लापरवाही. व्यवहार न्यायालय में प्रत्येक दिन दर्जनों पुलिस कर्मी रहते हैं तैनात
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ताकती रही पुलिस, भाग गये शातिर
लापरवाही. व्यवहार न्यायालय में प्रत्येक दिन दर्जनों पुलिस कर्मी रहते हैं तैनात गुरुवार को पेशी के बाद दो शातिर अपराधियों के भागने की घटना के बाद सुपौल पुलिस के सक्रिय होने के दावों की पोल खोल कर रख दिया है. वहीं व्यवहार न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है. सुपौल […]
गुरुवार को पेशी के बाद दो शातिर अपराधियों के भागने की घटना के बाद सुपौल पुलिस के सक्रिय होने के दावों की पोल खोल कर रख दिया है. वहीं व्यवहार न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है.
सुपौल : व्यवहार न्यायालय में गुरुवार को पेशी के बाद दो शातिर अपराधियों के भागने की घटना के बाद सुपौल पुलिस के सक्रिय होने के दावों की पोल खोल कर रख दिया है. वहीं व्यवहार न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है. ज्ञात हो कि व्यवहार न्यायालय में प्रत्येक दिन कई दर्जन पुलिस कर्मी तैनात रहते हैं. वहीं न्यायालय से महज चंद कदम की दूरी पर एसपी आवास व पुलिस विभाग का गोपनीय कार्यालय भी है.
इस कारण कोर्ट परिसर को अति सुरक्षित इलाका माना जाता है, लेकिन इन दिनों बेहतर प्रबंधन के अभाव में शहर का सबसे सुरक्षित यह इलाका अशांत हो गया है. खास कर बाइक चोर गिरोह की सक्रियता के कारण कोर्ट परिसर में अधिवक्ता भी अपने आपको असुरक्षित मान रहे हैं. परिसर की सुरक्षा का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि महज एक माह के दौरान न्यायालय परिसर से तीन बाइक के अलावा अनगिनत साइकिल गायब हो चुके हैं.
चोरी गये बाइक को खोजने में जहां सदर थाना पुलिस नाकाम रही है वहीं इस गिरोह के उद्भेदन में भी पुलिस को सफलता हासिल नहीं हो पायी है. वहीं गुरुवार को जब दो शातिर अपराधी पुलिस अभिरक्षा में हथकड़ी से हाथ निकाल कर भाग रहे थे तो दर्जनों जवान कोर्ट परिसर में मूक दर्शक बने हुए थे. प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो अगर कोर्ट परिसर में मौजूद जवान एकजुटता दिखा कर भाग रहे कैदियों का पीछा करते तो शायद दोनों शातिर को भागने में सफलता नहीं मिलती.
वहीं इस मामले को लेकर सदर थाना पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं. सदर प्रखंड में महज दो दिन बाद पंचायत निर्वाचन के तहत मतदान होना है. मतदान को ले कर निर्वाचन आयोग और पुलिस मुख्यालय से मिले निर्देश के आलोक में प्रखंड क्षेत्र में पुलिस की सक्रियता बढ़ाने का आदेश सदर थानाध्यक्ष को दिया गया है. अगर गुरुवार को जिला मुख्यालय में पुलिस सक्रिय रहती तो शायद फरार होने के कुछ देर बाद दोनों शातिर को गिरफ्तार किया जा सकता था, लेकिन निष्क्रिय हो चुकी सदर थाना पुलिस के हाथ घंटों बीतने के बावजूद खाली ही है.
मंडल कारा में बनी थी भागने की योजना: व्यवहार न्यायालय में पेशी के बाद गुरुवार को दो शातिर अपराधियों के भागने की योजना मंडल कारा के अंदर बनायी गयी थी. गुरुवार को घटना के बाद मामले की जांच में जुटे पुलिस पदाधिकारियों को प्रारंभिक जांच में इस बात के कई सबूत भी हाथ लगे हैं.
कोर्ट परिसर में भी पुलिस अधिकारी इस घटना को आकस्मिक मानने के लिए तैयार नहीं थे. सदर डीएसपी वीणा कुमारी के नेतृत्व में पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने मंडल कारा पहुंच कर मनीष व गजेंद्र के वार्ड की गहन तलाशी लिया. ज्ञात हो कि शातिर मनीष, गजेंद्र पंडित और पमपम सिंह एक ही आपराधिक गिरोह के सदस्य हैं. इन तीनों की गिरफ्तारी पिपरा थाना कांड संख्या 98/15 में की गयी थी. हालांकि जेल के अंदर मनीष सेल नंबर आठ, गजेंद्र सेल नंबर सात तथा पमपम सेल नंबर पांच में रह रहा था, लेकिन तीनों शातिर पूरे दिन साथ में रह कर गुजारता था.
