हाजीपुर : शहर के कोनहारा घाट स्थित विद्युत शव दाह गृह के बंद हो जाने से जिले के लोग फिर मायूस हो चले हैं. जिले का एक मात्र शवदाह गृह लगभग डेढ़ महीने से बंद पड़ा है. इसके बंद हो जाने से लोगों को दाह संस्कार की दुश्वारियां झेलनी पड़ रही है. शवदाह गृह के कर्मियों का वेतन भी बंद हो गया,
जिससे चलते उन्हें भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है. डेढ़ दशक के इंतजार के बाद इसी साल शुरू हुआ विद्युत शवदाह गृह डेढ़ महीने से बंद है, लेकिन इसे चालू कराने की दिशा में कोई प्रयास नहीं दिख रहा. इससे नागरिक समाज सशंकित हो गया है कि कहीं यह हमेशा के लिए फिर बंद न हो जाये.
बिल का भुगतान नहीं करने पर विभाग ने काटी बिजली : इस साल के 14 फरवरी को नगर पर्षद ने विद्युत शव दाह गृह को चालू किया था. मुजफ्फरपुर जिले की एक स्वयंसेवी संस्था को नगर पर्षद ने शवदाह गृह चलाने की जिम्मेवारी सौंपी. पर्षद के साथ हुए एकरारनामे के तहत गौरी महिला बाल कल्याण मंडल ने इसे अपने हाथ में लिया.
संस्था ने इसे चलाने के लिए स्थानीय धनेश्वर दास को ऑपरेटर, रंजीत मल्लिक को स्वीपर और लक्ष्मण पासवान को नाइट गार्ड के रूप में बहाल किया. इस बीच संस्था ने एक बार भी बिजली बिल का भुगतान नहीं किया. जबकि हर माह नियमित रूप से विभाग द्वारा बिल भेजा जाता रहा.
शव दाह गृह पर 3 लाख 40 हजार रुपये का बिजली बिल बकाया हो जाने और इसे जमा नहीं करने पर नॉर्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी ने विद्युत आपूर्ति बंद करते हुए 31 अक्तूबर को इसका कनेक्शन काट दिया.
एक करोड़ खर्च कर हुआ था जीर्णोद्धार : विद्युत शव दाह गृह के जीर्णोद्धार के लिए 2014 में राज्य सरकार के नगर विकास एवं आवास विभाग ने 97 लाख 33 हजार रुपये का आवंटन भेजा. नगर पर्षद ने इस राशि को बिहार राज्य जल पर्षद को सुपुर्द किया. जल पर्षद ने 2014 के नवंबर में शव दाह गृह का जीर्णोद्धार कार्य संपन्न कर इसे फिर से चालू करने के लिए नगर पर्षद को सौंप दिया.
नगर पर्षद ने इसके संचालन का भार जिस एनजीओ को सौंपा वह साल भर भी इसे नहीं चला पाया. शव दाह गृह के बंद होने के बाद इसके संचालकों ने एक बार भी यहां झांकने की जहमत नहीं उठायी. इधर शव दाह गृह के कर्मचारी वेतन की आशा में हर दिन उनकी बाट जोह रहे हैं.
समय और पैसे की हो रही बरबादी, बढ़ रहा नदी का प्रदूषण : विद्युत शवदाह गृह के चालू होने से एक साथ कई तरह के लाभ हो रहे थे. एक तरफ तो दाह संस्कार में लोगों के समय और पैसे की काफी बचत होती थी, दूसरी ओर घाट और नदी का प्रदूषण भी कम हो रहा था.
विद्युत शव दाह गृह में एक शव जलाने का शुल्क 500 रुपये था और 30 से 40 मिनट में यह कार्य संपन्न हो जाता था. वहीं लकड़ी की चिता पर पारंपरिक तरीके से दाह-संस्कार करने में 4 से 5 हजार रुपये खर्च होते हैं और 3 से 4 घंटे का समय लगता है. शव दाह गृह बंद होने का खामियाजा खासकर निम्न आय वाले उन परिवारों को भुगतना पड़ रहा है, जिनके घर में किसी की मृत्यु होने पर दाह-संस्कार के लिए हजारों रुपये का इंतजाम करना मुश्किल हो जाता है.
तमाम प्रयासों पर फिर गया पानी : विद्युत शवदाह गृह के बंद हो जाने से नागरिकों को लग रहा है कि उनके वर्षों के प्रयासों पर पानी फिर गया है. हम यहां याद दिला दे कि वर्षों के अभियान का ही नतीजा था कि हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकार को इसे चालू कराने को बाध्य होना पड़ा.
लावारिश लाशों और अधजली लाशों के नदी में फेंक दिये जाने से बढ़ते प्रदूषण तथा दाह संस्कार में आम आदमी की कठिनाईयों के मद्देनजर प्रभात खबर ने इस मुद्दे को प्रमुखता के साथ उठाया था. यह अखबार की खबर का असर था कि नागरिक समाज भी इस मुद्दे पर मुखर हुआ. कई सामाजिक संगठनों ने इसके लिए आंदोलन चलाया.
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने पटना हाई कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया. हाई कोर्ट ने मामले में संज्ञान लिया और सरकार पर इसे चालू करने का दबाव बना. 15 साल से बंद विद्युत शव दाह गृह 2015 में चालू हुआ तो लोगों को काफी खुशी हुई, लेकिन इसी साल इसके बंद हो जाने से लोग निराश हैं.
क्या कहता है नगर पर्षद
विद्युत शवदाह गृह के बंद हो जाने से हम भी दुखी हैं. इसे चलाने के लिए जिस संस्था से एग्रीमेंट किया गया था, उसके कामकाज की समीक्षा की जा रही है. शव दाह गृह को फिर से चालू करने का प्रयास किया जायेगा. इसके लिए आवश्यक कदम उठाये जायेंगे.
निकेत कुमार डबलू, उप सभापति