-दर्शक-
रांची के ‘सभ्य’ या ‘आभिजात्य’ (?) अशोक नगर मोहल्ले में रहते हैं. देश के हर शहर में ‘अशोक नगर’ जैसे कथित आभिजात्यों के कुछ मोहल्ले हैं, जिन्हें अब ‘पॉश एरिया’ पुकारा जाता है. अंगरेजी के ‘पॉश’ और ‘एरिया’ शब्द अब हिंदी में घुल-मिल गये हैं. रांची में जो ‘पॉश एरिया’ कहलाते हैं, उनमें अशोक नगर मोहल्ले का नाम भी शुमार है. अशोक नगर निर्माण के लिए जो सहकारी समिति बनी, जिस तरह भूमि ली गयी, जिन लोगों से ली गयी, उसकी चर्चा अकसर पूरे बिहार सूबे में होती रही है. इस अशोक नगर को-ऑपरेटिव के लगभग 508 सदस्य हैं. लगभग साढ़े चार सौ मकान बन चुके हैं. तकरीबन सत्तर प्लाट खाली हैं.
इस नगर में नौकरशाह (सेवा प्राप्त और मौजूदा दोनों) रहते हैं. इंजीनियर हैं. डॉक्टर हैं, मौजूदा व्यवस्था की कसौटी पर आप समाज के जिस वर्ग को सर्वाधिक आधुनिक, प्रगतिशील, पढ़े-लिखे, संपन्न, ताकतवर, अधिकार संपन्न और चतुर कह सकते हैं, ऐसे लोगों की अशोक नगर में बहुतायत है. इस मोहल्ले की व्यवस्था संचालन के लिए सहकारी समिति है, जिसका नाम है, ‘सर्विसेज हाउसिंग को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, अशोक नगर.’ यह नाम अंगरेजी में ही है, इस समिति में कुल 11 पद हैं. आठ डाइरेक्टर होते हैं, एक चेयरमैन, एक उपसभापति और एक सचिव. ये सारे पद अवैतनिक हैं. इन पदों के लिए चुनाव होता है, जिसके ‘रिटर्निंग अफसर’ सदर अनुमंडल पदाधिकारी होते हैं. यह चुनाव 13 दिसंबर को होना था, पर अयोध्या प्रकरण के कारण यह चुनाव संपन्न न हो सका. अब इस चुनाव को शीघ्र कराने की पूरी तैयारी और बेचैनी है.
इस अशोक नगर में कुछ ऐसे भी अधिकारियों-लोगों के घर हैं, जिन्होंने महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी गरिमा, आत्मस्वाभिमान और मर्यादा से काम किया या कर रहे हैं. समाज से जिनका सरोकर बना हुआ है. समाज की पीड़ा उनके चेहरे-सोच में भी झलकती है, पर ऐसे लोग अलग-थलग और घरों तक सिमटे रहने के लिए बाध्य हो गये हैं. देश में भी ऐसे तटस्थ लोगों का यही हश्र है. जो किरायेदार यहां हैं, उनकी दुनिया नौकरी, रोजी-रोटी तक सीमित है. उनका कोई ताल्लुक इस सहकारी समिति से नहीं है. इस कथित जागरूक मोहल्ले में आसन्न चुनाव की पूरी तैयारी जातिवादी राजनीति के तहत हो रही है.
इस मोहल्ले में वैसे लोग ही ज्यादा हैं, जो ड्राइंग रूमों में पूर्ण सुख-सुविधा और पश्चिमी माहौल के बीच देश के पतन का रोना रोते हैं. बिहार की दुर्दशा पर आंसू बहाते हैं. लालू प्रसाद को कोसते हैं. जनता दल और मंडल को जातिवादी राजनीति के लिए दोष देते हैं, पर खुद हर काम इसी ओछी मनोवृत्ति के तहत करते हैं. यह पाखंड और दोयम चरित्र ही, इस समाज के पतन का कारण है. जिन एकाध उम्मीदवारों ने इस जातिवादी राजनीति के सांचे में रहने से इनकार किया, वे स्वतंत्र ढंग से चुनाव लड़ रहे हैं. उल्लेखनीय है कि इस समिति के चुनाव में जो घरों के मालिक हैं, वहीं लड़ते और चुनते हैं.