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डॉट्स का उपयोग व संयम ही यक्ष्मा का सही इलाज

– रंजीत कुमार – बोकारो : यक्ष्मा नियंत्रण कार्यक्रम जिले में शत प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर चुका है. इस कार्यक्रम के तहत (पिछले वर्ष) इलाज किये गये मरीज में से 90 प्रतिशत से ज्यादा के बलगम की दुबारा जांच की गयी. मरीज रोग मुक्त पाये गये. वर्ष 2013 में 2200 नये यक्ष्मा रोगी का निबंधन […]

– रंजीत कुमार –

बोकारो : यक्ष्मा नियंत्रण कार्यक्रम जिले में शत प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर चुका है. इस कार्यक्रम के तहत (पिछले वर्ष) इलाज किये गये मरीज में से 90 प्रतिशत से ज्यादा के बलगम की दुबारा जांच की गयी. मरीज रोग मुक्त पाये गये. वर्ष 2013 में 2200 नये यक्ष्मा रोगी का निबंधन किया गया. इसमें 824 लोगों में टीबी के लक्षण पाये गये. इसके अलावा 97 हजार 580 लोगों के बलगम की जांच की गयी. जबकि वर्ष 2014 (जनवरी से मार्च अब तक) में 525 नये मरीजों की पहचान की गयी है.

इन पर लगातार नजर रखी जा रही है. यह बातें डीटीओ डॉ एके सिंह ने ‘प्रभात खबर’ से कही. उन्होंने बताया : यक्ष्मा ‘माइकोबैक्ट्रीयम ट्यूबक्यूलेसिस’ नामक बैक्टीरिया से फैलता है. यह शरीर में कही भी हो सकता है. टीबी के किटाणु साधारणत: हवा के माध्यम से फैलते हैं. लगातार खांसी खत्म नहीं होने, लगातार बुखार रहने पर तुरंत ही चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. टीबी होने की दिशा में डाट्स सेंटर पर मरीज को मुफ्त दवा उपलब्ध करायी जाती है. टीबी से ग्रसित मरीजों को चिकित्सकों के सलाह के अनुसार दवा का उपयोग करना चाहिए.

हर तीन मिनट में होती है दो यक्ष्मा रोगी की मौत : झारखंड राज्य यक्ष्मा नियंत्रण समिति के अनुसार भारत में प्रतिदिन लगभग 30 हजार से अधिक व्यक्ति टीबी किटाणु से संक्रमित होते हैं. एक हजार से अधिक व्यक्तियों की मौत टीबी से हो जाती है. वहीं हर तीन मिनट में दो व्यक्ति की मौत इस घातक बीमारी से होती है. भारत में हर वर्ष 12 लाख टीबी के नये रोगी बनते हैं, इनमें से लगभग पांच लाख रोगी की बलगम धनात्मक होती है. लगभग डेढ़ लाख बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं, क्योंकि उनके माता-पिता को टीबी की बीमारी होती है और लगभग 60 हजार से अधिक महिलाएं टीबी बीमारी के कारण अपने परिवारों से निकाल दी जाती है.

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