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सदर अस्पताल में स्वीपर करता है टूटी हड्डियों का प्लास्टर !
किसी भी वार्ड में वार्ड अटेंडेंट तक उपलब्ध नहीं, सर्जिकल और महिला वार्ड के बीच एएनएम नहीं रहतीं सदर अस्पताल में ऑर्थोपेडिक ओटी है, जहां टूटी हड्डियों का प्लास्टर सफाइकर्मी द्वारा किया जाता है. यदि किसी घटना-दुर्घटना में आपके हाथ-पांव टूट गये हों और उसके बेहतर उपचार का भरोसा लेकर आप सदर अस्पताल पहुंचते हैं […]
किसी भी वार्ड में वार्ड अटेंडेंट तक उपलब्ध नहीं, सर्जिकल और महिला वार्ड के बीच एएनएम नहीं रहतीं
सदर अस्पताल में ऑर्थोपेडिक ओटी है, जहां टूटी हड्डियों का प्लास्टर सफाइकर्मी द्वारा किया जाता है. यदि किसी घटना-दुर्घटना में आपके हाथ-पांव टूट गये हों और उसके बेहतर उपचार का भरोसा लेकर आप सदर अस्पताल पहुंचते हैं तो यहां ऑपरेशन थियेटर में जाने के बाद कोई हड्डी रोग का एक्सपर्ट ड्रेसर नहीं बल्कि अस्पताल का स्वीपर आपकी टूटी हड्डी का प्लास्टर करेगा.
अस्पताल के ऑर्थों ओटी में कायदे से एक हड्डी रोग विशेषज्ञ चिकित्सक और एक इसके जानकार ड्रेसर की तैनाती अति आवश्यक है. यहां स्वास्थ्य सेवा का हाल यह है कि किसी भी वार्ड में वार्ड अटेंडेंट तक उपलब्ध नहीं हैं. सर्जिकल वार्ड और महिला वार्ड के बीच एक-एक एएनएम कक्ष है, जिसमें तैनात एएनएम की ड्यूटी भी आठ बजे रात तक ही है.
मतलब यह कि देर शाम के बाद अगली सुबह तक इन वार्डों में रोगियों की सुध लेनेवाला भी कोई नहीं मिलेगा.ओपीडी में शिशु रोग विभाग में हर दिन लगभग दो सौ बच्चे इलाज को पहुंचते हैं. शिशु रोग विभाग में शिशु रोग के चिकित्सक तो हैं, लेकिन बच्चों की अधिकतर बीमारियों का इलाज यहां संभव नहीं. चिकित्सक बताते हैं कि डायरिया, बुखार, खांसी आदि सामान्य रोगों के इलाज की ही यहां व्यवस्था है. अस्पताल में इन रोगों की दवाएं उपलब्ध हैं. गंभीर रूप से बीमार बच्चों को पीएमसीएच रेफर करने के अलावा कोई चारा नहीं है.
हाजीपुर : सदर अस्पताल में मुहैया करायी जा रही स्वास्थ्य सेवा का हाल यह है कि यहां किसी भी वार्ड में वार्ड अटेंडेंट तक उपलब्ध नहीं हैं. इसका नतीजा है कि वार्ड में भरती मरीजों की देखभाल भी सही ढंग से नहीं हो पाती. सर्जिकल वार्ड और महिला वार्ड के बीच एक-एक एएनएम कक्ष है, जिसमें तैनात एएनएम की ड्यूटी भी आठ बजे रात तक ही है. यानी देर शाम के बाद अगली सुबह तक रोगियों की सुध लेने वाला भी कोई नहीं.
अस्पताल में आवश्यक सुविधाओं की कमी और इससे पैदा होने वाली समस्याएं इस बात का अहसास दिलाती हैं कि अस्पताल प्रबंधन स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कितना बेपरवाह है. अस्पताल के बेहतर संचालन, चिकित्सकों एवं स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा संतोषप्रद कार्य संपादन एवं सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से गठित रोगी कल्याण समिति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किस प्रकार कर रही है, इसे समझने के लिए हम बदइंतजामी के चंद नमूने पेश कर रहे हैं.
यहां स्वीपर करते हैं प्लास्टर : यह अस्पताल का ऑर्थोपेडिक ओटी है, जहां टूटी हड्डियों का प्लास्टर सफाईकर्मी द्वारा किया जाता है. यदि किसी दुर्घटना में आपके हाथ-पांव टूट गये और उसके बेहतर उपचार का भरोसा लेकर आप सदर अस्पताल पहुंचते हैं तो यहां ऑपरेशन थियेटर में जाने के बाद कोई हड्डी रोग का एक्सपर्ट ड्रेसर नहीं बल्कि अस्पताल का स्वीपर आपकी टूटी हड्डी का प्लास्टर करेगा. अस्पताल के ऑर्थों ओटी में कायदे से एक हड्डी रोग विशेषज्ञ चिकित्सक और एक इसके जानकार ड्रेसर की तैनाती अति आवश्यक है. लंबे समय से इसकी मांग की जाती रही है, लेकिन अस्पताल प्रशासन शायद इसकी जरूरत महसूस नहीं करता.
