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प्रभार के चक्कर में पिस रहे छात्र, दो माह से नहीं मिल रहा एमडीएम

छातापुर : प्रखंड क्षेत्र स्थित प्राथमिक विद्यालय हसनपुर नया में प्रभार के चक्कर में बीते दो माह से एमडीएम का संचालन बंद है. जिस कारण विद्यालय के नामांकित तकरीबन डेढ़ सौ छात्रों को मध्याह्न भोजन योजना के लाभ से वंचित होना पड़ रहा है. स्थिति यह है कि विद्यालय में पदस्थापित दो शिक्षिकाओं के बीच […]

छातापुर : प्रखंड क्षेत्र स्थित प्राथमिक विद्यालय हसनपुर नया में प्रभार के चक्कर में बीते दो माह से एमडीएम का संचालन बंद है. जिस कारण विद्यालय के नामांकित तकरीबन डेढ़ सौ छात्रों को मध्याह्न भोजन योजना के लाभ से वंचित होना पड़ रहा है. स्थिति यह है कि विद्यालय में पदस्थापित दो शिक्षिकाओं के बीच वरीयता के अपने-अपने दावे पेश किये जा रहे हैं और दोनों के बीच विद्यालय प्रधान बनने की रस्साकस्सी चल रही है. लेकिन स्थानीय पदाधिकारी या विभागीय अधिकारी इस विवाद को सुलझाने को लेकर गंभीर नहीं दिख रहे हैं. हालांकि इस मामले में बीईओ छातापुर द्वारा वरीयता का हवाला देकर तत्कालीन विद्यालय प्रधान रेखा देवी को कार्य से मुक्त करते हुए कुमारी पिंकी आरत को प्रभार देने का निर्देश दिया गया.
लेकिन उक्त निर्देश के दो माह बीतने को है. जबकि बीईओ के निर्देश का अनुपालन अब तक नहीं हो पाया है. जिसका नतीजा है कि यह विद्यालय दो माह से प्रधान विहीन है और विद्यालय का संचालन भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि एमडीएम के नियमित संचालन को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वविदित है. बावजूद इसके प्रधान विहीन विद्यालय में चावल व राशि उपलब्ध रहने के बावजूद एमडीएम का संचालन बंद है.
विद्यालय में पदस्थापित शिक्षिका रेखा कुमारी अपने प्रशिक्षण वर्ष को वरीयता का आधार बनाकर प्रधान की कुर्सी पर विराजमान रही है.
वहीं कुमारी पिंकी आरत ने बीआरसी कार्यालय को नियोजन वर्ष को वरीयता का आधार बताते खुद को प्रधान पद की दायित्व निर्वहन करने हेतु लगातार दावे पेश कर रही है. हालांकि बीईओ के निर्देशानुसार श्रीमती आरत 18 जुलाई 2017 से विद्यालय प्रधान के पद पर हैं परंतु प्रभार विहीन हैं. दरअसल प्रधान के दायित्व से मुक्त की गई रेखा कुमारी ने वर्ष 1986-88 में प्रशिक्षण प्राप्त की है. साथ ही वर्ष 2006 में नियोजन हुआ है. जबकि कुमारी पिंकी आरत का नियोजन वर्ष 2005 है और वे वर्ष 2014 में वह प्रशिक्षित हुई है. विभाग की मानें तो नियोजन वर्ष के आधार पर ही वरीयता का निर्धारण किया जाना है. दोनों शिक्षिकाओं के बीच प्रधान को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है.
मामला संज्ञान में आने के बाद बीईओ छातापुर लल्लू पासवान ने अपने कार्यालय पत्रांक 618 दिनांक 08 जुलाई 2017 को निर्देश पत्र निर्गत किया. जिसमें कुमारी पिंकी आरत को प्रभार देने का निर्देश रेखा देवी को दिया गया. पत्र में रेखा देवी पर विभागीय पूर्व के कई आदेशों का अनुपालन नहीं करने व स्पष्टीकरण का जवाब नहीं देने तथा स्वेच्छाचारिता के आरोपों का उल्लेख किया गया है. पत्र के अनुसार रेखा कुमारी को कार्य से मुक्त करते हुए कुमारी पिंकी आरत को प्रभार सौंपने का निर्देश दिया गया. साथ ही सभी संबंधितों को पत्र की प्रतिलिपि भेजकर निर्देश से अवगत करा दिया गया.
