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प्रवचन:::: वानप्रस्थ में व्यक्ति एकांत में जीवन व्यतीत करता है

वानप्रस्थ: पचास से पचहत्तर वर्ष की आयु पर्यंत व्यक्ति दूर एकांत में अवकाश का जीवन बिताता था. पति-पत्नी स्वयं को सांसारिक तथा पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त कर एकांत वन में योगाभ्यास द्वारा स्वयं को संन्यास के लिए तैयार करते थे. संन्यास: संन्यास जीवन वानप्रस्थ के पश्चात प्रारंभ होता था. यहां आश्रम में व्यक्ति विरक्त भाव […]

वानप्रस्थ: पचास से पचहत्तर वर्ष की आयु पर्यंत व्यक्ति दूर एकांत में अवकाश का जीवन बिताता था. पति-पत्नी स्वयं को सांसारिक तथा पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त कर एकांत वन में योगाभ्यास द्वारा स्वयं को संन्यास के लिए तैयार करते थे. संन्यास: संन्यास जीवन वानप्रस्थ के पश्चात प्रारंभ होता था. यहां आश्रम में व्यक्ति विरक्त भाव से साधना में लीन होकर आत्मसाक्षात्कार के मार्ग पर बढ़ता था. इन आश्रमों की पद्धति शरीर और मन के सूक्ष्म आयामों के प्रकटीकरण पर अवलंबित थी. इन नियमों द्वारा शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक व्यक्तित्व का संतुलित विकास होता था. प्राचीन ऋृषियों ने वेदों के विशिष्ट भागों का अध्ययन प्रत्येक आश्रम से जोड़ रखा था. जैसे ब्राह्मचर्य आश्रम में ‘संहिता’, गृहस्थ में ‘ब्राह्मण’ वानप्रस्थ में ‘अरण्यक’ तथा संन्यास में ‘उपनिषदों’ का स्वाध्याय होता था. ऋषि इस तथ्य से भली-भांति परिचित थे कि सभी व्यक्तियों में विवाह, यौन-जीवन, संतानोत्पत्ति तथा अन्य महत्वाकांक्षाएं होती हैं जिनकी पूर्ति आवश्यक है.

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