सुपौल : सरकार द्वारा आम लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने एवं झोला छाप डॉक्टरों के शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए सरकारी अस्पतालों में ही बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के दावे किये जा रहे हैं. पर, धरातल पर स्थिति यह है कि सरकारी अस्पतालों में सुविधा उपलब्ध नहीं रहने के कारण आज भी लोगों को निजी क्लिनिकों एवं झोलाछाप डॉक्टरों के शरण में जाने के लिए विवश होना पड़ रहा है.
जिले की 22 लाख की आबादी को बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जिला मुख्यालय में स्थापित सदर अस्पताल की स्थिति काफी चिंताजनक है. यहां ऑर्थोपेडिक विभाग में विशेषज्ञ चिकित्सक के पदस्थापित रहने एवं दो अन्य अस्थि रोग के जानकार चिकित्सकों की मौजूदगी के बाद स्थिति यह है कि इस वित्तीय वर्ष में मात्र दो रोगियों के ही प्लास्टर किये गये. जब प्लास्टर की यह स्थिति है, तो फिर तो ऑपरेशन की बात भी बेमानी है.
हालांकि यह बात अलग है कि इन चिकित्सकों के निजी क्लिनिक पर एक माह के दौरान दर्जनों प्लास्टर किये जाते हैं. संसाधन व कर्मियों की अनुपलब्धता की वजह से यहां ऑर्थोपेडिक विभाग बिल्कुल ही काम नहीं कर रहा है. इसका परिणाम यह है कि जिला मुख्यालय समेत आसपास के क्षेत्रों में दर्जनों झोलाछाप हड्डी रोग विशेषज्ञ का बोर्ड लगा कर आम लोगों का शोषण कर रहे हैं.संसाधन का है घोर अभाव सदर अस्पताल के ऑर्थोपेडिक विभाग में संसाधनों का घोर अभाव है.
नतीजा है कि यहां पदस्थापित चिकित्सक रोगियों के उपचार से परहेज बरतते हैं. इस विभाग में प्लास्टर पुली, ट्रैक्शन तक की सुविधा उपलब्ध नहीं है. उपलब्ध संसाधन की गुणवत्ता भी निम्नस्तरीय है. इसके कारण रोगियों को बाजार से सामान क्रय कर लाना पड़ता है. सबसे विकट स्थिति यह है कि ऑर्थोपेडिक असिस्टेंट नहीं रहने के कारण चिकित्सकों को रोगियों के उपचार में कठिनाई का सामना करना पड़ता है. विशेष परिस्थिति में अपने निजी स्टाफ को बुला कर सहयोग प्राप्त करना पड़ता है.
वित्तीय वर्ष में हुए मात्र दो प्लास्टरसंसाधन की कमी कहें या व्यवस्था का दोष, इस वित्तीय वर्ष में अब तक मात्र दो रोगियों का प्लास्टर किया गया है. वह भी काफी दबाव के बाद. सदर अस्पताल में इस वित्तीय वर्ष में केवल दो प्लास्टर किये गये. इनमें एक जिले के वरीय अधिकारी व एक वरीय अधिकारी का चालक शामिल है.
यह बात अलग है कि इसी चिकित्सक के निजी क्लिनिक पर प्रतिदिन कई रोगियों के प्लास्टर किये जाते हैं.झोलाछाप डॉक्टरों की कट रही चांदी सदर अस्पताल में हड्डी रोग से संबंधित उपचार नहीं होने का ही नतीजा है कि शहर में कुकुरमुत्ते की तरह दर्जनों निजी क्लिनिक संचालित हैं. इन क्लिनिकों में कल तक किसी चिकित्सक के यहां कंपाउंडर का कार्य करने वाले आज चिकित्सक बन कर रोगियों का शोषण कर रहे हैं.
यह बात अलग है कि इन तथाकथित चिकित्सकों ने कहीं से डिग्री हासिल कर बोर्ड लगा लिया. पर, सबसे दिलचस्प बात यह है कि इनके ऊपर अब तक विभाग द्वारा किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जा सकी है. नतीजतन ये लोग गरीब व लाचार लोगों का शोषण कर रहे हैं.दलाल तय करते हैं, कहां होगा इलाज सूत्रों की मानें, तो सदर अस्पताल में दलालों की ही चलती है.
आउटडोर से लेकर एक्स-रे कक्ष के समक्ष दिन भर डेरा डाले दलाल ही यह तय करते हैं कि दुर्घटना के शिकार रोगियों का उपचार किस क्लिनिक पर होगा. इसके लिए इन दलालों का कमीशन पूर्व से तय है. जानकारों की मानें, तो मरीज की स्थिति देख कर चिकित्सक द्वारा दलालों को कमीशन दिया जाता है.
यह दिगर बात है कि दलालों का कमीशन भी मरीजों के परिजन को ही अदा करना पड़ता है. दिलचस्प बात यह है कि सदर अस्पताल में सक्रिय दलालों को यहां तैनात चिकित्सक व कर्मियों द्वारा ही प्रश्रय दिया जाता है, क्योंकि इसमें उनके निजी स्वार्थ की पूर्ति होती है. यहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं. लोग यहां इलाज नहीं कराना चाहते तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं.
जब से मेरी पदस्थापना हुई है, किसी ने इस बात की शिकायत नहीं की है. शिकायत मिलने के बाद कार्रवाई की जायेगी. डाॅ रामेश्वर साफी, सिविल सर्जन