किंजर : स्थानीय बाजारों में मालाकार जाति के नवयुवक लोग फूलों की कलाकारी कर जीवन को समृद्ध बना रहे हैं. लोग पहले बड़े शहरों में फूलों की कलाकारी से दूल्हे राजा की सवारी को सजाते थे, लेकिन अब इस कला का लाभ छोटे से बाजारों और कस्बों में भी ले रहे हैं. दिनों-दिन फूलों की सजावट की मांग बढ़ती जा रही है.
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फूलों की कलाकारी से समृद्ध हो रहे मालाकार
किंजर : स्थानीय बाजारों में मालाकार जाति के नवयुवक लोग फूलों की कलाकारी कर जीवन को समृद्ध बना रहे हैं. लोग पहले बड़े शहरों में फूलों की कलाकारी से दूल्हे राजा की सवारी को सजाते थे, लेकिन अब इस कला का लाभ छोटे से बाजारों और कस्बों में भी ले रहे हैं. दिनों-दिन फूलों की […]
लोग पहले दूल्हे के वाहन को ही सजाते थे, लेकिन अब आधुनिक युग में फूलों से शादी-ब्याह का मंडप, दुल्हन की सेज या फिर अन्य कई कार्यक्रमों पर फूलों की सजावट कर अच्छी आमदनी का स्रोत बना लिया है. खासकर इन दिनों लग्न का माहौल है.
मालाकारों ने बताया कि सबसे पहले फूलों की हल्की खेती कर प्रयोग किया, जिसमें मुनाफे का आसार दिखा. उसके बाद फूलों की खेती बृहद पैमाने पर करने लगे. आज फूल स्थानीय बाजारों से लेकर पटना और कोलकाता तक जाने लगे हैं.
फूलों की कलाकारी कर कुछ ही दिनों में हजारों रुपये की कमाई कर लेते हैं. मालाकार अशोक भगत, सुभाष भगत, सिंटू भगत, रवींद्र भगत, रवि भगत एवं अन्य कई मालाकारों ने बताया कि हम सभी इस कला के माध्यम से काफी खुशहाल हैं. हम लोग मेहनत की बदौलत फूल खिलाते हैं.
एक दिन में दूल्हे की दो -तीन गाड़ियां सजाने को मिल जाती हैं. इसके एवज में तीन से चार हजार रुपये मिलते हैं, जिसमें फूलों का खर्च करीब 2000 रुपये आता है. शेष रुपयों की बचत हो जाती है. वहीं दुल्हन के घर मंडप सजाने में फूलों का खर्च काटकर, हमलोगों को एक दिन के हजार रुपये तक की बचत हो जाती है.
अलग-अलग प्रकार के फूलों का करते हैं प्रयोग : मालाकार बताते हैं कि गाड़ियों की सजावट में गुलाब, रजनीगंधा एवं गेंदे के फूलों को उपयोग में लाते हैं. आज इस कला का लाभ हमलोगों को भरपूर मिल रहा है. कला के माध्यम से ही खुशहाल जीवन जी रहे हैं.
फूलों की खेती के बारे में लोगों ने बताया कि हमलोगों की अपनी खेती नहीं है, पट्टे पर खेती लेकर फूलों को उपजाते हैं. अगर हमलोगों को सरकारी स्तर कुछ मदद मिले तो सभी प्रकार के फूलों का बागान भी लगा सकते हैं.
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