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पपौर के उत्खनन के प्रति विभाग उदासीन
सीवान : भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े प्राचीन पपौर गांव का उत्खनन करने के प्रति भारतीय पुरातत्व विभाग के उदासीन होने के कारण एक बार फिर सीवान के लोगों के साथ अन्याय होने जा रहा है. अगर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पपौर की खुदाई नहीं करता है, तो इस सीवान की धरती के अंदर […]
सीवान : भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े प्राचीन पपौर गांव का उत्खनन करने के प्रति भारतीय पुरातत्व विभाग के उदासीन होने के कारण एक बार फिर सीवान के लोगों के साथ अन्याय होने जा रहा है. अगर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पपौर की खुदाई नहीं करता है, तो इस सीवान की धरती के अंदर छिपी ऐतिहासिक महत्व की धरोहर व पुरातात्विक संपदा उत्कंठित होकर रह जायेगी. लोगों को उम्मीद थी कि खुदाई के बाद सीवान बौद्ध सर्किट से जुड़ जायेगा.
मालूम हो कि पपौर गांव के बगल में मटुकछपरा गांव में करीब 90 के दशक में ग्रामीणों से स्वयं खुदाई कर पालकालीन सैकड़ों मूर्तियों को निकाला था. इसके बाद कुशेश्वर नाथ तिवारी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने पावा ग्राम उन्नयन समिति का गठन कर खुदाई कराने के लिए भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण विभाग व सरकार से संपर्क किया. आठ जनवरी को ग्रामीणों की मेहनत उस समय रंग लायी, जब भारतीयपुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के डीजी डॉ सैयद जमाल ने नालंदा के साथ-साथ सीवान के पपौर ग्राम के उत्खनन का आदेश दे दिया.
करीब आठ लाख रुपये से प्रारंभ में पांच फुट गुना पांच फुट के करीब 20 टेंच लगाने हैं. इस कार्य के लिए पटना एएसआइ के अध्यक्ष पुरात्तवविद् केसी श्रीवास्तव के नेतृत्व में कार्य होना था. खुदाई का लाइसेंस 30 सितंबर,2015 तक नहीं है. पटना अंचल के अधीक्षण पुरातत्वविद केसी श्रीवास्तव अभी नालंदा में ही जुटे हैं. सीवान में अब तक कार्य शुरू नहीं हुआ. बरसात में खुदाई का कार्य होता नहीं है. ऐसी स्थिति में खुदाई पर प्रश्न चिह्न् लगना स्वाभाविक है.
क्या है महत्व : प्राचीन कोशल राज्य के 16 महाजनपदों में मल्ल जनपद की राजधानी कभी पावा (वर्तमान में पपौर) हुआ करती थी. पुरातात्विक अवशेषों,साक्ष्यों,ऐतिहासिक प्रमाणों तथा कथाओं के विश्लेषण से यह स्पष्ट हो चुका है कि भगवान बुद्ध ने अपने निर्वाण के पूर्वाद्ध में काफी समय यहां पर व्यतीत किया था. प्राचीन पपौर गांव की महत्ता को सर्वप्रथम अंगरेज विद्वान होय ने परखा.वे पपौर को पाव का बिगड़ा शब्द मानते हैं.
उन्होंने अपने शोध के दौरान यहां से इंडो-बैक्ट्रीयन काल के कुछ सिक्कों को भी पाया था. वैसे खेती के दौरान इस गांव के लोगों को समय -समय पर मिट्टी में दबी कई प्राचीन मूर्तिया,सिक्के व मृद भांड मिले हैं, जिसे गांव के लोगों ने सहेज कर रखा है.
क्या कहते हैं विभाग के अधिकारी
सीवान के पपौर के साथ नालंदा में भी खुदाई करने का एक साथ लाइसेंस मिला था. नालंदा का काम करीब पूरा हो चुका है. वहां से सामान को इकट्ठा किया जा रहा है. इसके बाद अब सीवान के पपौर में उत्खनन करना है. सीवान में पांच गुना पांच फुट की ही खुदाई करनी है. इसलिए बरसात में भी कोई परेशानी नहीं होगी. हां, कोई ऐतिहासिक महत्व के साक्ष्य मिलते हैं, तब कार्य लंबा भी हो सकता है. बहुत शीघ्र पपौर में खुदाई का कार्य शुरू किया जायेगा.
केसी श्रीवास्तव, अधीक्षण पुरातत्वविद, पटना अंचल
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