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सच्चे प्रेम, भाव व लगन से नाम का जप करे तो होगा भगवान का दर्शन: शिवानंद जी महाराज

सच्चे प्रेम, भाव व लगन से नाम का जप करे तो होगा भगवान का दर्शन: शिवानंद जी महाराज फोटो -5,6कैप्सन – प्रवचन करते स्वामी जी व उपस्थित श्रद्धालु- भगवान में है वृति कराने की शक्ति- प्राणियों के धर्मानुकूल आचरण से धर्म का होता है स्वत: प्रचार- पशु भी करता है सबों के हित रखने वाले […]

सच्चे प्रेम, भाव व लगन से नाम का जप करे तो होगा भगवान का दर्शन: शिवानंद जी महाराज फोटो -5,6कैप्सन – प्रवचन करते स्वामी जी व उपस्थित श्रद्धालु- भगवान में है वृति कराने की शक्ति- प्राणियों के धर्मानुकूल आचरण से धर्म का होता है स्वत: प्रचार- पशु भी करता है सबों के हित रखने वाले प्राणियों की सेवाप्रतिनिधि, सुपौल स्थानीय राधाकृष्ण ठाकुरबाड़ी परिसर आयोजित श्रीमद भागवत कथा के पांचवें दिन गुरुवार को भक्तिमय रस में सराबोर होते रहे. संगीत, राग व सुरों से समाहित कथा का वाचन कर रहे स्वामी शिवानंद जी महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि कलिसन्तरणोपनिषद में आया है कि ‘हरे राम’ का साढ़े तीन करोड़ बार जप करने पर भगवान के दर्शन हो जाते हैं. लेकिन यह नियम नहीं है. उन्होंने बताया कि कई प्राणी इससे से भी अधिक बार जप किया है. पर उन्हें भगवान की प्राप्ति नहीं हुई. बताया कि भगवान के दर्शन होने में क्रिया की प्रधानता कम रहती है. बताया कि भगवान के दर्शन के लिए सच्चे भाव, प्रेम व लगन की प्रधानता है. कहा कि जिस भक्ति में प्रेम का भाव न हो तो करोड़ों बार जप करने पर भी दर्शन नहीं होता है. वहीं लगन, भाव व प्रेम के साथ थोड़े समय भी जप की जाये तो भगवत दर्शन हो जाता है. उन्होंने बताया कि कलिसन्तरणोपनिषद नाम जप की संख्या इसलिए लिया बताया गया है ताकि प्राणियों में आलस्य व प्रमाद न हो. एक नाम से ही होगी भगवत्प्राप्ति स्वामी शिवानंद जी महाराज ने बताया कि मनुष्य का उद्देश्य तेज हो और अपने बल का सहारा न हो तो एक नाम से ही भगवत्प्राप्ति हो सकती है. कहा कि ”निरबल ह्वै बलराम पुकारयो- आये आधे नाम” क्रिया की तरफ वृति रहने से निष्प्राण होता है और भगवान की तरफ वृति करने से सप्राण हो जाता है. कहा कि नामी में प्रेम होना चाहिए. क्योंकि हमारे प्यारे का नाम है. इसे लेकर नाम- जप करना चाहिए. कहा कि भगवान के विविध स्वरूप के साथ – साथ नाम भी अनंत है. पर प्राणियों की वृति भगवान में होगी तो ही कल्याण होगा. स्वामी जी ने कहा कि नाम जप में निहित कल्याण करने की शक्ति का कारण हमारी वृति है. उदाहरण स्वरूप उन्होंने बताया कि सर्दी लगने पर गरम कपड़ा ओढ़ते हैं तो हमारे शरीर की गरमी ही कपड़े में आती है और शरीर के ठंड को दूर करती है. कथा वाचन के क्रम में स्वामी जी ने बताया कि प्राणियों को अंतिम समय में भगवान का नाम इस कारण सुनाते हैं कि उसमें भी भगवान में वृति कराने की शक्ति है. भगवान ने मनुष्य को अंत काल में विशेष छूट प्रदान की है. ताकि अंतिम समय में यमदूत उपस्थित न हो जाये. साथ ही यह भी बताया कि नाम सुनाने वाले का उद्देश्य कल्याण करने का है तो नाम सुनाने से उसका कल्याण हो जायेगा. उन्होंने इस तथ्य को और स्पष्ट करते हुए कहा कि नाम सुनने से मरने वाले व्यक्ति को अंत काल में भगवान की याद आयेगी तो उसका कल्याण हो जायेगा. बताया कि इस समय अन्य व्यक्तियों द्वारा भगवान का नाम, संकीर्तन या फिर जप की जाये तो उद्देश्य की प्राप्ति हो जाती है. स्वार्थ का त्याग ही है धर्म स्वामी जी ने धर्म का मूल अर्थ स्वार्थ का त्याग यानी दूसरों का हित बताया. कहा कि प्राणी धर्म के अनुरूप रास्ता अपनाये तो धर्म का स्वत: प्रचार हो जाता है. बताया कि मौजूदा समय में प्राणियों में यह धारण पनप रही है कि धर्म पर अधर्म का विजय हो रहा है. पर जब मनुष्य सुखाशक्ति के कारण असत को महत्व देता है तब हार जरूर दिखता है. लेकिन वास्तव में हार नहीं होती. लेकिन प्राणियों को दिखता है कि हार हो गयी. उन्होंने कहा कि परहित के भाव का बाधक ही स्वार्थ हित है. वास्तव में व्यक्तिगत स्वार्थ का भाव रखने से स्वार्थ सिद्ध नहीं होता. पर सभी के हित का भाव रखने से व्यक्तिगत स्वार्थ भी सिद्ध हो जाता है. कहा कि सबों के हित का भाव रखने वालों की सेवा पशु भी करता है. स्वार्थ वृति है हित का बाधक शिवानंद जी महाराज ने बताया कि हमारा हित हो यह स्वार्थ वृति ही हमारे हित का बाधक है. कहा कि प्राणी दूसरे हित के लिए जितना करेंगे उतना ही अपना स्वार्थ मिटेगा और जितना स्वार्थ मिटेगा. उतना ही हमारा हित होगा. कहा कि एक मनुष्य दूसरे प्राणियों का हित नहीं सोच सकता. पर अपने स्वार्थ का त्याग तो कर सकता है. सभी के हित का भाव ही साधन है. लेकिन वह साध्य कभी नहीं हो सकता. बताया कि दुखी व्यक्ति को देख कर दुख होगा. साथ ही उससे संबंध भी जुड़ जायेगा. पर यह संबंध बांधने वाला नहीं है. दुखी को देख कर दुख होता है. इससे सिद्ध होता है कि उसके अधिकार वाला कोई वस्तु हमारे पास है. वह वस्तु उसकी सेवा में लगा दो. वातावरण बना रहा भक्ति मय प्रवचन के दौरान आस पास का क्षेत्र भक्ति मय बना रहा. व्यवस्थापक मोहन प्रसाद चौधरी ने बताया कि स्वामी जी के कथा का वाचन सुनने दूर दराज से लोग ठाकुरबाड़ी परिसर पहुंच रहे हैं. श्री चौधरी ने बताया कि स्वामी जी द्वारा कथा वाचन का प्रारंभ संगीतमय ईश भक्ति के साथ किया जा रहा है. साथ ही कथा का वाचन सरलता के साथ हो रहा है. ताकि भक्त जन इस भक्ति रस का आनंद उठा कर अपने जीवन में उतार सके.

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