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रांची: राज्य के राजकीय उच्च विद्यालयों (जिला स्कूल राजकीय विद्यालय के कोटि में आते हैं) में 29 वर्षो से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है. अधिकतर विद्यालयों में 80 फीसदी शिक्षक सेवानिवृत्त हो गये हैं. राज्य में कुल 25 राजकीय उच्च विद्यालय हैं. कुछ स्कूल में मात्र एक शिक्षक बच गये हैं. राजकीय उवि में […]

रांची: राज्य के राजकीय उच्च विद्यालयों (जिला स्कूल राजकीय विद्यालय के कोटि में आते हैं) में 29 वर्षो से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है. अधिकतर विद्यालयों में 80 फीसदी शिक्षक सेवानिवृत्त हो गये हैं. राज्य में कुल 25 राजकीय उच्च विद्यालय हैं.

कुछ स्कूल में मात्र एक शिक्षक बच गये हैं. राजकीय उवि में अंतिम बार एकीकृत बिहार के समय में 1984 में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे गये थे. गत 29 वर्ष से विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई. शिक्षकों की कमी का असर विद्यालय के पठन-पाठन पर भी पड़ रहा है.

स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या में रिकॉर्ड गिरावट आयी है. राजकीय उच्च विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नियमावली भी नहीं बनी है. शिक्षा विभाग ने नियमावली बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. आधे से अधिक शिक्षक पद रिक्त हैं. नियुक्ति प्रक्रिया जल्द शुरू नहीं की गयी, तो विद्यालय शिक्षक विहीन हो जायेंगे. विद्यालय में लगभग पांच सौ शिक्षक के पद स्वीकृत हैं. इनमें से लगभग 128 शिक्षक कार्यरत हैं.

वर्ष 1984 के बाद से विद्यालयों में नहीं हुई नियुक्ति

अवर शिक्षा सेवा संवर्ग के होते विद्यालय के शिक्षक

12 वर्षो में शिक्षक नियुक्ति के लिए नहीं बनी नियमावली

आधे से अधिक शिक्षक हो गये सेवानिवृत्त, पढ़ाई बाधित

विद्यालयों में प्राचार्य नहीं
सभी राजकीय उच्च विद्यालयों में स्थायी प्राचार्य नहीं हैं. ये प्राचार्य अवर शिक्षा सेवा संवर्ग के होते हैं. प्रावधान के अनुरूप प्राचार्य के 80% पदों पर वरीय शिक्षक व 20 फीसदी पदों पर शिक्षा अधिकारी का नियुक्ति होनी है. विद्यालय के शिक्षक अवर शिक्षा सेवा संवर्ग के होते हैं. वर्ष 1977 में जिला स्कूल के शिक्षकों का पद क्लास टू पद घोषित किया गया था, पर आज इसका लाभ शिक्षकों को नहीं मिला.

टेस्ट से होता था नामांकन
एक समय राज्य के जिला स्कूलों में नामांकन के लिए टेस्ट होता था. इसमें सफल होने पर ही नामांकन होता था. जिला स्कूल जिले का मॉडल स्कूल होता था. अब सभी जिला स्कूल पुराना गौरव खो चुके हैं. आज विद्यालयों में सीटें रिक्त हैं. सीधे नामांकन पर भी विद्यालय में अभिभावक बच्चे का नामांकन नहीं करा रहे हैं.


1947 से पहले के स्कूल
राज्य के 16 राजकीय उच्च विद्यालय स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से संचालित हैं. रांची के तीन, हजारीबाग के दो, धनबाद के दो, दुमका के दो, पलामू के दो, साहेबगंज, चाईबासा व सरायकेला के एक -एक स्कूल ऐसे हैं, जो वर्ष 1947 से पहले से संचालित हैं.

आधे हो गये हैं विद्यार्थी
राजकीय उच्च विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या में लगातार कमी हो रही है. कई स्कूल में मैट्रिक परीक्षा में शामिल होनेवाले विद्यार्थियों की संख्या एक सौ भी नहीं है. राजधानी के जिला स्कूल से 80 के दशक मे तीन से चार सौ विद्यार्थी मैट्रिक परीक्षा मे शामिल होते थे. किसी राजकीय उवि में एक हजार से कम विद्यार्थी नहीं होते थे. आज अधिकतर राजकीय उच्च विद्यालयों में विद्यार्थी 500 भी नहीं हैं.


’’राजकीय उवि सरकार की प्राथमिकता में नहीं है. एक समय था, जब राजकीय स्कूल जिला का मॉडल स्कूल होता था. जिला स्कूल में पढ़ना गौरव का विषय होता था. स्कूल से पढ़ कर निकलनेवाले विद्यार्थी देश-विदेश में स्कूल व राज्य का नाम रोशन करते थे. संयुक्त बिहार के समय से ही स्कूल उपेक्षा का शिकार है.
गंगा प्रसाद यादव, शिक्षक संघ

शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. राजकीय बालिका उच्च विद्यालय बरियातू में चार गणित शिक्षक के पद हैं, जिनमें से मात्र एक शिक्षक ही कार्यरत हैं. अंगरेजी शिक्षक के तीन पद हैं, पर एक भी शिक्षक नहीं है. विज्ञान के चार में से दो शिक्षक हैं. संस्कृत के एक भी शिक्षक नहीं हैं. विद्यालय में कक्षा 10 में तीन, नौ मे चार, आठ में तीन व सात में दो सेक्शन हैं. सभी विषयों के शिक्षक होने से पठन-पाठन और बेहतर होगा. रिजल्ट में सुधार होगा.
नीरू पुष्पा टोप्पो, प्राचार्या, राजकीय बालिका उच्च विद्यालय बरियातू

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