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शुरुआत की सीढ़ियां

-हरिवंश- साढे तीन वर्षों में यह चौथी सरकार है. अच्छा मानें या बुरा, पर शिबू सोरेन, देश के बड़े आदिवासी नेता हैं. अब तक झारखंड में जो भी मुख्यमंत्री हुए, उनमें से किसी एक के पास शिबू सोरेन जैसा जनाधार नहीं रहा. शिबू सोरेन के कारण झामुमो जन्मा, झामुमो के कारण, शिबू सोरेन नहीं हुए. […]

-हरिवंश-

साढे तीन वर्षों में यह चौथी सरकार है. अच्छा मानें या बुरा, पर शिबू सोरेन, देश के बड़े आदिवासी नेता हैं. अब तक झारखंड में जो भी मुख्यमंत्री हुए, उनमें से किसी एक के पास शिबू सोरेन जैसा जनाधार नहीं रहा. शिबू सोरेन के कारण झामुमो जन्मा, झामुमो के कारण, शिबू सोरेन नहीं हुए. अलग झारखंड के लिए लड़नेवालों में भी शिबू सोरेन का रिकार्ड, अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के मुकाबले पुराना है. वह ऐसे क्षेत्रीय दल से हैं, जिसके सुप्रीमो भी वे खुद हैं.

उनके ऊपर आलाकमान नहीं है. उन्हें दिल्ली दरबार की रोज पूजा या आरती नहीं करनी पड़ेगी. बाबूलालजी भाजपा के नुमाइंदे थे. पहले मुख्यमंत्री के रूप में. फिर अर्जुन मुंडा बने. वह भी भाजपा से संचालित थे. कोड़ाजी निर्दल थे, भाग्य की देन. पर उन्होंने अद्भुत संतुलन बना लिया था. राजनीति में संतुलन समीकरण उनकी देन है.

उन्होंने अपने पास खान, बिजली और रोड जैसे विभाग रखे. उनके अन्य सहयोगी मंत्री अपने-अपने विभागों के स्वायत्त जागीरदार थे. कोड़ाजी अपने सहयोगी मंत्रियों के कामकाज को मुख्यमंत्री की हैसियत से न रिव्यू करने की स्थिति में थे, न उनके गलत फैसलों पर पुनर्विचार करने की स्थिति में? यह संतुलन ही उनकी 23 माह की सरकारी आयु का राज है. मंत्रिमंडल बैठकों में मुख्यमंत्री पर मंत्री हावी रहते थे. इन बैठकों में मुख्यमंत्री पद की गरिमा के साथ, न चर्चा होती थी, न उस पद को महत्व मिलता था.

स्तरहीन बहसें और विवाद के अप्रिय प्रसंग भी सुनायी देते थे. मंत्रिमंडल की बैठकों में मुख्यमंत्री कई-कई घंटे मंत्रियों का इंतजार करते थे. इसलिए मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की पहली प्राथमिकता हो सकती है, मुख्यमंत्री पद, मंत्रिमंडल के कामकाज की गरिमा लौटाना.

यह वह तभी कर सकते हैं, जब वह एक अच्छी टीम बनायें. दो स्तर पर. मुख्यमंत्री सचिवालय में और निजी सहायकों की टीम. ये दो टीमें बेहतर लोगों की बनीं, तो मुख्यमंत्री का काम आसान होगा.अच्छे लोग शिबू सोरेन की टीम में होंगे, तो अपने आप यह मैसेज चला जायेगा कि सरकार क्या चाहती है?

सत्ता गुड़ है. वहां चीटियां और चीटें पहले पहुंचेंगे. इसलिए सबसे पहले वे पहुंचेंगे, जो चारण, चापलूस और दलाल हैं. दरअसल ये स्थायी राजा हैं. चाहे राजकाज किसी का हो. किसी भी सत्ताधीश के लिए इन्हें इनकी सीमा में रखना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. मीडिया में भी कुछ ऐसे लोग हैं. बाबूलालजी, पहले मुख्यमंत्री बने. वे उनके विश्वस्त हो गये. ईमानदार अफसरों के ट्रांसफर कराने लगे. ठेका, प˜ट्टा और तबादला का व्यवसाय शुरू कर लिया.

