दिया तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ कर रहा समाहरणालय का शौचालय
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समाहरणालय परिसर में बना नव निर्मित शौचालय का दो साल बाद भी नहीं खुला ताला
दिया तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ कर रहा समाहरणालय का शौचालय परिसर में बने अन्य शौचालय भी जीर्ण-शीर्ण और जर्जर हैं समाहरणालय कर्मियों को शौच के लिए इधर उधर पड़ता है भटकना सुपौल : सरकार के दूरगामी योजनाओं में शुमार स्वच्छता योजना को लेकर जिला प्रशासन भी सजग है. यही कारण है कि ओडीएफ […]
परिसर में बने अन्य शौचालय भी जीर्ण-शीर्ण और जर्जर हैं
समाहरणालय कर्मियों को शौच के लिए इधर उधर पड़ता है भटकना
सुपौल : सरकार के दूरगामी योजनाओं में शुमार स्वच्छता योजना को लेकर जिला प्रशासन भी सजग है. यही कारण है कि ओडीएफ को लेकर तमाम प्रखंडों में अभियान चलाया जा रहा है. प्रयास भी किया जा रहा है कि धीरे-धीरे किसी न किसी वार्ड को ओडीएफ घोषित किया जाय. ताकि लोग खुले में शौच से मुक्त हो सके. इसके लिये सरकार द्वारा मुकम्मल मदद भी की जा रही है. ताकि शौचालय बनाने की आर्थिक परेशानी रोड़े अटकाने का काम न करें. सरकार की सोच पर विभाग की पहल रंग ला रही है और धीरे-धीरे लोग खुले में शौच को तौबा कर रहे हैं. घर-घर शौचालय बन जाने के बाद शायद ओडीएफ घोषित हो भी जाय.
लेकिन इन सब के पीछे बड़ी चीज जो शायद अधिकारी के संज्ञान में भी नहीं है, सामने आ रहा है. जिला का समाहरणालय जहां से योजना बनती है और उन्हीं योजनाओं पर तमाम प्रखंड के प्रशासन उसे अमली जामा पहनाते हैं. यहां परिसर में शौचालय की कमी कर्मियों को खल रही है. लेकिन वे किसी न किसी अधिकारी के अधीन है. लिहाजा इसको लेकर आवाज उठाना उसे मुश्किल हो रहा है.
कहते हैं ना कि घर में छोरा, नगर में ढिंढोरा. कुछ यही हाल जिला मुख्यालय स्थित समाहरणालय परिसर में है. दिया तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ कर रहे समाहरणालय परिसर का हाल यह है कि यहां तकरीबन दो साल पहले समाहरणालय भवन के पीछे एक शौचालय बनाया गया था, जो वर्षों पहले बन कर तैयार भी हो गया. लेकिन इसका पट आज तक नहीं खुला है. अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस महिलाओं और पुरुषों के लिये अलग-अलग शौचालयों का निर्माण इस बडे से आलीशान भवन में कराया गया था.
लेकिन जिला प्रशासन आज तक इस दिशा में पहल नहीं कर सकी है. मामला जो भी हो. कुछ कर्मियों ने बताया कि कुछ दिन के लिये इसका ताला खुला था लेकिन पुन: बंद कर दिया गया. लेकिन कहने वाले तो कह ही देते हैं कि जिले के तमाम प्रखंडों और सरकारी कार्यालयों के इर्द-गिर्द शौचालय बन चुकी है. लेकिन समाहरणालय का यह शौचालय कब खुलेगा यह देखने की बात है. स्थिति यह होती है कि समाहरणालय कर्मी के शौच या पेशाब के लिये इधर-उधर भटकना पड़ता है. इसके चलते सबसे भारी परेशानियों का सामना महिला कर्मियों को करना पड़ता है.
150 से अधिक कर्मियों को भुगतना पड़ता है खामियाजा
आलीशान भवनों के बीच चकाचक यह बना शौचालय का द्वार कब खुलेगा, ये भविष्य के गर्त में है. अब सवाल उठता है कि एक तरफ तो घर-घर शौचालय को लेकर जिला प्रशासन से लेकर तमाम आधिकारिक अमला अपनी पूरी ताकत सरकार के निर्देश पर झौंक दिया है. ऐसे में वहीं अंधेरा रह गया, जहां से रोशनी की किरणें जिलावासियों को रौशन कर रही है. इस बाबत जानकारों का कहना है कि जिला प्रशासन को तत्काल उक्त नव निर्मित शौचालय का द्वार खुलवाने की दिशा में पहल करनी चाहिये. ताकि समाहरणालय में कार्यरत कर्मियों को इसके लिये इर्द-गिर्द भटकना ना पड़े. सूत्रों की मानें तो समाहरणालय में करीब 150 से ऊपर कर्मी कार्यरत हैं. ऐसे में शौचालय की समुचित व्यवस्था नहीं होना कहीं न कहीं विभागीय व्यवस्था की पोल खोल रही है. जानकारी यह भी मिली है एक अन्य शौचालय भी परिसर में अवस्थित है. जो कम क्षमता के कारण उपयुक्त प्रतीत नहीं होता.
भले ही समाहरणालय परिसर में विभिन्न अधिकारियों के चेंबर से अटैच अन्य शौचालय निर्मित है. लेकिन कर्मियों के लिये यह समय अत्यंत ही दुष्कर प्रतीत होता है. यह हाल सिर्फ नव निर्मित शौचालय का ही नहीं, वर्षों पूर्व लाखों की लागत से बनाये गये एक अन्य शौचालय का भी है. जो वर्तमान में जीर्ण-शीर्ण और जर्जर अवस्था में पड़ा हुआ है. ना तो इसकी जीर्णोद्धार की जा रही है और ना ही अन्य शौचालय का निर्माण किया जा रहा है. नतीजा सरकार के योजना पर पानी फेरने के बराबर है.
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