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प्रवचन ::: मूलाधार मानव अस्तित्व का अधिष्ठान

प्रत्येक चक्र का अर्थ शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. प्राचीन योग शास्त्रों में चक्रों से संबंधित प्रतीकों के रूप में बहुत कुछ लिखा गया है. अलग-अलग लोगों ने भी अपने चक्रों के अनुभवों को प्रतीकों की भाषा में व्यक्त किया है.आगे के पृष्ठों में हम प्रत्येक चक्र का संक्षिप्त विवरण, शरीर में उसकी […]

प्रत्येक चक्र का अर्थ शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. प्राचीन योग शास्त्रों में चक्रों से संबंधित प्रतीकों के रूप में बहुत कुछ लिखा गया है. अलग-अलग लोगों ने भी अपने चक्रों के अनुभवों को प्रतीकों की भाषा में व्यक्त किया है.आगे के पृष्ठों में हम प्रत्येक चक्र का संक्षिप्त विवरण, शरीर में उसकी स्थिति तथा उसे जानने की तकनीकों का वर्णन करेंगे. हम प्रत्येक चक्र से संबंधित ध्यान का व्यावहारिक निर्देश भी देंगे ताकि आप उस चक्र का अनुभव कर सकें, उससे प्रति चेतना को घनीभूत कर सकें तथा उसका अंतर्दर्शन कर सकें.मूलाधार संस्कृत शब्द मूल का अर्थ ‘जड़’ होता है. आधार का अर्थ ‘अधिष्ठान’ अथवा सहारा होता है. इस प्रकार मूलाधार मानव अस्तित्व का अधिष्ठान अथवा मुख्य आधार है. मूलाधार चक्र पुरुषों के शरीर में मल-मूत्र द्वारों के बीच, जो त्वचा की सतह के लगभग एक सेंटीमीटर ऊपर होता है, स्थित है तथा महिलाओं में गर्भग्रीवा के पीछे जहां योनि तथा गर्भाशय मिलते हैं, उस स्थान पर स्थित होता है. यह त्वचा से दो-तीन सेंटीमीटर भीतर की ओर होता है.

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