सरकार के सहयोग से. फिर अर्जुन मुंडा का राज आया. उनके भी प्रियपात्र बन बैठे. फिर रातोंरात पाला मार कर कोड़ाजी की गोद में जा बैठे. उनकी बैठकों के साथी बन गये. उनके चर्चित दरबारियों के चहेते. फिर ट्रांसफर- पोस्टिग का धंधा. सरकार कोड़ाजी की जा रही थी, पर सांस ऐसे लोगों के अटक रहे थे. अब ढोल-मजीरा लेकर यही लोग मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के यहां पहुंचेंगे. कोड़ाजी अकेले दिन काटेंगे. देश और समाज के ये घुन हैं. इनसे मुक्त होना, सरकार और मंत्रियों के हित में है, क्योंकि घुन नींव खाते हैं और जड़े खोखला करते हैं. इस तरह चारण, चापलूस और दलालों का वर्ग, काम अपना करता है और बदनाम नेता और सरकार होते हैं.

खराब शासन के कारण मधु कोड़ा कार्यकाल में कई गरीबों को जान गंवानी पड़ी. नरेगा जैसे कार्यक्रम में बेईमानी के कारण. कोडरमा में महेंद्र तुरी मरे. हजारीबाग (चुरचू प्रखंड) में तापस सोरेन ने खुद को आग लगा ली. गिरिडीह (देवरी) में कामेश्वर यादव मारे गये. नरेगा में भ्रष्टाचार की जांच के क्रम में पलामू (छतरपुर) के ललित मेहता की हत्या हुई. बुंडू (गीतलडीह) में तुरिया मुंडा ने आत्महत्या की. नरेगा मजदूरी न मिलने के कारण पलामू के (मनातू) में शिवशंकर साह ने भी आत्महत्या की.

गांधीजी ने सत्ता में बैठे लोगों के लिए ताबीज मंत्र दिया था. सबसे गरीब की स्थिति देखो. जो समाज के सबसे गरीब हैं, उनको सरकारी भ्रष्टाचार के कारण आत्महत्या करने की स्थिति से न गुजरना पडे. यह सुनिश्चित करना, सरकार का मुख्य दायित्व होना चाहिए. शिबू सोरेन की राजनीति जल, जंगल और जमीन के ईद-गिर्द घूमती रही है. नरेगा जमीन का कार्यक्रम है. इस कार्यक्रम के तय मापदंडों को तोड़नेवाले, भुनानेवाले, इससे दगा करनेवालों के खिलाफ सरकार सख्त कदम उठाये. दोषी अफसरों को न छोड़े. इसका मैसेज गांव-गांव तक जायेगा.

झारखंड में अनेक महत्वपूर्ण केंद्रीय संस्थान हैं. मसलन पलांडू स्थित बागवानी और कृषि शोध संस्थान, तसर इंस्टीट्यूट, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रामकृष्ण मिशन कृषि विश्वविद्यालय वगैरह. इन संस्थानों में प्रतिभाशाली वैज्ञानिक हैं. प्रतिबद्ध लोग हैं. ये खुशामद करते घूमनेवाले लोग नहीं हैं. इन्हें ससम्मान साथ जोड़ना होगा. अनेक जानेमाने एनजीओ हैं. इनको अवसर और सहयोग मिले, तो ये झारखंड के ग्रामीण इलाकों का नक्शा बदल देंगे. राज्य सरकार इनके साथ कदमताल मिला कर काम करे, तो ग्रामीण हालात बदलेंगे. पलायन कम होगा.

गवर्नेंस, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण जैसे गंभीर सवाल अत्यंत महत्व के हैं. शिबू सोरेन खुद मानते हैं कि कानून व्यवस्था की स्थिति खराब है. झारखंड में गवर्नेंस पुअर है. इसे ठीक करने की गंभीर कोशिश होनी चाहिए. दरबार लगाने और चाटुकारिता फन में माहिर नौकरशाहों से सजग होना सरकार के हित में है. भारत का प्राचीन मानस यह मानता था कि ‘निंदक नियरे राखिए’. निंदक से तात्पर्य है, शासकों तक सही-सही बात पहुंचानेवाले लोग.

हम झारखंडी इतराते हैं कि यह राज्य प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से सबसे संपन्न हैं. पर मानते हैं कि यह भारत का सबसे गरीब राज्य भी है. ऐसा भी नहीं है कि खनिज संपदा का यह भंडार, झारखंड में सुरक्षित खजाना है. अक्षुण्ण रहनेवाला है. मनुष्य, समाज या राज्य विपत्ति में सुरक्षित खजाने पर भरोसा करते हैं. भविष्य की थाती नहीं है, यह. पर यह अनमोल खजाना तो रोज बाहर जा रहा है. बड़े पैमाने पर आयरन ओर की तस्करी हो रही है. चीन भी भेजा जा रहा है, जो प्रतिबंधित है. इसी तरह कोयला वगैरह खनिज संपदा है, जो लगातार झारखंड से बाहर जा रहा है. कोडरमा से अबरख खत्म हो गया. इस तरह यह खजाना खाली हो रहा है. पर इस संपदा का उपयोग झारखंड के लिए नहीं हो रहा है. इस संपदा से झारखंड समृद्ध नहीं हुआ. झारखंड में रोजगार नहीं बढ़ रहा. झारखंड के निवासी समृद्ध नहीं हो रहे हैं.

