कृष्णबल्लभ/संदीप सोनी मैरवा : चार साल पहले से ही गुमनामी के अंधेरे में खोये परंतु किसी विश्वास के साथ की चमत्कार होगा और उनका बेटा लोटेगा या पति लौटेगा. इसी उम्मीद में जी रही मां किसमती देवी व पत्नी शोभा की मंगलवार सुबह चार बजकर 20 मिनट पर सारी आशाएं समाप्त हो गयी. जब उनके दरवाजे पर स्थानीय अधिकारियों ने फूलमाला से सजी उनके बांकुरे को ताबूत में सजाकर लाये. मां को जगाया गया. पत्नी पहले ही जग रही थी. उसकी आंखों से नींद पहले ही गायब था.
ताबूत को देखते ही समझ में आ गया. फिर क्या हुआ कोई अपने बेटे के खोने के गम में तो कोई अपनी पति के तो, कोई अपने भाई की कमी समझ रो पड़े. माहौल काफी गमगीन रहा. सुबह सभी भगवान का नाम यह लेकर दिन की शुरुआत करते है कि दिन भर सब कुछ ठीकठाक रहे, परंतु सुबह में ही शव को लाने व आनन-फानन में दाह संस्कार कराने की जिद्द पर अड़े प्रशासन के कारण ऐसी विपत्ति के वक्त कोई सहारा भी न दे सका. अपनी पति की मृत्यु के बाद अनुकंपा पर गंडक में ही अनुसेविका के पद पर कार्य करती हुई अवकाश प्राप्त हो गयी
राजमती देवी के लिए जीना काफी मुश्किल रहा. परंतु रोते हुए अपने बेटे सुनील के एक बेटे आदित्य व बेटी आर्या के लिए अपने को संभालना जरूरी समझा. जो उसकी पत्नी को भी सहारा देने का काम किया. ऐसे वक्त में बेटे का शव आया जो अस्थियों में बिखरा पड़ा हुआ था. यह दृश्य सबसे ज्यादा दुखदायी रहा. सारी प्रक्रिया पूरा करने के लिए अपने दिल पर पत्थर रख छोटा भाई अनिल प्रशासन का सहयोग किया और अपने भतीजे आदित्य को लेकर हिंदू रीति रिवाज को संपन्न करने के लिए सरयू घाट निकल पड़ा.