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बेटे की लंबी उम्र को माताएं रखेंगी निर्जला व्रत

बोकारो: बेटे की लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला व्रत जीवित्पुत्रिका शुक्रवार को है. व्रत के दौरान पुत्र की दीर्घायु के लिए माताएं निर्जला उपवास और पूजा-अर्चना करेंगी. आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माताओं द्वारा अपनी संतान की आयु, आरोग्य व कल्याण के लिए इस व्रत को किया जाता है. सेक्टर-1 […]

बोकारो: बेटे की लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला व्रत जीवित्पुत्रिका शुक्रवार को है. व्रत के दौरान पुत्र की दीर्घायु के लिए माताएं निर्जला उपवास और पूजा-अर्चना करेंगी. आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माताओं द्वारा अपनी संतान की आयु, आरोग्य व कल्याण के लिए इस व्रत को किया जाता है. सेक्टर-1 स्थित श्रीराम मंदिर के ज्योतिषाचार्य शिव कुमार शास्त्री ने गुरुवार को बताया : जीवित्पुत्रिका व्रत शुक्रवार को है. शनिवार को सुबह सात बजे के बाद पारण होगा. पुत्र की दीर्घायु व मंगलकामना के साथ माताएं जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं.
जीवित्पुत्रिका व्रत को जीतिया या जीउतिया, जिमूतवाहन व्रत के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक रूप में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व रहा है. इस्पात नगरी बोकारो में बड़ी संख्या में माताएं यह व्रत करती हैं. व्रतियों ने गुरुवार को व्रत के नहाय-खाय के परंपरा का निर्वहन किया. शुक्रवार को व्रती दिन भर निर्जला उपवास करेंगी. शनिवार को सुबह सात बजे के बाद पारण के साथ व्रत संपन्न होगा. उधर, पर्व को लेकर सतपुतिया, नोनी साग, मड़ुआ का आटा आदि की डिमांड बढ गयी है. सतपुतिया बाजार में 60 रुपये प्रतिकिलो बिक रहा है.
व्रत से जुड़ीं दो अलग-अलग कथाएं
पहली कथा
जीवित्पुत्रिका-व्रत के साथ जीमूतवाहन की कथा जुडी है. इसमें गंधर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन अपने जीवन काे दावं पर लगाकर नागवंश की रक्षा करते हैं. जीमूतवाहन के अदम्य साहस से नाग-जाति की रक्षा हुई और तबसे पुत्र की सुरक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा की प्रथा शुरू हो गयी. आश्विन कृष्ण अष्टमी के प्रदोषकाल में पुत्रवती महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं. आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर स्त्री सायं प्रदोषकाल में जीमूतवाहन की पूजा करती हैं तथा कथा सुनने के बाद आचार्य को दक्षिणा देती है, वह पुत्र-पौत्रों का पूर्ण सुख प्राप्त करती है. व्रत का पारण दूसरे दिन अष्टमी तिथि की समाप्ति के पश्चात किया जाता है. यह व्रत अपने नाम के अनुरूप फल देने वाला है.
दूसरी कथा
महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों की अनुपिस्थति में कृतवर्मा और कृपाचार्य को साथ लेकर अश्वथामा ने पांडावों के शिविर में प्रवेश किया. अश्वथामा ने द्रौपदी के पुत्रों को पांडव समझकर उनके सिर काट दिये . दूसरे दिन अर्जुन, कृष्ण भगवान को साथ लेकर अश्वथामा की खोज में निकल पड़े और उसे बंदी बना लिया. धर्मराज युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण के परामर्श पर उसके सिर की मणि लेकर तथा केश मूंड़कर उसे बन्धन से मुक्त कर दिया. अश्वथामा ने अपमान का बदला लेने के लिये अमोघ अस्त्र का प्रयोग पांडवों के वशंधर उत्तरा के गर्भ पर कर दिया. पांडव का उस अस्त्र का प्रतिकार नहीं जानते थे. उन्होंने श्रीकृष्ण से उत्तरा के गर्भ की रक्षा की प्रार्थना की. भगवान श्रीकृष्ण ने सूक्ष्म रूप से उत्तरा के गर्भ में प्रवेश करके उसकी रक्षा की, किन्तु उत्तरा के गर्भ से उत्पन्न हुआ बालक मृत प्राय: था. भगवान ने उसे प्राण दान दिया. वही पुत्र पांडव वंश का भावी कर्णाधार परीक्षित हुआ. परीक्षित को इस प्रकार जीवनदान मिलने के कारण इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिक पड़ा.

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