देवघर : बाबाधाम में विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला लगता है. यह एक माह तक रहता है. इसमें तेजी से बदलाव देखा जा रहा है. तीर्थ पुरोहित मोहनानंद झा ने कहा कि पहले बुजुर्ग लोग सुल्तानगंज से जल लेकर पैदल बाबाधाम आते थे. इसमें बिहारी, बंगाली व मारवाड़ियों की संख्या अधिक होती थी. उस समय का दृश्य ही अलग होता था. यजमान अपनी पत्नी, बच्ची सबके साथ सीधे अपने पंडा का नाम लेकर आते थे. अपने पंडा के अावास में रहते थे. जिन पंडा का आवास में जगह नहीं होता था,
वह दूसरे जगह व्यवस्था करते थे. उस समय शहर में कई धर्मशाला भी होती थी. पंडा ही अपने यजमान के लिए रहने की व्यवस्था करते थे. पंडा और यजमान दोनों एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रखते थे. समय बदल गया है. इससे बुजुर्ग लोग बाबाधाम आने से पीछे हटने लगे हैं. इसका स्थान युवा वर्ग लेने लगा. इससे श्रावणी मेला में युवाओं की संख्या बढ़ने लगी है. युवाओं में आधुनिकता का प्रभाव देखा जा रहा है. इससे भक्ति का अभाव होने लगा है. वह किसी तरह पूजा कर मौज मस्ती करना अधिक चाहते हैं. इससे पूजा का स्वरूप भी बदल रहा है.