संतान हुए जो कायस्थ विरादरी के नाम से जाने जाते हैं. इनका मुख्य पेशा कलम दवात के साथ साथ पढ़ाई कर शैक्षणिक वातावरण बनाना एवं दूसरों को शिक्षित करना भी है जो इन्हें संस्कार में प्राप्त है.
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