उदासीनता. शहर में नहीं है युवाओं के लिए क्लब व पुस्तकालय
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मनोरंजन के लिए नहीं कोई साधन
उदासीनता. शहर में नहीं है युवाओं के लिए क्लब व पुस्तकालय शहर में क्लब, पुस्तकालय व क्रीड़ा केंद्र जैसी जगहों की आज भी भारी कमी है, जहां स्थानीय युवा अपना फुरसत का दो पल गुजार सकें. सुपौल : सूबे में जारी विकास प्रक्रिया से सुपौल शहर भी अछूता नहीं है. जिला मुख्यालय स्थित बाजार भी […]
शहर में क्लब, पुस्तकालय व क्रीड़ा केंद्र जैसी जगहों की आज भी भारी कमी है, जहां स्थानीय युवा अपना फुरसत का दो पल गुजार सकें.
सुपौल : सूबे में जारी विकास प्रक्रिया से सुपौल शहर भी अछूता नहीं है. जिला मुख्यालय स्थित बाजार भी पहले से बेहतर हुआ है. सड़कें भी चकाचक हो चुके हैं. 1991 में जिला बनने के बाद विकास की गति और भी तीव्र हुई है. कई सरकारी दफ्तर खुल गये. शहर की आबादी भी बढ़ी है, लेकिन 65 हजार की आबादी वाले सुपौल शहर के युवाओं के सांस्कृतिक, शैक्षणिक, मानसिक व मौलिक विकास के लिए यहां कोई ऐसा संस्थान नहीं खुला, जिसका लाभ स्थानीय नौजवानों को मिल सके.
शहर में क्लब, पुस्तकालय व क्रीडा केंद्र जैसे संस्थाओं की आज भी भारी कमी है, जहां स्थानीय युवा अपना फुरसत का दो पल गुजार सकें. आलम यह है कि पढ़ाई-लिखाई व घर के आवश्यक कार्यों के बाद युवा अपनी शाम कहां गुजारे, यह आज भी स्थानीय युवकों के लिए समस्या का कारण बना हुआ है. स्वस्थ्य मनोरंजन का कोई साधन व ठिकाना नहीं रहने के कारण युवाओं को मजबूरन अपना फुरसत का क्षण साथियों के साथ चाय-पान की दुकानों पर गुजारना पड़ता है,
जिससे न सिर्फ उनके समय की बरबादी होती है. बल्कि वे अनजाने में ही सही इन दुकानों पर पान, सिगरेट व गुटखों के आदि बन जाते हैं. जबकि अधिकांश युवकों की माने तो वे कभी भी बेवजह ऐसे दुकानों पर नहीं जाना चाहते. लेकिन मुश्किल है कि शहर में न ही कोई युवा क्लब, पार्क, पुस्तकालय व मनोरंजन के अन्य ठिकाने हैं. जहां पहुंच कर उनका शैक्षणिक व सांस्कृतिक विकास संभव हो सके. ऐसे में शहर के हजारों नौजवानों के समक्ष आज भी यह यक्ष प्रश्न बना है कि वे आखिर जायें तो जायें कहां ?
नहीं है एक भी पुस्तकालय: सरकार द्वारा इन दिनों जहां एक ओर प्रखंड, पंचायत व विद्यालय स्तर पर पुस्तकालय खोलने का दावा किया जा रहा है. वहीं दूसरी और विडंबना है कि सुपौल जिला मुख्यालय में आज तक एक भी सरकारी अथवा गैर सरकारी पुस्तकालय की स्थापना नहीं की गयी है. जहां छात्र-छात्रा व युवा वर्ग के लोग पहुंच कर किताबों से अपना ज्ञानवर्धन कर सकें, जबकि शिक्षा के क्षेत्र में पुस्तकालय का अहम रोल माना जाता हैं. महंगाई के इस दौर में महत्वपूर्ण किताबें महंगी हो चुकी है. जिसकी खरीदारी खासकर गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों के लिए संभव नहीं हो पाता है.
