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65 साल बाद भी नहीं मिली स्कूल को जमीन

बड़हरिया: कभी-कभी ऐसा होता है कि पुरखों की गौरवशाली अतीत को मटियामेट करने में उनके परिजन ही अहम भूमिका निभाने लगते हैं. कुछ ऐसा ही हुआ है प्रखंड के गौसीहाता उत्क्रमित विद्यालय के साथ. यहां भूमि के अभाव में कमरों का निर्माण नहीं हो पा रहा है. कमरों के अभाव में बच्चों को भारी दिक्कतों […]

बड़हरिया: कभी-कभी ऐसा होता है कि पुरखों की गौरवशाली अतीत को मटियामेट करने में उनके परिजन ही अहम भूमिका निभाने लगते हैं. कुछ ऐसा ही हुआ है प्रखंड के गौसीहाता उत्क्रमित विद्यालय के साथ. यहां भूमि के अभाव में कमरों का निर्माण नहीं हो पा रहा है. कमरों के अभाव में बच्चों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है व विद्यालय की भूमि पर भूमि दाता के परिजन ही कब्जा जमाये बैठे हैं.

इसका खामियाजा स्कूल के छात्रों व शिक्षकों दोनों को भुगतना पड़ रहा है. दुखद तथ्य यह है कि महज दो कमरों में ही पढ़ाई होती है. जबकि 300 से अधिक छात्रों का नाम नामांकन पंजी में दर्ज है. हालांकि संसाधनों के अभाव के अब महज 50 बच्चे ही रह गये हैं. इस स्कूल में बरसात के मौसम में बच्चे पढ़ने के लिए नहीं आ पाते हैं.

ग्रामीणों की मानें, तो गौसीहाता गांव के निवासी स्व. मोहम्मद याकूब ने वर्ष 1952 में स्कूल निर्माण के लिए पांच कट्ठा भूमि उर्दू मकतब के नाम से रजिस्ट्री कर दी. वहीं, उनकी मौत के बाद जब स्कूल के भवन निर्माण का कार्य आरंभ होने पर उन्हीं के इकलौते बेटे मोहम्मद आलम उर्फ बेचू बाबू द्वारा निर्माण कार्य को रोक दिया गया. थक-हार कर ग्रामीणों की कोशिश पर मात्र 10 धूर जमीन में दो कमरों का निर्माण हो सका. अलबत्ता पढ़ाई सुचारु रूप से चलने लगी थी. कुछ वर्षों बाद बिहार सरकार द्वारा स्कूल को अपग्रेड कर उर्दू मकतब के स्थान पर उत्क्रमित मध्य विद्यालय कर दिया गया. लेकिन, मूलभूत सुविधाओं में कोई इजाफा नहीं हुआ. इन्हीं सीमित संसाधनों के बीच मात्र दो कमरों में ही कक्षा आठ तक की पढ़ाई होने लगी. लेकिन आज तक भूमिदान वाला न तो दस्तावेज उपलब्ध हो सका है व न भवन का निर्माण कार्य ही शुरू हो पाया है. इसका सीधा असर गांव के बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है. ग्रामीणों में इससे आक्रोश पनप रहा है.

प्रधानाध्यापक परवेज आलम ने बताया कि स्कूल के कागजात के अभाव में भवन का काम बाधित हो रहा है. दोनों पुराने कमरे काफी जर्जर हो चुके हैं व कभी खतरों के गवाह बन सकते हैं. हमेशा डर बना रहता है. मुखिया तारकेश्वर शर्मा दुख जताते हुए कहते हैं कि कमरों के अभाव में बच्चों को बाहर बैठा कर पठन-पाठन की औपचारिकता निभायी जाती है. उन्होंने बताया कि शिक्षकों की पर्याप्त संख्या होने के बावजूद छात्र निजी विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिए विवश हैं.

क्या कहते हैं बीईओ

स्कूल की जमीन के दस्तावेज हासिल करने में ग्रामीणों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है. जब तक स्कूल के नाम भूमि दान का दस्तावेज नहीं मिल जाता, तब तक शिक्षा विभाग मजबूर है. ऐसे हमलोग आशान्वित हैं. प्रयास जारी है. सफलता भी तय है.

अशोक पांडेय, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी

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