किसी भी समझदार झारखंड सरकार के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है कि वह इस प्राकृतिक संपदा का उपयोग झारखंड की समृद्धि के लिए सुनिश्चित करे. संभवतया एनडीए सरकार में यह नीति बनी कि जो झारखंड में उद्योग लगायेंगे, माइंस उनको ही मिलेगा. पर झारखंड में जिनके उद्योग हैं ही नहीं. जिनके बाहर स्थित कल-कारखानों से झारखंड के लोगों को रोजी-रोटी या नौकरी नहीं मिल रही है, उन्हें खनिज संपदा का भंडार क्यों? खनिज संपदा बाहर बेच कर अरबपति, खरबपति बनने का लाइसेंस सरकार ने कैसे दिया? शिबू सरकार चाहे तो यह जांच करा सकती है कि कितने ऐसे लोगों को माइंस एलॅाट हुए हैं, जिनका राज्य में कोई कल-कारखाना या उद्योग है ही नहीं?

प्राकृतिक संपदा झारखंड के लिए अब तक अभिशाप सिद्ध हुई है. अर्थशास्त्री और शासन विशेषज्ञ एक शब्द इस्तेमाल करते हैं, ‘रिसोर्स कर्स’ (प्राकृतिक संपदा का अभिशाप). झारखंड के संदर्भ में भी यह अवधारणा सही है. दुनिया के जो मुल्क प्राकृतिक संपदा की दृष्टि से सबसे संपन्न हैं, वे भी अपनी इस संपदा का इस्तेमाल अपने लिए नहीं कर पाते? दुनिया के दूसरे देश, मुल्क या राज्य उनकी संपदा से अपना जीवनस्तर समृद्ध कर रहे हैं. नाइजीरिया आज दुनिया में दूसरे नंबर का तेल उत्पादक देश है. पर वहां की गरीबी और अराजकता देखिए. जिंबाब्बे भी प्राकृतिक संपदा की दृष्टि से दुनिया के संपन्नतम देशों में से एक है, पर वहां महंगाई सभी सीमाओं के पार चली गयी है. इस तरह अन्य देश भी हैं.

दूसरी तरफ दुनिया में ऐसे देश भी हैं, जिनके पास नगण्य प्राकृतिक संपदा है. पर वे दुनिया के सबसे समृद्ध देश बन गये. अपने श्रम से, अनुशासन से, कौशल से और कर्मठता से. मसलन जापान, कोरिया, सिंगापुर वगैरह. खुद भारत में गुजरात को देखिए. वहां प्राकृतिक संपदा नहीं है, पर वह देश के समृद्ध राज्यों में से एक है. यह द्वंद्व झारखंड को सुलझाना ही पड़ेगा. अपनी अपार प्राकृतिक संपदा के साथ यह राज्य देश का सबसे गरीब राज्य बना रहना चाहता है या अपनी प्राकृतिक संपदा के बल वह समृद्ध बनना चाहता है? इस राज्य की प्राकृतिक संपदा से अन्य राज्य समृद्ध होते रहेंगे और झारखंड पिछड़ता रहेगा? यह चुनाव झारखंड की सरकार को देर-सबेर करना ही होगा.

नैनो प्रकरण पर शिबू सोरेन का बयान महत्वपूर्ण है. आज देश के हर आगे बढ़ते राज्य ने टाटा को अपने यहां आमंत्रित किया है. क्यों? दो वजहों से. टाटा घराने की अपनी विश्वसनीयता और औद्योगीकरण की मजबूरी. कृषि और उद्योग के संतुलित विकास से ही झारखंड का नया भविष्य बनेगा. इस दृष्टि से गुरुजी का यह कहना कि टाटा कंपनी झारखंड की मि˜ट्टी से जुड़ी है, वह चाहे तो झारखंड भी आ सकती है, अर्थपूर्ण है. इस तरह राज्य के शिक्षा, सड़कों, अस्पताल, यातायात, शहरों के विकास के बारे में नयी पहल होनी चाहिए. खासतौर से गांवों, बागवानी और कृषि सिंचाई के लिए. इन क्षेत्रों में अगर नयी सरकार सार्थक कदम उठाये, तो न सिर्फ झारखंड का भविष्य सुधरेगा, बल्कि झामुमो का भविष्य भी मजबूत होगा. वरना निराशा का एक और दौर !

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