ऐसे में बड़े शहरों में मौजूद पुस्तकालय बच्चों की शिक्षा में अहम भूमिका निभाती है. दुर्भाग्य है कि सुपौल शहर में एक भी पुस्तकालय नहीं है. जिसका खामियाजा स्थानीय युवाओं को उठाना पड़ता है. गौरतलब है कि जिला मुख्यालय में करीब 100 वर्ष पूर्व एक पब्लिक क्लब एंड लाइब्रेरी की स्थापना हुई थी. क्लब की अपनी जमीन व भवन भी मौजूद है, लेकिन यहां पुस्तकों की कमी व शैक्षणिक माहौल नहीं रहने की वजह से पब्लिक क्लब बस नाम का ही क्लब रह गया है. क्लब के लिए वर्षों से नये लोगों को सदस्यता नहीं मिल पा रही है. नतीजतन शहर के हृदय स्थली महावीर चौक पर मौजूद रहने के बावजूद पब्लिक क्लब आम लोगों को नसीब नहीं हो पा रहा.
नहीं हैं क्रीड़ा के समुचित साधन :
जिला बनने के बाद कहने को तो सुपौल मुख्यालय में एक सरकारी स्टेडियम व एक इंडोर स्टेडियम की स्थापना की गयी, लेकिन शहर के उत्तरी हिस्से में बने स्टेडियम में अग्निशमन, उत्पाद, भूदान आदि विभागों ने कब्जा जमा रखा है. मैदान का भी उचित ढंग से रख-रखाव नहीं किया जाता है. जिसकी वजह से बच्चों के खेलने के लिये बना यह स्टेडियम अपने उद्देश्यों की पूर्ति में विफल साबित हो रहा है.
स्थानीय कचहरी के समीप करीब 60 लाख की लागत से वर्षों पूर्व इंडोर स्टेडियम का निर्माण किया गया है. लेकिन स्टेडियम में सिर्फ एक बैडमिंटन कोट मौजूद है. वहीं उक्त स्टेडियम की सदस्यता शुक्ल बहुत ज्यादा रहने की वजह से शहर के आम युवा चाह कर भी इसकी सदस्यता ग्रहण नहीं कर पाते. नतीजा है कि यह इंडोर स्टेडियम महज कुछ खास लोगों के मनोरंजन का केंद्र बन कर रह गया है. जिससे आम नौजवानों में असंतोष व्याप्त है.
पब्लिक क्लब एंड लाइब्रेरी में नहीं हैं पुस्तकें, महज नाम का ही है क्लब, सदस्यता मिलना भी है मुश्किल
अपने उद्देश्यों की पूर्ति में विफल साबित हो रहे शहर में बने स्टेडियम
शहर में नहीं है कोई पार्क, अधर में लटका है गजना सौंदर्यीकरण योजना
अधर में लटकी गजना नदी सौंदर्यीकरण योजना
शहर के एक तत्कालीन वरीय प्रशासनिक पदाधिकारी की पहल पर जिला मुख्यालय में चिल्ड्रेन पार्क की स्थापना की गयी थी, लेकिन एक तो यह पार्क क्षेत्रफल में छोटा है. वहीं दूसरी ओर रख-रखाव के अभाव में चिल्ड्रेन पार्क पूरी तरह जर्जर हो चुका है. नतीजा है कि युवाओं की कौन कहे, छोटे बच्चों के लायक भी अब यह पार्क नहीं रह गया है. विदित हो कि करीब 15 वर्ष पूर्व तत्कालीन डीएम नीतीन कुलकर्णी के कार्यकाल में जिलाधिकारी के पहल पर मुख्यालय स्थित गजना नदी का सौंदर्यीकरण एवं नदी के दोनों तट पर एक किलोमीटर लंबा पार्क बनाने की योजना बनी थी.
डीएम के निर्णय से आम शहरियों में खुशी का माहौल व्याप्त हो गया था, लेकिन उनके तबादले के साथ ही इस योजना पर ग्रहण लग गया प्रतीत होता है. बाद के अधिकारी व किसी जन प्रतिनिधि ने भी शहर के सौंदर्यीकरण के इस महत्वपूर्ण हिस्से को पूरा करने का जिम्मा नहीं उठाया. जिसका परिणाम है कि आम शहरियों को सुबह व शाम में खुद व परिवार के साथ टहलने व समय गुजारने का कोई ठौर-ठिकाना जिला मुख्यालय में उपलब्ध नहीं है.
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