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मुहल्लेवासी हैं परेशान

बारिश की पहली बौछार ही वार्ड नंबर सात को नरक में तब्दील कर देती है. नालों के नाम पर उल्टे-सीधे निर्माण से वार्ड वासी हलकान हैं. अधिकारियों का कहना है कि सड़कों का ऊंचीकरण होने से नाला नीचे पड़ गया है सो परेशानी सामने आ रही है. सुपौल : मशहूर शायर अदम गोंडवी का यह […]

बारिश की पहली बौछार ही वार्ड नंबर सात को नरक में तब्दील कर देती है. नालों के नाम पर उल्टे-सीधे निर्माण से वार्ड वासी हलकान हैं. अधिकारियों का कहना है कि सड़कों का ऊंचीकरण होने से नाला नीचे पड़ गया है सो परेशानी सामने आ रही है.
सुपौल : मशहूर शायर अदम गोंडवी का यह शेर-जिस शहर में मुंतजिम (व्यवस्था करनेवाले) अंधे हो जल्वेगाह के, उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है… इन दिनों सुपौल की धरती पर शत-प्रतिशत चरितार्थ हो रहा है.
रेलवे स्टेशन से सटे न्यू कॉलोनी (वार्ड नंबर सात) में यत्र-तत्र फैली सड़ांध, मलमूत्र व सड़क पर पानी ने मुहल्लेवासियों को नरक में जीने के लिये विवश कर दिया है. इसे वार्ड वासियों की जीवटता कहिये या धैर्य की पराकष्ठा या फिर मजबूरी कि लोग इस वार्ड में रह रहे हैं. आश्चर्य नहीं कि जनसुविधाओं के विकास के मामले में सुपौल नगर परिषद ने सूबे में पहला स्थान प्राप्त किया है. राज्य सरकार के नगर विकास व आवास विभाग द्वारा इसे आदर्श नगर परिषद घोषित किया गया है.
लेकिन हकीकत, पानी निकासी की व्यवस्था नहीं रहने के कारण लोगों को काफी दुश्वारियां उठानी पड़ती है. सड़क पर ही पानी बहता है. साल-दर-साल से नासूर बन चुकी इस समस्या पर किसी को सोचने तक की फुर्सत नहीं है. कहने का मतलब, सच्चाई से इतर गाये जा रहे विकास के गीत. हां, चुनाव के समय वार्ड प्रतिनिधि अपने वार्ड को अमेठी से कम बनाने का वादा नहीं करते. लेकिन वादों पर अमल नहीं हुआ करता. अगर ऐसा होता तो पानी निकासी की समस्या का समाधान हो गया रहता. कीचड़ के कारण सड़क पर चलना मुश्किल नहीं होता. एक बार फिर से घोषणाओं की बारिश शुरू हो चुकी है.
जो भी हो यहां बुनियादी नागरिक दरकार का मोर्चा जिम्मेदार को तो कटघरे में खड़ा करता ही है. बहरहाल, वार्ड के लोग खुद घर के आगे मिट्टी डलवा रहे हैं, ताकि कम से कम घर से निकल तो जा सके. घर से निकलना तो जरूरी है. बच्चों को स्कूल जाना है, गार्जियन को ऑफिस, व्यावसायिक प्रतिष्ठान आदि . इधर, पापी पेट का भी तो सवाल है. पता नहीं आखिर क्यों इस विकराल समस्या पर किसी की भी नजर क्यों नहीं जा पा रही है. वैसे पूछने पर अधिकारी आचार संहिता का बहाना बनाते हैं, लेकिन इसका जवाब किसी के भी पास नहीं है कि समस्या का अब तक क्यों नहीं हुआ समाधान.
नालों के नाम पर उल्टे-सीधे निर्माण से वार्ड वासी हलकान
कुल मिलाकर, बारिश की पहली बौछार ही वार्ड नंबर सात को नरक में तब्दील कर देती है.नालों के नाम पर उल्टे-सीधे निर्माण से वार्ड वासी हलकान हैं. दबी जुबान से अधिकारियों का कहना है कि सड़कों का ऊंचीकरण हुआ है और नाला नीचे पड़ गया है सो परेशानी सामने आ रही है. यह सच है कि शहर का विकास हुआ है. लेकिन यह भी सच है कि हल्की बारिश में भी शहर पानी-पानी हो जाता है. पेंट मोड़कर चलना लोगों की मजबूरी हुआ करती है.
इस वार्ड में तरह-तरह के मच्छर हैं. लेकिन अब तक यहां मच्छर मुद्दा नहीं बन सका है. मुद्दा भी भला कैसे बने, इससे किसी को तत्काल लाभ होने वाला तो है नहीं. प्रतिनिधियों को अंदरूनी राजनीति से ही फुर्सत नहीं है. लोगों का कहना है कि जल निकासी व मच्छर को बनाओ मुद्दा, भला करेगा खुदा. बताया गया कि मच्छर भगाने का टिकिया का भी अब कोई असर नहीं होता. हाल के दिनों में मच्छरों की बाढ़ सी आ गयी है.
अब तो खाने के समय कौर के साथ मच्छर भी पेट में चला जाता है. वार्ड वासियों का कहना है कि न्यू कॉलोनी में बारहो मास गंदे जल का जमाव रहा करता है. फलस्वरूप यहां मच्छरों की तादात अधिक रहती है. लेकिन भैया, यहां ना तो मच्छर मुद्दा और ना ही जल निकासी. मुद्दा है तो बस बिरादरी, ‘बिरादरी’ के पीछे की बिरादरी की राजनीति. इधर, गंदगी व मच्छर के कारण लोगबाग बीमार पड़ रहे हैं सो अलग. इस वार्ड के ओम, आकाश व वंश को बुखार है. नामों की लंबी फेहरिस्त है. बुखार के पीछे का सच गंदगी, मच्छरों की बाढ़ व जल निकासी की समस्या ही है.

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