गुरुवार को पेशी के लिए हाजत से ले जाते समय मनीष और गजेंद्र आगे तथा पमपम और रमेश पासवान पीछे हथकड़ी से बंधा चल रहा था. घटना की तफ्सीश में जुटे पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि भीड़-भाड़ वाले इस इलाके से रणनीति तय किये बिना इतने बड़े कदम उठाने की हिम्मत अपराधी नहीं करते.
हाजत व हथकड़ी का भी है दोष
कई आपराधिक घटनाओं से भी संगीन इस वारदात में सिर्फ पुलिस कर्मी की लापरवाही को ही कारण नहीं माना जा सकता. इस वारदात में कोर्ट का पुराना हाजत और बाबा आदम जमाने की हथकड़ियां भी कम जिम्मेदार नहीं है. ज्ञात हो कि बीते एक वर्ष से भी अधिक समय से न्यायालय नव निर्मित भवन में संचालित हो रहा है,
जबकि कैदियों को मंडल कारा से लाये जाने के बाद पुराने भवन स्थित हाजत में रखने की व्यवस्था है, जबकि हाजत से न्यायालय की दूरी करीब दो सौ मीटर से भी ज्यादा है. अधिक दूरी रहने के कारण रोजाना कैदियों को कोर्ट में पेशी के लिए हथकड़ी लगा कर पांव-पैदल ले जाया जाता है, जो जोखिम भरा है.
वहीं हथकड़ी के काफी पुराने रहने की वजह से भी पुलिस कर्मियों की परेशानी बढ़ जाती है. हाजत में तैनात पुलिस कर्मियों की मानें तो वर्षों पुराने इन हथकड़ियों को अपराधी के हाथ में लगाने के बाद स्लीप करने की अधिक संभावना बनी रहती है. वहीं पुलिस कर्मियों के पास उपलब्ध संसाधनों से भी शातिर अपराधी अवगत रहते हैं और इन खामियों का फायदा उठाने के फिराक में रहते हैं.
पांच जिलों के आतंक हैं मनीष व गजेंद्र
पेशी के बाद पुलिस अभिरक्षा से फरार शातिर अपराधी मनीष यादव और गजेंद्र पंडित पांच जिले सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया व अररिया जिले में आतंक का पर्याय माना जाता है. इन दोनों शातिर अपराधी के विरुद्ध इन जिलों में दर्जनों आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें सड़क लूट, अपहरण, डकैती, हत्या व रंगदारी से संबंधित कई संगीन मामले शामिल हैं.
मधेपुरा जिला के मुरलीगंज व सिंहेश्वर थाना क्षेत्र में गत वर्ष हुए सिलसिलेवार मवेशी व्यवसायी लूट कांड में गजेंद्र की भूमिका सरगना की रही थी. जिले के पिपरा थाना क्षेत्र में भी कई लूट कांड का नेतृत्व गजेंद्र ने ही किया है. वहीं मनीष यादव इस गिरोह में शूटर की पहचान रखता है. बाइक व देसी कट्टे पर अपनी विशेष पकड़ के लिए मनीष की अपराध के दुनियां में चर्चा है.
कोर्ट में मौजूद था मुन्ना यादव
गुरुवार को जिस समय दोनों शातिर व्यवहार न्यायालय से पुलिस को चकमा देकर फरार हुए उस वक्त इन अपराधियों का एक सहयोगी मुन्ना यादव न्यायालय परिसर में मौजूद था. संभावना जतायी जा रही है कि तय रणनीति के तहत दोनों अपराधी को भागने में मदद की नीयत से ही मुन्ना कोर्ट में मौजूद था.
कोर्ट हाजत में तैनात हवलदार बद्री नारायण मंडल ने बताया कि मुन्ना यादव भी इन्हीं अपराधियों के साथ पिपरा थाना कांड संख्या 98/15 में गिरफ्तार हुआ था.
बाद में उसे न्यायालय से जमानत पर रिहा कर दिया गया. जानकारी के अनुसार जिस वक्त दोनों कुख्यात को न्यायालय में पेश किया गया था, उस वक्त न्यायालय के बरामदे पर मुन्ना यादव भी मौजूद था. पेशी के बाद दोनों शातिर की मुन्ना से बात भी हुई और कुछ देर बाद ही हाजत जाने के क्रम में दोनों अपराधी भाग खड़े हुए.
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