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चुनावी समर : बहुत कठिन है डगर पनघट की

सुपौल : विधानसभा चुनाव को लेकर मतदान की तिथि करीब आते ही प्रत्याशियों द्वारा मतदाताओं को समझाने, रिझाने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की कवायद तेज कर दी गयी है. वोटरों का समर्थन पाने के लिए उन्हें विकास के सपने दिखाये जा रहे हैं. वादों की घुट्टी भी पिलायी जा रही है. तरह-तरह के हथकंडे […]

सुपौल : विधानसभा चुनाव को लेकर मतदान की तिथि करीब आते ही प्रत्याशियों द्वारा मतदाताओं को समझाने, रिझाने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की कवायद तेज कर दी गयी है. वोटरों का समर्थन पाने के लिए उन्हें विकास के सपने दिखाये जा रहे हैं. वादों की घुट्टी भी पिलायी जा रही है. तरह-तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं. बावजूद वोटरों की चुप्पी प्रत्याशियों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. दरअसल वोटरों के लिए इस प्रकार की कवायद कोई नयी बात नहीं है.

हर चुनाव में प्रत्याशियों द्वारा विकास के दावे किये जाते रहे हैं. यह दीगर बात है कि चुनाव परिणाम आते ही सारे वादे धरे रह जाते हैं. यही वजह है कि सुपौल जिले का नाम आज भी राज्य के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में शुमार है. सदियों से कोसी प्रभावित इस जिले में समस्याओं का अंबार लगा है. स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं की घोर कमी है.

शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा है इलाका शिक्षा के क्षेत्र में यह जिला राज्य स्तर पर सबसे निचले पायदान से मात्र एक सीढ़ी ऊपर है. जिले की साक्षरता दर 57.67 फीसदी है. इनमें मात्र 44:77 फीसदी महिलाएं ही साक्षर हैं, जबकि पुरुष साक्षरों का प्रतिशत 69.62 है. पड़ोसी जिलों में जहां मेडिकल व इंजीनियरिंग जैसे कॉलेज खुल गये, वहीं सुपौल जिले में उच्चतर शिक्षा का कोई संस्थान स्थापित नहीं हुआ. स्कूलों में भवन व शिक्षक की कमी की वजह से शैक्षणिक विकास सुस्त है.

बालिका शिक्षा की स्थिति और भी बदतर है. जिला मुख्यालय जैसे शहरी क्षेत्र में मात्र एक बालिका उच्च विद्यालय है. सरकारी स्तर पर महिला कॉलेज की स्थापना नहीं हुई है. एक वित्त रहित महिला कॉलेज है, जिसका करीब तीन दशक के बाद भी सरकारीकरण नहीं किया गया है.कुसहा पीड़ितों को नहीं मिला वाजिब हक 2008 में हुई कुसहा त्रासदी ने जिले के छातापुर, प्रतापगंज, बसंतपुर, त्रिवेणीगंज व राघोपुर प्रखंड को विशेष रूप से तबाह किया था.

लाखों लोग बेघर हुए. वहीं हजारों इनसान व पशुओं की जान गयी. इलाके में तबाही के निशान आज भी मौजूद हैं. कई सड़कों व पुल पुलिया का पुर्ननिर्माण नहीं हो पाया है. हजारों एकड़ जमीन बाढ़ के साथ आयी रेत किसानों की समस्या का कारण बनी हुई है. बंजर हो चुकी भूमि की वजह से किसानों के समक्ष भोजन के लाले पड़े हैं. सरकार ने कोसी प्रभावित क्षेत्र को पहले से बेहतर बनाने की घोषणा की थी. कहा था बाढ़ विस्थापितों को मकान, शौचालय व सोलर लाइट दिया जायेगा.

पर, विडंबना है कि त्रासदी के सात वर्ष बीत जाने के बाद भी वादे पूरे नहीं किये गये. 25 हजार 958 लक्ष्य के विरुद्ध महज 10 हजार 538 मकान बनेे. करीब आठ हजार निर्माणाधीन हैं. लगभग सात हजार मकान के निर्माण का कार्य प्रारंभ ही नहीं हो पाया है. अब तक मात्र 719 लोगों को शौचालय की सुविधा मिल पायी है. लंबी है समस्याओं की फेहरिस्तइसके अलावा भी जिले में समस्याओं की फेहरिस्त काफी लंबी है. तटबंध के भीतर बसे करीब दो लाख लोगों का आज तक स्थायी समाधान नहीं किया गया है.

उद्योग – धंधे नहीं लगने की वजह से जिले में रोजगार की भारी कमी है. कृषि आधारित जिले में कृषि व कृषकों के विकास पर ध्यान नहीं दिया गया. नतीजा है कि हर वर्ष लाखों मजदूर रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों की ओर पलायन को विवश हैं. चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. विकास की बाट जोह रहे मतदाताओं के समक्ष वोट मांगने के लिए पहुंचने वाले प्रत्याशी व जन प्रतिनिधियों को इस बार जनता के सवालों का जवाब देना होगा.

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