राघोपुर : ‘ खींच कर अपनी अंगुलियों से एक कविता भूतल पर लिखो, पहले लिखा जिसे बुद्धि के बल पर आज बाहुबल पर लिखो’ किसी प्रसिद्ध कवि की इस कविता को अपने बाहुबल के बूते जमीन पर उतारने का माद्दा तो कर्मवीर किसान हीं रखते हैं. बंजर जमीन में अपने खून-पसीने से सींच कर सोना उगाने वाले किसान लाखों लोगों के चेहरे पर खुशियां बिखेरते हैं.
लेकिन सरकारी उपेक्षा एवं विभागीय लापरवाही के कारण इन किसानों के चेहरों पर खुशी की लकीरें नहीं चमक पाती है.किसान कर्ज में ही जन्म लेते हैं और कर्ज में ही मर जाते हैं.गरज यह कि कर्ज के पैसे से ही कुछ नया कर गुजरने की तमन्ना रखते हैं. करीब 20 वर्ष पूर्व क्षेत्र में पान की खेती की अपार संभावनाओं को तलाशता हुआ प्रतापगंज की रेतीली जमीन पर योगेंद्र चौरसिया ने पान की खेती की शुरुआत की थी.आज आलम यह है कि अपने ही बूते पर कुछ अन्य किसान भी पान की खेती कर किसानों के प्रेरणा स्नेत बन रहे हैं.
हालांकि विभागीय उपेक्षा के कारण क्षेत्र में पान की खेती व्यापक रूप नहीं ले पा रहा है. पान की खेती के लिए आवश्यक बांस, खड़ आदि क्षेत्र में कम कीमत पर सहज रूप में उपलब्ध हो जाता है. स्थानीय स्तर पर इसका बाजार भी उपलब्ध है. ऐसे में पान की बिक्री की चिंता भी किसानों को नहीं करनी पड़ती है. सिमराही के बलराम कुमार सहित अन्य किसानों ने भी पान की खेती प्रारंभ की थी. आवश्यक जानकारी के अभाव में उन्हें सफलता नहीं मिली. बलराम बताते हैं कि पान की खेती कम लागत में अच्छा मुनाफा देने वाला है. सात से आठ हजार प्रति कट्ठा खेत तैयार करने में लगता है.
खर्च आदि काट कर पांच-छह हजार रुपये प्रति कट्ठा का शुद्ध मुनाफा हो सकता है. बताते हैं कि पान की खेती के लिए तकनीकी जानकारी होना आवश्यक है. लेकिन स्थिति यह है कि यहां के किसानों को कोलकाता के किसानों पर निर्भर रहना पड़ता है. प्रखंड के चंपानगर पंचायत के मतनाता के किसान भी पान की खेती कर रहे हैं. वे बताते हैं कि पान की खेती के लिए सरकारी सहयोग नहीं मिल पा रहा है. कृषि मिशन के तहत पान किसानों को आवश्यक सहयोग दिया जाय तो ना सिर्फ पान किसानों को ही लाभ होगा बल्कि लघु व सीमांत किसान भी अपने खेतों में पान की खेती कर कर्ज के बोझ से मुक्ति पा सकते हैं.
कहते हैं बीडीओ
इस संबंध में बीडीआ जगन्नाथ सिंह ने बताया कि औषधिय खेती के लिए योजना है, लेकिन पान की खेती के लिए कोई योजना नहीं है.