इस मामले में बीआरसी द्वारा कार्रवाई की गयी, लेकिन प्रधान के प्रभार से मुक्त किये गये रेखा देवी द्वारा पदाधिकारी के निर्देश का अनुपालन नहीं किया जा रहा है. रेखा देवी पर समुचित कार्रवाई की अनुशंसा वरीय अधिकारियों से की जा रही है. जल्द ही निदान होगा.
बीईओ, लल्लू पासवान
जिले में औषधीय निरीक्षक सिर्फ कागजों पर कर रहे हैं निरीक्षण
दवा व्यवसाय का गोरखधंधा जिले में महीनों से फल-फूल रहा है. भोलेभाले लोग इसकी जद में आकर अनाप-सनाप राशि भी खर्च करते हैं, लेकिन मर्ज का इलाज इन दवाओं से नहीं हो पाता है.
सुपौल : जिले में अवैध रूप से दवा व्यवसाय का गोरखधंधा महीनों से फल-फूल रहा है. नतीजा यह है कि भोलेभाले लोग इसकी जद में आकर अनाप-सनाप राशि भी खर्च करते हैं, लेकिन मर्ज का इलाज इन दवाओं से नहीं हो पाता है.
जाहिर है दवा की गुणवत्ता की जांच के लिये जिला स्वास्थ्य महकमा कभी भी गंभीर नहीं दिखाई दिया. न ही ऐसे दवा विक्रेताओं पर नकेल कसने की कोशिश की गयी है. जिससे ऐसे कारोबारी के मनोबल दिनानुदीन उंचे होते जा रहे हैं. जबकि दवा को लेकर जिले में स्वास्थ्य विभाग से दो औषधि निरीक्षक (ड्रग इंस्पेक्टर) की नियुक्ति की गयी है. जिनका कार्य जिले के तमाम ऐसे दवा विक्रेताओं को चिह्नित करने के साथ ही विभिन्न दुकानों में बिक रही दवाओं की प्रोपर रूप में जांच करनी है. ताकि कंपोजिसन के हिसाब से दवा का मानक सही हो और मरीज को दवा का लाभ मिल सके. लेकिन सूत्र बताते हैं कि जिले में औषधीय निरीक्षक सिर्फ कागजों पर खानापूरी कर रहे हैं.
फलस्वरूप बाजार में नकली और प्रतिबंधित दवा भी धड़ल्ले से बिक रही है. जिसका खामियाजा आम मरीजों पर सीधे रूप से पड़ रही है. विभागीय जानकारी के अनुसार जिले में दो औषधीय निरीक्षक की नियुक्ति की गयी है.
जिसमें सुपौल और त्रिवेणीगंज अनुमंडल की देखरेख विनय कुमार के जिम्मे है. जबकि वीरपुर और निर्मली अनुमंडल की जिम्मेदारी मो खुर्शीद आलम उठा रहे हैं. सिर्फ सुपौल और त्रिवेणीगंज में करीब 450 दवा की दुकान और एजेंसी काम कर रहे हैं. जबकि वीरपुर और निर्मली में 250 के करीब दवा दुकान है, जिसमें करीब 65 एजेंसी भी शामिल हैं. वहीं सूत्रों की मानें तो यह तो सिर्फ कागजी आंकड़ा है पर्दे के पीछे विभाग के आंखों में धूल झोंक दर्जनों ऐसे दुकान और एजेंसी है, जो अवैध रूप से संचालित किये जा रहे हैं.
यह भी कहा गया है कि ऐसी दुकान या एजेंसियां विभाग की मिलीभगत से ही संचालित की जा रही है और इसके संचालन के लिये मोटी रकम भी दी जाती है. हालांकि इस बात की पुष्टि विभाग नहीं कर रही है. लेकिन ऐसे एजेंसियां और दवा दुकानदार खराब गुणवत्ता की महंगे दामों वाली दवा बेच कर एक तरफ जहां मोटी रकम कमा रहे हैं.
वहीं इसके उपभोक्ता लाचार मरीज असमय काल के गाल में समा रहे हैं. खास बात तो यह भी है कि इन दुकानदारों की न तो कभी जांच होती है, न ही इनके विरुद्ध नकेल कसी जा रही है. यहां से सीधे कमीशन का खेल होता है. जिसमें स्वास्थ्य महकमा की कई कड़ी शामिल होते हैं. लिहाजा इसे अप्रत्यक्ष रूप से विभागीय संरक्षण भी प्राप्त रहता है. ताकि विशेष परिस्थिति में जब जांच का समय तय होता है तो उसे सूचित किया जा सके और वैसे लोग जांच से पहले ही अपनी दुकानदारी बंद कर देते हैं.

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