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झारखंड का हाल, खाली हैं महत्वपूर्ण पद, विकास योजनाएं प्रभावित

रांची : झारखंड में महत्वपूर्ण पद खाली पड़े हैं. इन पदों को प्रभार के भरोसे चलाया जा रहा है. इसका असर कामकाज पर पड़ रहा है. विकास योजनाएं प्रभावित हो रही हैं. राज्य को आर्थिक क्षति भी हो रही है. इन पदों पर नियुक्ति का मामला सरकार व विभाग के बीच फंसा है. * यह […]

रांची : झारखंड में महत्वपूर्ण पद खाली पड़े हैं. इन पदों को प्रभार के भरोसे चलाया जा रहा है. इसका असर कामकाज पर पड़ रहा है. विकास योजनाएं प्रभावित हो रही हैं. राज्य को आर्थिक क्षति भी हो रही है. इन पदों पर नियुक्ति का मामला सरकार व विभाग के बीच फंसा है.

* यह है हालत

– एमडी, वन निगम

कब से रिक्त है पद : एक दिसंबर 2013

क्या हो रहा है नुकसान : केंदू पत्ते का टेंडर फाइनल नहीं हो रहा है. सरकार को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. केंदू पत्ता मजदूरों का भुगतान प्रभावित हो रहा है.

* राज्य निर्वाचन आयुक्त

– कब से रिक्त है पद : 14 जुलाई 2013.

क्या हो रहा है नुकसान : रांची नगर निगम के मेयर का चुनाव नहीं हो रहा है. पंचायतों और नगर निकायों में पद को लेकर होने वाले विवादों का निपटारा नहीं हो रहा है. 2015 में पंचायत चुनाव कराने की तैयारी शुरू नहीं हो पा रही है. पंचायतों के परिसीमन का काम अटका है. पंचायत चुनाव में देरी होने पर राज्य सरकार को 250 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष मिलनेवाली केंद्रीय सहायता राशि से वंचित होना पड़ सकता है.

* विकास आयुक्त

– कब से है प्रभार में : 31 अक्तूबर 2013

कैसे हो रहा काम: मुख्य सचिव को प्रभार

क्या हो रही दिक्कतें : मुख्य सचिव को सारे विभागों का कामकाज देखना पड़ता है. राज्य की सारी जिम्मेवारी मुख्य सचिव पर होती है. हर दिन करीब 10-15 बैठकें भी मुख्य सचिव करते हैं. सारे कार्यों की मॉनिटरिंग करते हैं. ऐसे में मुख्य सचिव को विकास आयुक्त का प्रभार देने से अतिरिक्त बोझ बढ़ गया है. विकास योजनाओं के चयन से लेकर क्रियान्वयन व मॉनिटरिंग में विकास आयुक्त का अहम रोल होता है.

* सदस्य, राज्य वित्त आयोग

– कब से है पद खाली : छह माह से

क्या हो रही है परेशानी : राज्य वित्त आयोग के सदस्य के नहीं होने से पंचायती राज संस्थानों के बारे में आयोग अपनी अनुशंसाएं नहीं दे पा रहा है. पंचायती राज से संबंधित कार्यों के बारे में अनुशंसा प्राप्त नहीं हो रही है. पंचायतों को कहां से संसाधन जुटाना है. क्या टैक्स लेना है. इसकी अनुशंसा नहीं मिल रही है.

* निदेशक पंचायती राज

– कब से है प्रभार में : जनवरी 2013 से

क्या है स्थिति : पंचायती राज सचिव एल ख्यांग्ते को ही पंचायती राज निदेशक का प्रभार दिया गया है. श्री ख्यांग्ते कल्याण सचिव भी हैं. राज्य में पंचायती राज व्यवस्था कायम हो जाने के बाद से इस विभाग का काम काफी बढ़ गया है. स्थायी निदेशक नहीं होने से कामकाज प्रभावित हो रहा है. योजनाओं की मॉनिटरिंग भी प्रभावित है.

* उप निदेशक पंचायती राज विभाग

– कब से है यह पद खाली : दो साल से

क्या है नुकसान : इस विभाग में उप निदेशक की भूमिका अहम है. उप निदेशक के नहीं होने से दूसरे अफसर संबंधित काम कर रहे हैं. दूसरे अफसरों पर अन्य कार्यों की भी जिम्मेवारी है. ऐसे में कामकाज प्रभावित हो रहा है. केंद्र से ली जानेवाली योजनाओं का कार्य भी प्रभावित हो रहा है.

* अध्यक्ष, विद्युत नियामक आयोग

– कब से है खाली : 15 दिसंबर 2012 से

क्या हो रहा है नुकसान : अध्यक्ष के नहीं रहने से पिछले साल बिजली बोर्ड व अन्य सारी कंपनियों का टैरिफ तय नहीं हो पाया. पिछले वर्ष दिसंबर में बोर्ड ने बिजली दर तय करने का आवेदन दिया था, पर सुनवाई नहीं हो सकी. कंपनियों ने भी उत्पाद दर आदि तय करने का आवेदन दिया था, पर यह तय नहीं किया जा सका.

खाद्य आपूर्ति की हालत, 1080 पद में से 480 रिक्त

मानव संसाधन के मामले में खाद्य आपूर्ति विभाग की हालत खस्ता है. 628 स्वीकृत पदों में से 358 रिक्त हैं. ये पद सचिवालय, क्षेत्र व निदेशालय के हैं. वहीं विभाग से संबद्ध राज्य खाद्य निगम (एसएफसी) के जिला प्रबंधक से लेकर क्लर्क तक के 352 पद में से 122 रिक्त हैं. इस तरह विभाग के 1080 पदों में से 480 रिक्त हैं. सचिवालय के 67 में से 43, क्षेत्र के 536 में से 292 व निदेशालय के 25 में से 23 पद रिक्त होने का असर कार्य संचालन पर पड़ रहा है.

क्षेत्रीय स्तर पर जिला आपूर्ति पदाधिकारी, सहायक जिला आपूर्ति पदाधिकारी व मार्केटिंग अफसर (एमओ) सहित खाद्य निगम में कर्मी की काफी कमी हो गयी है. इससे जन वितरण प्रणाली सहित खाद्यान्न आपूर्ति के कार्यक्रम भी प्रभावित हैं. एक अधिकारी की टिप्पणी है कि अनाज वितरण व गुणवत्ता की मॉनिटरिंग भगवान भरोसे है. खाद्य निगम में लीकेज (अनाज व केरोसिन का बीच से गायब होने) की समस्या बढ़ गयी है.

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