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पांडवों ने की थी देवी की स्थापना

ऐतिहासिक धरोहर. वीर लोरिक की धरती है सुपौल का प्रसिद्ध हरदी दुर्गा स्थान हरदी दुर्गास्थान जिले का एक महत्वपूर्ण धरोहर है. इसकी चर्चा पौराणिक ग्रंथों व इतिहासकारों द्वारा भी की गयी है. सुपौल : जिला मुख्यालय से महज 12 किलो मीटर दूर पूरब सुपौल-सिंहेश्वर मुख्य मार्ग में अवस्थित जिले की ऐतिहासिक वीर लोरिक की धरती […]

ऐतिहासिक धरोहर. वीर लोरिक की धरती है सुपौल का प्रसिद्ध हरदी दुर्गा स्थान

हरदी दुर्गास्थान जिले का एक महत्वपूर्ण धरोहर है. इसकी चर्चा पौराणिक ग्रंथों व इतिहासकारों द्वारा भी की गयी है.
सुपौल : जिला मुख्यालय से महज 12 किलो मीटर दूर पूरब सुपौल-सिंहेश्वर मुख्य मार्ग में अवस्थित जिले की ऐतिहासिक वीर लोरिक की धरती हरदी दुर्गास्थान जिले का एक महत्वपूर्ण धरोहर है. इसकी चर्चा पौराणिक ग्रंथों एवं इतिहासकारों द्वारा भी की गयी है. मान्यता है कि महान योद्धा वीर लोरिक मन्यार उत्तर प्रदेश के गौरा गांव से पांचवीं शताब्दी में सती चनैनियां को भगा कर हरदी पहुंचे थे. तब यहां के राजा महिचंद थे. वीर लोरिक ने महिचंदा स्थित राजा महिचंद साह के घर पहुंच कर अपनी सारी बात राजा को बतायी थी. राजा ने उनकी बात सुन कर उन्हें यहां रहने का आदेश दे दिया. जहां वो दोनो रहने लगे.
इसी बीच राजा के सिपाही बैंगठा चमार की बुरी नजर सती चनैनियां के उपर गयी और उसे पाने के लिए वे आपस में लड़ने लगे. अंत में सती चनैनियां ने दोनो वीर को कहा कि आप दोनों आपस में फैसला कर लिजिए. युद्ध में जो जितेगा वे उसी के साथ रहेगी. उसके बाद वीर लेरिक व बैंगठा चमार में युद्ध शुरू हो गया. लगभग 45 दिनों तक चले युद्ध के बाद तिलाबे नदी स्थित बेरा गाछी घाट पर वीर लोरिक ने बैंगठा चमार को पराजित करके सती चनैनियां से शादी कर ली. फिर वीर लोरिक मन्यार यहीं के होकर रह गये और कभी वापस लौट कर अपने गांव गौरा नहीं गये. इतना ही नहीं हरदी स्थान से 02 किमी पूरब रामनगर सीमा क्षेत्र स्थित वीर लोरिक के नाम से 15 डिसमिल जमीन आज भी दस्तावेज में दर्ज है, जिसे लोरिकडीह के नाम से जाना जाता है.
मेले का किया गया है आयोजन :
हरदी दुर्गा स्थान में फिलवक्त 15 दिवसीय मेले का आयोजन किया गया है. उक्त मेला हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा व वीर लोरिक जयंती के अवसर पर आयोजित की जाती है. मेला परिसर में इस अवसर पर विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित की गयी है. जिसमें भगवान शंकर, पार्वती जी, सरस्वती जी, लक्ष्मी जी तथा गणेश व कार्तिक की प्रतिमा शामिल हैं. जिनकी इन दिनों विशेष रूप से पूजा अर्चना की जा रही है.
अपरंपार है भगवती स्थल की महिमा
हरदी में ही उत्तर बिहार का प्रसिद्ध वन देवी दुर्गा की मंदिर स्थापित है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक पाण्डवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान बिराटनगर जाने के क्रम में हरदी गांव में देवी वन दुर्गा को प्रतिष्ठापित किया गया था. तब से लेकर आज तक मां देवी वन दुर्गा की पूजा अर्चना बड़े आस्था और विश्वास के साथ की जाती है. यहां आसपास के ग्रामीणों के अलावा प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा-उपासना करने के लिए आते हैं. ऐतिहासिक भगवती स्थल की महिमा अपरंपार है.
श्रद्धालुओं का मानना है कि जो भक्त यहां सच्चे मन से पूजा- अर्चना करने आते हैं. उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है. वैसे तो हर दिन यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. लेकिन मंगलवार व शुक्रवार को पूजा की विशेष महत्ता मानी जाती है. सालों भर यहां छाग बलि देने की भी परंपरा है. हरदी दुर्गा स्थान स्थित मां वन देवी दुर्गा की ख्याति काफी दूर-दूर तक फैली हुई है. यही वजह है कि उक्त मंदिर में सालों भर भक्तों का तातां लगा रहता है.

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