बच्चों के इलाज की नहीं है उचित व्यवस्था : सदर अस्पताल के ओपीडी में शिशु रोग विभाग में हर दिन लगभग दो सौ बच्चे इलाज को पहुंचते हैं. जिले के दूर-दराज के इलाकों से आने वाले बीमार बच्चों में पीलिया, मलेरिया, टीबी समेत अन्य गंभीर बीमारियों के शिकार अनेक बच्चे मिलते हैं.
शिशु रोग विभाग में शिशु रोग के चिकित्सक तो हैं, लेकिन बच्चों की अधिकतर बीमारियों का इलाज यहां संभव नहीं. चिकित्सक बताते हैं कि डायरिया, बुखार, खांसी आदि सामान्य रोगों के इलाज की ही यहां व्यवस्था है. अस्पताल में इन रोगों की दवाएं उपलब्ध है. गंभीर रूप से बीमार बच्चों को पीएमसीएच रेफर करने के अलावा कोई चारा नहीं है.
चिल्ड्रेन वार्ड के अभाव में होती है परेशानी : सदर अस्पताल में चिल्ड्रेन वार्ड का नहीं होना आश्चर्यजनक है. अस्पताल में प्रतिदिन ऐसे दर्जनों बच्चों को इलाज के लिए लाया जाता है, जिन्हें भरती करने की आवश्यकता होती है.
शिशु वार्ड नहीं होने के कारण ऐसे बच्चों को बाहर भेजना पड़ता है, जो बच्चे कालाजार के शिकार होते हैं, उन्हें तो कालाजार वार्ड में भरती करा दिया है, लेकिन अन्य गंभीर रोगों में यहां इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है. मजबूरन उन्हें निजी क्लिनिक या पटना का रूख करना पड़ता है. अस्पताल के लोगों का कहना है कि यह जिला अस्पताल है, इसलिए यहां शिशु वार्ड का होना नितांत जरूरी है.
एक रेकाॅर्ड रूम तक नहीं है अस्पताल में : सदर अस्पताल के पास एक रेकाॅर्ड रूम तक नहीं है, जिसमें वह अपने दस्तावेजों को सुरक्षित रख सके. इसके अभाव में अस्पताल के अलावा जिले भर की स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित फाइलों और कागजात को संरक्षित करने की समस्या बनी हुई है.
अस्पताल सूत्रों के अनुसार रख-रखाव के अभाव में कई प्रकार के दस्तावेज सड़-गल चुके हैं या फिर दीमक की भेंट चढ़ गये हैं. ऐसे में एक सवाल जो स्वाभाविक रूप से उठ खड़ा होता है कि जिले का सदर अस्पताल जब अपने दस्तावेजों, फाइलों और महत्वपूर्ण कागजात के रख- रखाव की उचित व्यवस्था नहीं कर सकता, तो मरीजों की सुविधाओं का कितना ख्याल रख पायेगा.
परिसर में एक यूरिनल की भी व्यवस्था नहीं : एक से डेढ़ हजार मरीज प्रति दिन सदर अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचते हैं. अस्पताल परिसर में एक पेशाब घर तक नहीं बनाया गया है, जिससे लोग लघुशंका की समस्या से निबट सकें. यूरिनल नहीं होने की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को उठानी पड़ती है. जबकि अस्पताल आनेवाले मरीजों में ज्यादा संख्या महिलाओं की रहती है.
पेशाबखाना की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण मजबूरी वश लोग जहां-तहां मूत्र त्याग करते हैं, जिससे अस्पताल परिसर में गंदगी और प्रदूषण फैलता है. कई जागरूक लोगों का कहना है अस्पताल परिसर में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग यूरिनल बनाये जाने की जरूरत है ताकि लोगों की परेशानी भी दूर हो और अस्पताल को स्वच्छ रखने में भी मदद मिल सके.
क्या कहते हैं अधिकारी
सदर अस्पताल में चिल्ड्रेन वार्ड कीआवश्यकता तो है, लेकिन जगह के अभाव में यह अभी तक उपलब्ध नहीं है. इस पर योजना बनी है. जिला स्वास्थ्य समिति की बैठक में भी इस पर विचार किया गया है. सीएस कार्यालय के निकट शिशु वार्ड बनाने की तैयारी चल रही है.
डाॅ यूपी वर्मा, उपाधीक्षक, सदर अस्पताल
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