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प्रवचन::: अभ्यास के दौरान बिंदु पर मन को एकाग्र करें

हमारे ललना चक्र (एक अन्य छोटा चक्र जो अमृत को स्त्रावित व संचित करता है) में नासिका छिद्रों में से होकर कुछ नाडि़यां जाती हैं जो आज्ञा को विशुद्धि से जोड़ती हैं, लेकिन न तो ललना और न ही बिंदु जागरण के केंद्र हैं. जब विशुद्धि का जागरण होता है, तब उसके साथ-साथ ललना तथा […]

हमारे ललना चक्र (एक अन्य छोटा चक्र जो अमृत को स्त्रावित व संचित करता है) में नासिका छिद्रों में से होकर कुछ नाडि़यां जाती हैं जो आज्ञा को विशुद्धि से जोड़ती हैं, लेकिन न तो ललना और न ही बिंदु जागरण के केंद्र हैं. जब विशुद्धि का जागरण होता है, तब उसके साथ-साथ ललना तथा बिंदु का भी जागरण होता है. बिंदु नाद का केंद्र है. यहां एक नहीं बल्कि अनेक नाद होते हैं. नादयोग के अभ्यास के समय बिंदु पर मन को पूर्णत: एकाग्र किया जात है. पूर्णचंद्र तथा अर्द्धचंद्र बिंदु के प्रतीक हैं. पूर्णचंद्र अमृत की अति सूक्ष्म बूंद का तथा अर्द्धचंद्र चंद्रमा की कला का द्योतक है. जिस प्रकार शुक्ल पक्ष में चंद्रमा का प्रकाश अंश बढ़ता जाता है, उसी प्रकार बिंदु के पीछे सहस्त्रार भी धीरे-धीरे उदघाटित होने लगता है. रात्रि कालीन विस्तृत आकाश की पृष्ठ भूमि में बिंदु को अभिव्यक्ति किया जाता है. यह इस बात का द्योतक है कि सहस्त्रार भी इस आकाश की तरह व्यापक तथा अनंत है.

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