बदहाल है शहर का सुपर बाजार
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सुपर बाजार को आगे बढ़ाने में पीछे रह गये डीएम साहब
बदहाल है शहर का सुपर बाजार अतिक्रमणकारी कर रहे हैं अवैध कब्जा सहरसा : जिले के युवा बेरोजगारों को रोजगार के लिये प्लेटफॉर्म मुहैया कराने के उद्देश्य से शहर के मध्य में तत्कालीन डीएम सुरेंद्र मोहन सिंह के प्रयास से बनवाया सुपर बाजार विकास की दौड़ में भी काफी पीछे रह गया. मालूम हो कि […]
अतिक्रमणकारी कर रहे हैं अवैध कब्जा
सहरसा : जिले के युवा बेरोजगारों को रोजगार के लिये प्लेटफॉर्म मुहैया कराने के उद्देश्य से शहर के मध्य में तत्कालीन डीएम सुरेंद्र मोहन सिंह के प्रयास से बनवाया सुपर बाजार विकास की दौड़ में भी काफी पीछे रह गया. मालूम हो कि वर्तमान में देश के बड़े महानगरों में प्रचलित मॉल कल्चर लोगों की जरूरत भी बन गया है. सुपर बाजार की परिकल्पना तत्कालीन डीएम द्वारा 27 वर्ष पूर्व ही 11 जून 1989 को की गयी थी. जो मौजूदा समय में उक्त कुर्सी के रहते सिर्फ चेहरे बदलने के साथ ही धूमिल हो रही है. ज्ञात हो कि इन दिनों स्थानीय लोगों द्वारा बांस-बल्ले से सुपर बाजार की जमीन को अतिक्रमित भी किया जा रहा है.
प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार: सुपर बाजार के निर्माण व स्थापना के बाद जिला प्रशासन द्वारा नये व्यवसायियों को आश्वस्त किया गया था कि सुपर बाजार के सामने बने लोक बाजार में सब्जी मार्केट, मछली बाजार को शिफ्ट कर दिया जायेगा. इसके पीछे तर्क दिया गया था कि शहर में अन्यत्र लगने वाले सब्जी मंडी के यहां शिफ्ट हो जाने से रोजाना सुपर बाजार में लोगों की आवाजाही बढ़ जायेगी. लेकिन प्रशासनिक उदासीनता की वजह से सुपर बाजार लोगों को लुभाने में असफल रहा. कुछ दुकानदारों ने इधर का रूख भी किया, लेकिन अनिर्णय की स्थिति ने स्थायी बाजार बसाने के सपने को अब तक पूरा नहीं होने दिया है.
जर्जर कॉम्प्लेक्स ही बन गयी है पहचान
कभी सुव्यवस्थित ढंग से दुकान बनाकर सजाये गये सुपर बाजार की पहचान अब उसकी जर्जर व खंडहर बन चुकी दुकानों से होने लगी है. कई सालों से बंद दुकानों की छतों को गिरने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता है वही पहुंच पथ के टूटने के कारण परिसर में जगह-जगह जल जमाव होने लगा है. इसके अलावा बाजार में आने वाले ग्राहकों की सुविधा के लिये बनाये गये स्वीमिंग पूल में पानी की जगह सिर्फ रेत ही रहता है. इसके अलावा शाम होते ही पूरा परिसर अंधेरे में डूब जाता है, जिसका फायदा असामाजिक तत्वों के द्वारा उठाया जाता है.
प्रशासनिक उदासीनता का शिकार बना मार्केट कॉम्प्लेक्स
स्वरोजगार का सपना धूमिल
सुपर बाजार के निर्माण के क्रम पर जिले के युवा व्यवसायियों को दुकान लीज पर आवंटित करने के एवज में लागत का एक हिस्सा वसूला गया था. जिसके बाद सौ से अधिक दुकानदारों ने आशान्वित होकर अपना व्यवसाय शुरू किया था. लेकिन उसके बाद गाहे-बगाहे ग्राहकों के अलावा लोगों की बड़ी तादाद कभी भी इस बाजार का रुख नहीं कर सकी. इस कारण बाजार की अस्सी प्रतिशत दुकानें हमेशा ही बंद रहती हैं एवं उनके मालिक रोजगार के लिये अन्यत्र पलायन करने को विवश हो गये. अब तो डॉक्टर और मेडिकल की दुकान भी खुल चुकी है, ग्राहक सुपर बाजार तक पहुंचने लगे हैं. लेकिन पर्याप्त व्यवस्था का अभी भी अभाव है.
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