-दर्शक-
हालांकि फिल्मी दुनिया से असरानी का दौर और जमाना गुजर गया है. पर उनकी एक फिल्म का लाजवाब नाम था ‘हम नहीं सुधरेंगे.’ झारखंड के कांग्रेसी, असरानी के इस टाइटल को सच साबित करने पर तुले हैं. हाल में केंद्र में कांग्रेस को जो नया जनसमर्थन मिला, उससे कांग्रेस हाइकमान में एक नया आत्मविश्वास जगा है. सोनिया गांधी ने हाल में बयान दिया है कि पैसा कमानेवाले कांग्रेस में न आयें. राहुल गांधी कांग्रेस की काया बदलने में लगे हैं. उनके प्रयास का क्या असर होगा, यह तो भविष्य बतायेगा, पर कांग्रेस की इस नयी ऊर्जा, सोनियाजी और राहुल गांधी की सही पहल को विफल कांग्रेसी ही करेंगे. शायद इस दिशा में पहला पांव झारखंड के कुछ कांग्रेसियों ने बढ़ाया है.
झारखंड में अजय माकन ने कांग्रेस में प्राण डाले थे. इसका परिणाम सिमरिया उपचुनाव में कांग्रेस को मिले वोटों से दिखा भी था. अगर कांग्रेस, अजय माकन के रास्ते चली होती, तो झारखंड लोकसभा चुनाव में उसको एक सीट पर संतोष नहीं करना होता. पर अजय माकन को झारखंड के ही कांग्रेसियों ने विफल किया, क्योंकि कांग्रेस का एक धड़ा, निर्दलीयों की सरकार से सारे लाभ ले रहा था. निर्दलीयों के शासन में ड्राइविंग सीट पर पीछे कुछ कांग्रेसी भी थे बिना पद या दायित्व के सभी लाभ लेनेवाले. ये उस सरकार के हर पाप के हिस्सेदार हैं. पर पाप का दंड निर्दलीयों को मिल रहा है. इसलिए आज ये कांग्रेसी, नेताओं के यहां पड़े छापों का विरोध कर रहे हैं. क्या ये कांग्रेसी बतायेंगे कि लोकतंत्र में शासकों के लिए अलग कानून है, जनता के लिए अलग? जिस तरह से सरकारी विभाग चलाये गये, ट्रांसफर-पोस्टिंग, कानून तोड़ने का काम हुआ, क्या कांग्रेसी उसे जस्टिफाई करना चाहते हैं? ये नेता क्या संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस गलत करनेवालों के साथ है? चुनाव सामने है. केंद्र में बढ़ी कांग्रेस की साख ने झारखंड कांग्रेस को भी एक अवसर दिया है. लोकसभा चुनाव में मिली शिकस्त को दुरूस्त करने का अवसर भी. पर झारखंड के कांग्रेसी उस कालिदास की भूमिका में हैं, जो पेड़ पर बैठ कर वही डाल काट रहे थे, जिस पर सवार थे. इन कांग्रेसियों को किसी दुश्मन की जरूरत नहीं.
केंद्र सरकार ने झारखंड को सबसे बेहतर तोहफा दिया है, एक अच्छे राज्यपाल के रूप में के शंकरनारायणन की नियुक्ति. वह अत्यंत सुलझे और संस्कार संपन्न राजनीतिज्ञ हैं. मर्यादित और गंभीर. केरल के रहनेवाले केंद्रीय मंत्री एके एंटोनी, जिनकी ईमानदारी आज के सार्वजनिक जीवन में एक मापदंड है, उनके साथ के शंकरनारायणन ने मंत्री के रूप में काम किया है. वहां वित्त और कृषि जैसे महत्वपूर्ण विभागों को अत्यंत कुशलता से चलाया है. नगालैंड में भी राज्यपाल के रूप में अपनी छाप छोड़ी है. अशासित और अराजक हो चुके झारखंड के लिए श्री शंकरनारायणन का राज्यपाल बनना, एक महत्वपूर्ण पॉजिटिव संकेत है. उन्होंने साफ किया भी है कि उनकी प्राथमिकता गरीबों के लिए बने सरकारी कार्यक्रमों को नीचे तक पहंचाना, बिजली सुधार और विधि व्यवस्था ठीक करना है. निश्चित तौर पर कम समय में वह अपनी प्राथमिकताओं से झारखंड को बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे.
पर केंद्र में बैठी कांग्रेस, झारखंड को सड़ांध और अराजकता से बाहर निकालना चाहती है, लेकिन राज्य के कांग्रेसी कानून का राज नहीं चाहते. वे ऐसी व्यवस्था चाहते हैं, जहां उनके पसंदीदा राजनेता कानून से ऊपर मान लिये जायें. ये लोकल कांग्रेसी भूल गये कि झारखंड के पूर्व कांग्रेस प्रभारी अजय माकन ने ही पूर्व सरकार के खिलाफ अनेक गंभीर आरोप लगाये थे. उनके साथ इन लोकल कांग्रेसियों ने झारखंड की स्थिति दुरुस्त करने के लिए पैदल मार्च किया था. क्या वह पैदल मार्च नाटक था? निगरानी के छापों के खिलाफ आये इन कांग्रेसियों के बयानों से यही लगता है कि ये चाहते हैं कि गलत करनेवालों को दंड न मिले?
कांग्रेस का एक ऐसा खेमा, कुछ ही दिनों पहले भ्रष्ट लोगों के खिलाफ सीबीआइ जांच की मांग कर चुका है. पूर्व मंत्री रामेश्वर उरांव भ्रष्टाचार को गंभीर मुद्दा बता-कह चुके हैं. एक वरिष्ठ कांग्रेसी बागुन सुंब्रुई का बयान भी मजेदार है- झारखंड के इन भ्रष्ट नेताओं एवं पदाधिकारियों के कारण नाराज भगवान ने राज्य को अकालग्रस्त किया. जब तक भ्रष्ट मंत्री जेल नहीं जायेंगे, राज्य में बारिश नहीं होगी. उन्होंने यह भी कहा कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआइ एवं इंटरपोल से उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए. उन्होंने अपनी हार के कारणों की चर्चा करते हए कहा कि पैसे के बल पर उनके कार्यकर्ताओं को लोगों ने भ्रमित किया. यूपीए में शामिल कई मंत्रियों के कारनामे से कांग्रेस की बदनामी हो रही है. उन्होंने यह भी बताया कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में जो नेता आरोपियों का पक्ष ले रहे हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए.
स्पष्ट है कि कांग्रेस में इस सवाल पर एक राय नहीं है. फिर भी पदधारी कांग्रेसी इस जांच के खिलाफ मंतव्य देकर कांग्रेस का आधिकारिक पक्ष स्पष्ट कर चुके हैं. अब कांग्रेस के झारखंड प्रभारी डॉ के केशव राव ही को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई होने देना चाहती है या नहीं होने देना चाहती?