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सड़क दुर्घटना मामले में खतरनाक जोन बनता जा रहा सुपौल

सुपौल : स्थानीय दक्षिण हटखोला पथ में रविवार की सुबह हुई सड़क दुर्घटना में तीन वर्षीय अबोध बालक की जान चली गयी. बच्चे की मौत से जहां उनके माता- पिता व परिजनों पर गम का पहाड़ टूट पड़ा और दुर्घटना से आक्रोशित लोगों ने सड़क पर प्रदर्शन कर अपना विरोध प्रकट किया. दुर्घटना में शामिल […]

सुपौल : स्थानीय दक्षिण हटखोला पथ में रविवार की सुबह हुई सड़क दुर्घटना में तीन वर्षीय अबोध बालक की जान चली गयी. बच्चे की मौत से जहां उनके माता- पिता व परिजनों पर गम का पहाड़ टूट पड़ा और दुर्घटना से आक्रोशित लोगों ने सड़क पर प्रदर्शन कर अपना विरोध प्रकट किया.

दुर्घटना में शामिल मिनी ट्रक की तोड़ फोर भी की गयी. वहीं सरकारी जमीन पर पसरे अतिक्रमण को भी दुर्घटना के लिए दोषी बताते हुए इसे उजाड़ने का प्रयास किया गया. लोगाें का आक्रोश चरम पर था. प्रशासनिक दखल से इसे शांत कराया गया. साथ ही आश्वासन भी दिया गया कि शीघ्र ही इस प्रकार की दुर्घटना पर अंकुश लगाने हेतु आवश्यक कदम उठाये जायेंगे. लेकिन दुर्भाग्य है कि एक दिन बाद ही कुछ भी बदला नहीं दिखा और कहर फिर से पूर्व की तरह रेगने लगा.

बीत गयी सो बात गयी की तर्ज पर त्वरित कार्रवाई का आश्वासन देने वाले आलाधिकारी भी फिर से अपनी दिनचर्या में मशगूल हो गये. सोमवार को प्रभात खबर ने जब उक्त चौक, सड़क व शहर का जायजा लिया तो सब कुछ पूर्व की तरह ही दिख रहा था. जैसे पहले कुछ हुआ ही नहीं था. सड़कों पर फिर से अतिक्रमण का जाल बिछा हुआ था. वाहन फिर से बेरोकटोक फर्राटे भर रहे थे. सड़के आज भी सिकुड़ी नजर आ रही थी. जिसके बीच गुजरते वाहन किसी दुर्घटना को आमंत्रित करता प्रतीत हो रहा था.

प्रशासन व पुलिस आज फिर गौण था, शायद किसी नए दुर्घटना की सूचना के इंतजार में. ताकि फिर से आश्वासनों की घुंटी पिला कर अपने जिम्मेदारियों से निजात पाया जा सके. जबकि लोगों की माने तो शहर में फैले अतिक्रमण, तेज रफ्तार गाडि़यां, व्याप्त कुव्यवस्था व लोगोंं की मानसिकता बदले बदले ऐसी घटनाओं पर लगाम कसना कतई संभव नहीं है.

अतिक्रमण के कारण सिकुड़ रही सड़कें शहर की तकरीबन सभी सड़के अतिक्रमण की चपेट में हैं. धरल्ले से सड़कों पर लगाये जाने वाले फल- सब्जी की दुकाने व रिक्शे – ठेलों की वजह से शहर की सड़कें दिन व दिन सिकुड़ती जा रही है. विशेषकर स्टेशन चौक, हट खोला रोड, महावीर चौक, लोहिया नगर आदि का बुरा हाल है.

इन सड़कों पर अतिक्रमण के फैले मकड़ जाल की वजह से वाहनों की कौन कहे आम शहरियों का चलना भी दुष्कर साबित होता है. नगर परिषद द्वारा दक्षिण हट खोला रोड व थाना रोड में गुदरी बाजार का निर्माण किया गया है. लेकिन प्रशासनिक इच्छा शक्ति के अभाव व पुलिस की अकर्मण्यता के कारण सब्जी व फल की दुकाने गुदरी के बजाय चौक चौराहों व सड़कों के किनारे ही लगती हैं.

खतरे को आमंत्रित करती तेज रफ्तार गाड़ियांजिला मुख्यालय के साथ ही जिले के अन्य हिस्सो में वाहनों की रफ्तार पर प्रशासन का कोई अंकुश नहीं है. यही वजह है कि चिकनी सड़कों पर आधुनिक तेज रफ्तार गाडि़यां अक्सर फर्राटे भरते दिखती हैं. सीमा से अधिक गति, ट्रिपल लोडिंग व अल्प वयस्कों द्वारा भी वाहनों का परिचालन शहर में आम बात हो चुकी है.

प्रशासनिक उदासीनता की वजह से ऐसे वाहनों पर रोक लगाना असंभव प्रतीत होता है. परिवहन विभाग भी ऐसे मामलों में मौन दिख रहा है. जिसका खामियाजा आये दिन आम शहरी भुगतने को विवश हैं.ट्रेफिक पुलिस की नहीं है व्यवस्थाजिला बनने के 24 साल बाद भी जिले में ट्रेफिक पुलिस की व्यवस्था नहीं की जा सकी है.

चौक चौराहों पर ट्रेफिक पुलिस की तैनाती नहीं रहने के कारण वाहनों का मनमाने ढंग से परिचालन किया जाता है. नियम कायदों को धता बताते ये वाहन ही अक्सर दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं. वहीं ट्रेफिक पुलिस नहीं रहने से आज भी अधिकांश वाहन चालक ट्रेफिक के नियम कायदों से ना वाकिफ हैं. हर वर्ष सड़क दुर्घटना में सैकड़ों जाती है जानगौरतलब है कि जिले में फोर लेन एनएच 57, एन एच 106, एस एच 66 व 76 के निर्माण के बाद लोगों को कई चकाचक व चौड़ी सड़कें मयस्सर हो गयी हैं.

शहर से गुजरने वाली सड़क को भी एनएच 327 का दर्जा मिल चुका है. यह दीगर बात है कि इन सड़कों पर प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त नहीं रहने की वजह से सुपौल जिला सड़क दुर्घटना मामले में खतरनाक जोन बनता जा रहा है. यही कारण है कि हर साल इन सड़कों पर होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में सैकड़ों लोग असमय ही काल कलवित हो जाते हैं.

आंकड़ों पर गौर करें, तो इस वर्ष जिले में हुए सड़क हादसों में अब तक 62 लोगों की जाने जा चुकी है. जबकि 169 जख्मी हुए हैं. वहीं बीते वर्ष 2014 में 107 मौत 174 जख्मी, 2013 में 100 मौत व 530 जख्मी तथा 2012 में 98 मौत व 273 जख्मी हुए थे. हादसों के आंकड़े निश्चित तौर पर सिहराने वाले हैं. लेकिन हकीकत यही है कि जब तक इन आंकड़ों से प्रशासनिक महकमें में सिहरन नहीं होती, सुधार की गुंजाइश नहीं की जा सकती.

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